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Indian Airforce : भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों की क्षमता 1965 से भी हुई कम ! एयर चीफ मार्शल ने जताई चिंता, 42 की जगह सिर्फ 31 स्क्वाड्रन

Indian Airforce : भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों की क्षमता 1965 से भी हुई कम ! एयर चीफ मार्शल ने जताई चिंता, 42 की जगह सिर्फ 31 स्क्वाड्रन

Indian Airforce :  एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने कहा है कि भारतीय वायुसेना के पास लड़ाकू विमानों की ताकत में लगातार कमी हो रही है. वायुसेना की फाइटर प्लेन क्षमता वर्ष 1965 से भी कम हो गई है. वायुसेना की लड़ाकू विमानों की संख्या ऐतिहासिक रूप कमी होने पर चिंता जताते हुए उन्होंने आश्वस्त किया कि 'जो कुछ भी हमारे पास है' हमने उसी से लड़ने की कसम खाई है.  उन्होंने कहा कि उनका ध्यान सही तरीके से युद्ध में उपयोग के लिए परिसंपत्तियों और कर्मियों को प्रशिक्षित करने पर है। वायुसेना के पास 42 स्क्वाड्रन की स्वीकृत ताकत है. भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर खतरे की स्थिति को देखते हुए विस्तृत विचार-विमर्श के बाद इस संख्या को मंजूरी दी गई है. हालांकि पिछले कुछ वर्षों में यह संख्या लगातार कम होती गई है क्योंकि पुराने सोवियत युग के लड़ाकू विमान सेवानिवृत्त हो गए हैं. वहीं उनकी जगह नए विमानों को लाने का आदेश नहीं दिया गया है। 


अपने वार्षिक प्रेस वार्ता में बोलते हुए, वायुसेना प्रमुख ने कहा कि स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमानों (एलसीए) का उत्पादन भी समय से पीछे चल रहा है. एलसीए के उत्पादन को तेज करने की जरूरत है और नए बहु-भूमिका वाले लड़ाकू विमानों की जरूरत है. उन्होंने कहा नए लड़ाकू विमानों की जरूरत एक तरह से कहें तो भारतीय वायुसेना को "कल से ही" है लेकिन अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। गौरतलब है कि वायुसेना ने मेक इन इंडिया योजना के तहत 2018 में लड़ाकू विमानों की शुरुआत की थी, लेकिन पिछले छह साल से इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है.


वायुसेना प्रमुख ने लड़ाकू विमानों की कमी को स्पष्ट रूप से बताते हुए कहा कि रिकॉर्ड बताते हैं कि स्क्वाड्रन की वर्तमान ताकत 1965 के बाद से भारत की सबसे कम है. 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ा गया था। 1965 के युद्ध के बाद यह संख्या लगातार बढ़ती गई और 1995 में 41 एक्वाड्रन पर पहुंच गई। जैसे-जैसे विमान प्रोफ़ाइल बदलती गई, 2013 में ताकत घटकर 35 हो गई और तब से लगातार कम होती गई। सेवा में मौजूद 31 स्क्वाड्रन में से दो कम उड़ान भर रहे हैं और अपने मिगज़ी लड़ाकू विमानों को बचा रहे हैं। जिसने पहली बार 1971 के युद्ध में कार्रवाई देखी। ऐसे में पुराने लड़ाकू विमानों के बेड़े से हटने के बाद से अभी तक उस गति में नए विमानों को शामिल नहीं किया गया है. इसी कारण भारतीय वायुसेना के पास 1965 से भी कम क्षमता में लड़ाकू विमान बचे हैं. 


एलसीए परियोजना से करीब से जुड़े रहे वायुसेना प्रमुख अमर प्रीत सिंह ने चेतावनी दी कि हमें अतीत से सबक लेने की जरूरत है. यह सुनिश्चित किया जाए कि आगे आगे कोई देरी नहीं होगी. उन्होंने यह भी कहा कि जेट विमानों के उत्पादन में प्राइवेट सेक्टर को बड़े पैमाने पर शामिल करने की जरूरत है. हालांकि उन्होंने कहा कि अगर एलसीए डिलीवरी की समयसीमा पूरी हो जाती है और मल्टी-रोल फाइटर कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर हो जाते हैं, तो वायुसेना 'बुरी स्थिति में' नहीं होगी. 

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