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101 साल बाद आ रहा शिवरात्रि का विशेष योग, जनिये शिव को क्‍यों पसंद है भांग?

101 साल बाद आ रहा शिवरात्रि का विशेष योग, जनिये शिव को क्‍यों पसंद है भांग?

डेस्क...इस बार 101 साल बाद महाशिवरात्रि पर विशेष संयोग बन रहा है. ज्योतिषाचार्य पं. रमेश सेमवाल ने बताया कि फाल्गुण कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को संसार के कल्याण के लिए शिवलिंग प्रकट हुआ था.उन्होंने बताया कि भगवान शिव और शक्ति का विवाह भी महाशिवरात्रि को हुआ था. अब 101 साल बाद महाशिवरात्रि पर विशेष योग बन रहा है.

11 मार्च को महाशिवरात्रि को व्रत और पूजन किया जाना सर्वोत्तम है. शिवलिंग का पंचोपचार पूजन और रात्रि जागरण विशेष फलदायी होता है. इस दिन भगवान शिव की आराधना कई गुना अधिक फल देती है.आप को बता दें भगवान शिव के विवाह में सिर्फ देव ही नहीं दानव, किन्नर, गंधर्व, भूत, पिशाच भी शामिल हुए थे. महाशिवरात्रि पर शिवलिंग को गंगाजल, दूध, घी, शहद और शक्कर के मिश्रण से स्नान करवाया जाता है.

फिर चंदन लगाकर फल-फूल, बेलपत्र, धतूरा, बेर इत्यादि अर्पित किए जाते हैं. रात की प्रथम प्रहर की पूजा 7.26 मिनट से शुरू होगी. निशिता काल की पूजा का समय रात 12. 59 मिनट से 1.47 मिनट तक रहेगी.वैज्ञानिक दृष्टि से महाशिवरात्रि की रात बहुत विशेष होती है. दरअसल इस रात ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस तरह अवस्थित होता है कि इंसान के अंदर की ऊर्जा प्राकृतिक तौर पर ऊपर की तरफ बढ़ने लगती है.यानी प्रकृति खुद ही मानव को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में सहायता करती है. इसका पूरा फायदा लोगों को तभी प्राप्त हो सकता है, जब महाशिवरात्रि की रात में जागरण किया जाए.

शिव को क्‍यों पसंद है भांग?

ऐसी मान्‍यता है कि भगवान शिव को भांग और धतूरा बहुत पसंद है. पौराणिक कथाओं में भी इस बात को कहा गया है कि भगवान शिव भांग का सेवन किया करते थे. इसके पीछे कई कथाएं और मान्‍यताएं हैं. आप भी जानिए इन्‍हें...

ऐसा कहा जाता है कि भवगान शिव हमेशा ध्‍यान में रहते हैं. जानकार कहते हैं कि चूंकि भांग ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है, इसलिए वो परमानंद में रहते थे और कभी भी ध्यान लगा सकते थे.

वेदों की मानें तो समुद्र मंथन से एक बूंद निकलकर मद्र पर्वत पर गिरी, जिससे एक पौधा उगा. इस पौधे का रस देवताओं को खूब पसंद आया. बाद में भगवान शिव इसे हिमालय ले आये ताकि हर कोई इसका सेवन करे.

पुराणों में कहा गया है कि समुद्र मंथन के समय जो विष निकला था, उसे भगवान शिव ने निगला नहीं बल्कि कंठ में रख दिया था. ये विष इतना गर्म था कि इससे शिव को गर्मी लगने लगी और वे कैलाश पर्वत चले गए. विष की गर्मी को कम करने के लिए भगवान शिव ने भांग का सेवन किया था.चूंकि भांग को ठंडा माना जाता है इसलिए उन्‍हें इससे आराम मिला था.

पौराणक कहानी के आधार पर भगवान शव को  अपने परिवार से मतभेद हो गया जसके बाद वह जंगल में चले गए थें . वहां भांग के पौधे के नज़दीक जाकर सो गए. जागने पर उन्होंने कुछ पौधों का सेवन किया, फिर उनके अन्दर की अग्नि शांत हुई.

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