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2000 साल पुराना एक ऐसा मंदिर जिसे नहीं तोड़ सका औरंगजेब, मुंडेश्वरी मंदिर में बलि के बाद भी जिंदा रहते हैं बकरे

2000 साल पुराना एक ऐसा मंदिर जिसे नहीं तोड़ सका औरंगजेब,  मुंडेश्वरी मंदिर में  बलि के बाद भी जिंदा रहते हैं बकरे

कैमूर जिला के भगवानपुर प्रखंड के पवरा पहाड़ी की चोटी पर स्थित माता मुंडेश्वरी मंदिर का इतिहास कथित तौर पर दो हजार साल पुराना है. यह मंदिर शिव और शक्ति को समर्पित है. यह मंदिर देश-दुनिया में अपनी महिमा और मान्यता के लिए प्रसिद्ध है. मंदिर के पूर्व में माता मुंडेश्वरी की एक दिव्य और भव्य प्रतिमा है. माता की पत्थर की मूर्ति वाराही रूप में है. माता के इस रूप का वाहन महिष है. शारदीय नवरात्र के दौरान माता मुंडेश्वरी धाम की छटा हीं दूसरी होती है.यहां भक्तों की भारी भीड़ देखी जा रही है. मुंडेश्वरी धाम में माता के दर्शन के लिए  दूर दूर से श्रद्धालु पहुंचते है.मंदिर का निर्माण कब हुआ, इसके बारे में कोई नहीं बताता.माता मुंडेश्वरी मंदिर अष्टकोणीय है. मंदिर के गर्भगृह के पूर्व में मां मुंडेश्वरी की बारह रूपों की मूर्ति मौजूद है. इसी मंदिर के बीच में चार मुख वाले भगवान शिव की भी एक मूर्ति है, जिसके बारे में लोगों की मान्यता है कि समय के अनुसार दिन में दो से तीन बार अपना रंग बदलता है. 

माता मुंडेश्वरी देवी का मंदिर एक शक्तिस्थल है. देश के अन्य देवी मां के मंदिरों की तरह ही यहां भी बलि देने की प्रथा है. लेकिन  बलि के दौरान बकरे को चढ़ाया तो जाता है, मगर उसका वध नहीं किया जाता. इस अनोखे मंदिर में बलि की प्रथा कुछ अलग है. यहां बलि के लिए लाए गए बकरे को माता की मूर्ति के सामने लाकर पूजा की जाती है। पुजारी बकरे पर पुष्प अक्षत डालकर संकल्प करा लेते और बकरे को मुक्त कर देते हैं. बलि की यह सात्विक परंपरा देश में शायद ही और कहीं हो।.

मुंडेश्वरी मंदिर के बीच में देवों के देव महादेव का पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है. कुदरत का करिश्मा या प्रकृति का चमत्कार कहिए कि जिस पत्थर से यह पंचमुखी शिवलिंग निर्मित है, वह सूर्योदय से सूर्यास्त तक की सूर्य की स्थिति के साथ रंग भी बदलता रहता है. माता मुंडेश्वरी धाम में बकरे की रक्तहीन बलि देने की परंपरा है. बकरे को मन्नत मानने के बाद भक्त बकरे को मंदिर में ले जाते हैं और मंत्र पढ़ने के बाद चावल के गोले और फूल फेंककर बकरे को देवी मां के चरणों में रख दिया जाता है. बकरा बेहोश होकर गिर जाता है और फिर मां की चरणों से अक्षत फूल लेकर और मंत्र पढ़कर बकरे पर मारने से वो जीवित हो जाता है. ऐसा यज्ञानुष्ठान विश्व में कहीं नहीं होता. मां का प्रसाद तंदुल के माध्यम से चढ़ाया जाता है जो शुद्ध घी में चावल से बनाया जाता है. 

मंदिर के पुजारी व वहां उपस्थित कुछ लोगों के द्वारा बताया गया कि करीब 2000 सालों से यहां लगातार पूजा-अर्चना की जा रही है. कहा जाता है कि औरंगजेब के शासनकाल में इस मंदिर को तोड़ने के प्रयास भी किए गए, जो असफल रहे. इस मंदिर को तोड़ने में लगाए गए मजदूरों के साथ विचित्र घटनाएं होने लगी, जिसके कारण वे वहां से भाग निकले. तभी से इस मंदिर की चर्चा होने लगी और लोगों के बीच यह मंदिर अद्भुत व चमत्कारी मंदिर के रूप में सामने आया.यहां मां मुंडेश्वरी के दर्शन के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग आते हैं. नवरात्रि के दौरान यहां काफी भीड़ देखने को मिलती है. इसकी सुरक्षा के लिए मंदिर परिसर के चारों तरफ सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. 

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