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जिस मिट्टी की बात रहे, उसे उसी मिट्टी की भाषा में लिखी जानी चाहिए : मृत्युंजय कुमार सिंह

जिस मिट्टी की बात रहे, उसे उसी मिट्टी की भाषा में लिखी जानी चाहिए : मृत्युंजय कुमार सिंह

PATNA : जिस मिट्टी की बात रहे, उसे उसी मिट्टी की भाषा में लिखी जानी चाहिए। ये बातें प्रभा खेतान फाउंडेशन, मसि इंक और श्री सीमेंट की ओर से होने वाली मासिक कार्यक्रम आखर में मृत्युंजय कुमार सिंह ने कही। बीआईए हॉल पटना में आयोजित इस कार्यक्रम में राजा सिंह कॉलेज सिवान में अंग्रेजी के प्राध्यापक पृथ्वी राज सिंह से बातचीत के दौरान भोजपुरी साहित्यकार मृत्युंजय कुमार सिंह ने बताया कि उन्हें हजारी प्रसाद द्विवेदी का एक संस्मरण केदारनाथ सिंह ने बतलाया था तभी यह समझ में आया कि मुझे भोजपुरी में लिखनी चाहिए।

 भोजपुरी उपन्यास 'गंगा रतन विदेसी' पर पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर देते हुए मृत्युंजय ने बताया कि हमलोग जिस दुनिया में रहते हैं, वहीं बहुत पात्र हमारे इर्द-गिर्द होते हैं इस उपन्यास के पात्र भी इसी तरह लिए गए हैं। फिर भी यह काल्पनिक  ही है, किन्तु अधिक से अधिक वास्तविकता रखने का प्रयास किया गया है। इस उपन्यास में आदर्शवाद अधिक से अधिक देखने को मिलेगा क्योंकि पहले के लोगों में आदर्शवाद बहुतायत में मिलते थे। उपन्यास वर्तमान से शुरू होकर अतीत में जाती है और वापस वर्तमान में लौटती है। नैरेटर के रूप में बीच बीच में मैं भी उपस्थित होता रहता हूँ। उपन्यास को ऑडियो बुक के रूप में निकलना एक नया प्रयोग है। किताब से जो दृश्य तैयार होता था उसपर प्रबुद्धता से चर्चा होते रहती थी, फिर हमलोगों ने इसपर ऑडियो तैयार करने का प्रयास किया। क्योंकि बहुत लोग भोजपुरी बोलते-सुनते हैं लेकिन पढ़ नहीं पाते। मेरी खुद की मां के साथ भी ऐसा होता है, इसलिए इसे इस फॉर्म में भी निकालने का प्रयास किया है। यह भोजपुरी में प्रायः पहला प्रयास है। 

बता दें कि मृत्यंजय जी आईपीएस अधिकारी हैं और इतिहास के विद्यार्थी और शोधार्थी रहे हैं। गांव में पले बढ़े हैं और मन अब भी गाँव में बसा हुआ है। यह पूछे जाने पर की ठेठ भोजपुरी शब्द उनतक कहाँ से आते हैं, मृत्युंजय ने बतलाया कि भाषा का फर्क हर सामाजिक वर्ग में होता है, हमारे लोक परम्परा में संयुक्ताक्षर का प्रयोग नहीं होता है इसलिए हम टिपिकल भोजपुरी शब्दों का प्रयोग करने की चेष्टा किया है।

पूरी बातचीत के दौरान लेखक द्वारा उपन्यास के कई रोचक हिस्से भी सुनाए गए। ये हिस्से जहां पूर्णतः गद्यात्मक थे तो वहीं उसमें गीतों का भी उतना ही सुंदर समावेश था। मौके पर किताब के ऑडियो बुक में म्यूजिक करने वाले संगीतकार प्रबुद्ध दा भी उपस्थित थे, और उन्होनें प्रस्तुत गीतों की संगीतमय प्रस्तुति सम्भव की। आप जाने माने संगीतकार हैं और कई फिल्मों, अलबमों में संगीत दे चुके हैं। 

मौके पर उपस्थित सुचर्चित कवि अरुण कमल ने कहा कि भोजपुरी में लिखना-बोलना आसान है किंतु आलोचना कठिन है। भोजपुरी में ऐसा वृहद उपन्यास नहीं है। तीन चार पुश्तों की कथा है। पूरी कथा, कविता के लिहाज से कही गयी है। इस तरह से भोजपुरी में नहीं लिखी गयी। नक्सलवाड़ी आंदोलन से लेकर गांधी, चंपारण, नील खेती आदि कई चीजों को समेटती हुई उपन्यास है। 

इस कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन मसि इंक की संस्थापक और निदेशक आराधना प्रधान ने किया। इस कार्यक्रम में अरुण कमल,भगवती प्रसाद, यशवंत मिश्रा, डॉ अजित प्रधान, विभा रानी श्रीवास्तव , शिवदयाल , गंगनाथ झा गंगेश, बालमुकुंद, सुशील कुमार भरद्वाज आदि लोग उपस्थित थे।

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