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भाजपा का मिशन 200ः 1995 के बाद बिहार BJP अपने दम पर दो सौ सीटों पर चुनाव लड़ने की नहीं जुटा पाई हिम्मत

भाजपा का मिशन 200ः 1995 के बाद बिहार BJP अपने दम पर दो सौ सीटों पर चुनाव लड़ने की नहीं जुटा पाई हिम्मत

PATNA:  बिहार बीजेपी भले ही सत्ता में बड़ी साझीदार हो लेकिन वास्तविक रूप में सत्ता से काफी दूर है। सत्ताधारी दल होने के बाद भी ऐसा लगता है कि मानो विपक्ष में बैठी हो। बीजेपी ने 2015 में बिहार पर कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन औंधे मुंह गिर गई। इसके बाद अब तक मिशन कामयाब नहीं हुआ। 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का भले ही जेडीयू से गठबंधन हो, लेकिन पर्दे के पीछे से सहयोगी दल को कमजोर करने की रणनीति पर काम किया गया। इसके कुछ सकारात्मक परिणाम दिखे। भाजपा अपने सहयोगी दल को पछाड़ कर आगे निकल गई। नीतीश कुमार की पार्टी 43 सीटों पर सिमट गई, भारतीय जनता पार्टी के विधायकों की संख्या 74 हो गई। बड़ी पार्टी होने के बाद भी भाजपा ने नीतीश कुमार को अपना नेता माना और बिहार में सरकार बनाई। मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार आज भी भाजपा के सहयोग से काम कर रहे हैं। हालांकि सत्ता में होने के बाद भी भाजपा अपने एजेंडा को लागू नहीं करा पा रही। कई ऐसे मौके आये जब लगा कि बीजेपी सहयोगी दल जेडीयू के साथ मजबूरी में है। आखिर बिहार में बीजेपी की पकड़ कैसे मजबूत हो? पार्टी अपने दम पर कैसे खड़ी हो? इसको लेकर भाजपा नेतृत्व लगातार मंथन कर रहा है। दिल्ली से दूर पटना में पहली दफे बीजेपी के संयुक्त मोर्चा की बैठक और उसमें अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की उपस्थिति बहुत कुछ बयां कर रही है। कहा जा रहा है कि इस कार्यक्रम के बहाने बीजेपी सहयोगी दल जेडीयू को मैसेज देना चाहती है।

बिहार विस की 200 सीटों पर तैयारी  

बीजेपी नेतृत्व बिहार की 200 विधानसभा सीटों पर तैयारी में जुट गई है। लगातार दो दिनों तक देश भर के नेता इन विस क्षेत्रों में कैंप कर भाजपा की नीतियों और केंद्र सरकार की योजनाओं का प्रचार-प्रसार किया है। बीजेपी भले ही इसे चुनाव से जोड़कर नहीं देखने की बात करती हो लेकिन हकीकत यही है कि दल के अंदरखाने में बेचैनी है। अपने दम पर खड़ा होने की बेचैनी......। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी 30-31 जुलाई को पटना में होंगे। गृह मंत्री अमित शाह भी 31 जुलाई को पटना में रहेंगे। ये दोनों नेता राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में तो शामिल होंगे ही। बिहार बीजेपी कोर कमिटी की बैठक लेंगे। नीतीश कैबिनेट में बीजेपी कोटे के मंत्रियों के साथ अलग से मीटिंग करेंगे। इतना ही नहीं बिहार के सांसदों से भी अलग से राय लेंगे। यानी बिहार में भाजपा अपने दम पर कैसे मजबूत हो,अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव जीते इसको लेकर नेतृत्व काफी मिहनत कर रहा है।

2005 से लेकर 2020 तक बीजेपी 200 सीटों पर नहीं लड़ी चुनाव 

बीजेपी ने आखिर 200 सीटों को क्यों चुना? भाजपा नेतृत्व ने सिर्फ 43 सीटों को क्य़ों छोड़ा? इसको लेकर तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे हैं। पार्टी सूत्रों की मानें तो वैसी सीटों को बीजेपी नेतृत्व ने प्रवास कार्यक्रम से अलग रखा है जहां भाजपा कभी नहीं जीती हो या फिर अल्पसंख्यक बहुल सीट रही हो। यानी विधानसभा की 200 सीटों पर भाजपा अभी से ही चुनावी तैयारी में जुट गई है। वैसे बीजेपी जब सहयोगी दल जेडीयू से अलग होकर भी चुनाव लड़ी थी तब भी 200 सीटों पर उम्मीदवार नहीं दी थी। भाजपा 2015 का विधानसभा चुनाव उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा, लोजपा और हम के साथ मिलकर लड़ी थी। तब बीजेपी ने 157 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. इनमें से 104 सीटों पर बीजेपी कैंडिडेट की करारी हार हुई थी. वहीं 53 विधायक ही चुनकर आये थे। तब नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू लालू यादव की पार्टी राजद के साथ खड़ी थी। 2015 के विस चुनाव में राजद-जेडीयू ने 101-101 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इनमें राजद को 80 तो जेडीयू को 71 सीटें आई थी। जबकि कांग्रेस के 41 में 27 सीटों पर जीत मिली थी। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में जेडीयू और बीजेपी के बीच सीटों का बंटवारा हुआ। जेडीयू को 122 सीटें मिली हैं, जबकि बीजेपी 121 सीटें। बीजेपी ने अपने कोटे से मुकेश सहनी को 11 सीटें और जेडीयू ने अपने खाते से जीतनराम मांझी को 7 सीटें दी। 

2010 में बीजेपी को महज 102 सीटें मिली थी  

साल 2010 में 243 सीटों पर चुनावों में नीतीश कुमार की जदयू सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी.इन चुनावों में एनडीए गठबंधन में जदयू और भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था . उनके सामने राजद और लोक जनशक्ति पार्टी का गठबंधन था. इन चुनावों में जनता दल यूनाइटेड ने 141 में से 115 सीटें और बीजेपी ने 102 में से 91 सीटें जीती. जबकि राजद ने 168 सीटों पर चुनाव लड़कर 22 सीटें जीती थीं. लोजपा 75 सीटों में से तीन सीटें लेकर आई थीं. कांग्रेस ने पूरी 243 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन उसे सिर्फ़ चार सीटें ही मिली थीं.इस चुनाव में बिहार की बड़ी पार्टी राजद का प्रदर्शन बहुत खराब रहा. फरवरी 2005 के चुनाव में 75 सीटों के मुक़ाबले सिमटकर 22 सीटों पर आ गई थी

फऱवरी में 2 चुनावः पहले में 103 जबकि दूसरी दफे 102 सीटों पर उम्मीदवार 

फरवरी 2005 में विस का पहला चुनाव हुआ। इस चुनाव में राबड़ी देवी के नेतृत्व में राजद ने 215 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से उसे 75 सीटें मिल पाईं. वहीं, जदयू और बीजेपी साथ मिलकर चुनाव लड़ी। जेडीयू ने 138 सीटों पर चुनाव लड़ 55 सीटें जीतीं और भाजपा 103 में से 37 सीटें लेकर आई. कभी बिहार में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस इन चुनावों में 84 में से 10 सीटें ही जीत पाई थी. लोजपा को 29 सीटें मिली थी। तब रामविलास पासवान ने किसी को समर्थन नहीं दिया। इस वजह से सरकार नहीं बनी और साल भर के अंदर ही मध्यावधि चुनाव कराना पड़ा। कुछ महीनों के राष्ट्रपति शासन के बाद अक्टूबर-नवंबर में फिर से विधानसभा चुनाव हुए. अक्टूबर-नवंबर 2005 में दूसरी दफे हुए विधानसभा चुनाव में जदयू 88 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. जदयू ने 139 सीटों पर चुनाव लड़ा था. भाजपा ने 102 में से 55 सीटें हासिल की थीं. वहीं, राजद ने 175 सीटों पर चुनाव लड़कर 54 सीटें जीतीं, लोजपा को 203 में से 10 सीटें मिलीं और कांग्रेस 51 में से नौ सीटें ही जीत पाई.

2000 में एकीकृत बिहार में चुनाव

साल 2000 के नवंबर में झारखंड का गठन हुआ था. तब संयुक्त बिहार में 324 सीटें हुआ करती थीं और जीतने के लिए 162 सीटों की ज़रूरत होती थी.इन चुनावों में राजद ने 293 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 124 सीटें मिली थीं. वहीं, भाजपा को 168 में से 67 सीटें हासिल हुई थीं. इसके अलावा समता पार्टी को 120 में से 34 और कांग्रेस को 324 में से 23 सीटें हासिल हुई थीं.

1995 का विधानसभा चुनाव

इस चुनाव में बिहार में न आरजेडी थी और ना जेडीयू. 1994 में नीतीश कुमार ज़रूर समता पार्टी बनाकर लालू यादव से अलग हो गए थे. तब लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में जनता दल ने 264 सीटों पर बिहार चुनाव लड़ा और वो 167 सीटें जीतने में सफल हुई. भाजपा ने 315 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए लेकिन सिर्फ़ 41 सीटें ही जीत पाई. कांग्रेस 320 सीटों पर चुनाव लड़कर 29 सीटें ही जीत पाई. उस समय भी बिहार में 324 सीटों के लिए चुनाव लड़ा गया था. तब झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) भी बिहार से ही चुनाव लड़ती थी.जेएमएम ने चुनावों में 63 में से 10 सीटें जीती थीं और समता पार्टी को 310 में से सात सीटें मिली थीं.









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