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चूड़ा दही के बाद बिहार में होगा बड़ा उलटफेर, सियासी दलदल हो चुका है तैयार, नीतीश या लालू कौन बनेगा कटप्पा...सियासी स्वार्थ सर चढ़ कर बोल रहा...खेला होगा..

चूड़ा दही के बाद बिहार में होगा बड़ा उलटफेर, सियासी दलदल हो चुका है तैयार, नीतीश या लालू कौन बनेगा कटप्पा...सियासी स्वार्थ सर चढ़ कर बोल रहा...खेला होगा..

पटना- बिहार में मकर संक्रांति के मौक़े पर सियासी दलों और नेताओं में 'चूड़ा दही पार्टी' देने की परंपरा रही है. इस तरह की पार्टी में कई बार भविष्य की राजनीति की तस्वीर भी दिखती है. वहीं संक्रांति से पहले हीं राज्य का सियासी पारा चढ़ा हुआ है. पिछले साल यानी 2023 की शुरुआत से ही विपक्षी एकता को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चेहरे पर जो उम्मीद दिख रही थी, वह साल के बीच में सफल होती दिखने लगी थी. विपक्ष के इंडी गठबंधन ने साकार रुप ले लिया. लेकिन साल के अंत होते-होते इसमें बिखराव की चर्चा भी जोर पकड़ने लगी है.

बिहार के सियासी गलियारों  में चर्चा तेज है कि मकर संक्रांति के बाद बिहार की राजनीति में कुछ बड़ा होने वाला है. इन्ही चर्चाओं के बीच इस बात की अटकलें भी तेज हो गई हैं कि 15 जनवरी के बाद नीतीश कैबिनेट का विस्तार हो सकता है. दरअसल इस चर्चा के तेज होने के पीछे सबसे बड़ी वजह बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ अखिलेश प्रसाद सिंह का बयान है जिसमें उन्होंने कहा है कि मकर संक्रांति के बाद बिहार में मंत्रिमंडल का विस्तार होगा. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भागलपुर में मीडिया से बात करते हुए अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि मकर संक्रांति के बाद बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार होना तय है. कांग्रेस मंत्रिमंडल विस्तार में दो पद पर दावा करेगी. फिलहाल कांग्रेस के दो मंत्री हैं. लेकिन विधायकों की संख्या के आधार पर मंत्रिमंडल में कांग्रेस को चार सीट चाहिए.बहरहाल जो भी हो बिहार की राजनीति को जानने वाले  का कहना है कि विपक्ष के इंडी गठबंधन में दाग़ लग चुका है, नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ बहुत सहज नहीं थे, क्योंकि आरजेडी अब भी नहीं बदली है. इसलिए देखना होगा कि वो 14- 15 जनवरी को ‘चूड़ा दही’ के बाद क्या करेंगे”. बता दें  बिहार में मकर संक्रांति के मौक़े पर सियासी दलों और नेताओं में 'चूड़ा दही’ पार्टी देने की परंपरा रही है. बिहार में 14 जनवरी को किस नेता की पार्टी में कौन शामिल हुआ है, उससे कई बार भविष्य की राजनीति की तस्वीर भी दिखती है.बिहार में महागठबंधन में दरार की ख़बरों के बीच राज्य का सियासी पारा चढ़ा हुआ है, इस लिहाज से भी इस साल मकर संक्रांति की पार्टी ख़ास हो सकती है.

वहीं बिहार में सरकार का नेतृत्व कर रही जनता दल यूनाइटेड में बड़ा बदलाव हो गया है. पार्टी के सबसे बड़े नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी की कमान अपने हाथों में ले ली है. साल 2024 के लोकसभा चुनावों के पहले के इस बदलाव को नीतीश का बड़ा क़दम माना जा रहा है.लन सिंह साल 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए मुंगेर की अपनी लोकसभा सीट पर ज़्यादा ध्यान देने का कारण बताते हुए  पिछले हफ़्ते ही दिल्ली में जेडीयू कार्यकारिणी की बैठक में राजीव रंजन सिंह उर्फ़ ललन सिंह ने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया था.वहीं भाजपा का दावा  है कि ललन सिंह को उनके पद से हटाने की वजह उनकी राजद प्रमुख लालू यादव के साथ बढ़ती निकटता है. सुशील मोदी ने तो यहां तक दावा किया कि  ललन सिंह जेडीयू के कुछ विधायकों को तोड़कर लालू के साथ ले जाना चाह रहे थे. 

जिस दिन ममता बनर्जी ने विपक्षी गठबंधन के संयोजक पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम का प्रस्ताव कर दिया था उसी दिन से विपक्षी एकता का मामला पूरी तरह बिगड़ गया.पिछले महीने दिल्ली में हुई ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम गठबंधन के संयोजक और प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया था और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस नाम का समर्थन किया था.  बिहार की राजनीति को नजदीक से देखने वाले रुपेश कुमार सिंह का कहना है कि लालू प्रसाद यादव चाहते हैं कि नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति में व्यस्त हो जाएं और बिहार की सत्ता तेजस्वी यादव को सौंप दें.केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता गिरिराज सिंह ने हाल ही में तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने की लालू की इच्छा का दावा भी किया था.विपक्ष का ‘इंडिया’ गठबंधन ऐसा है, जिसमें अलग-अलग विचारधारा वाले दल एक साथ जुड़े हैं, लेकिन उनका मक़सद एक है- बीजेपी के ख़िलाफ़ एकजुट होना.नीतीश कुमार और महागठबंधन शुरुआत में इस मक़सद में सफल होते भी दिखे हैं.लेकिन पटना की पहली मीटिंग में ही आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की नाराज़गी खुलकर सामने आई थी.आप के नेताओं ने ‘दिल्ली सर्विस बिल’ के मुद्दे पर कांग्रेस के रवैये पर सार्वजनिक तौर पर गठबंधन से अलग होने की धमकी दी थी.उसके बाद कभी ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की तरफ से बयान आया कि बंगाल में टीएमसी अकेले दम पर बीजेपी का मुक़ाबला कर सकती है, तो कभी बंगाल के कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी टीएमसी की राज्य सरकार पर हमलावर दिखे.

राजनीतिक पंडितो  का कहना है कि कांग्रेस ने हाल के मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनावों से अलग बताकर अकेले चुनाव लड़ने का फ़ैसला कर लिया. चुनावों में हार के बाद जेडीयू और आरजेडी समेत कई विपक्षी दलों ने कांग्रेस को गठबंधन को सम्मान देने की सलाह दी थी.नीतीश कुमार की जेडीयू एनडीए की पुरानी साझेदार रही है. नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच ये रिश्ता साल 1996 में शुरू हुआ जब उन्होंने बाढ़ लोकसभा सीट जीतने के बाद बीजेपी से हाथ मिलाया था. नीतीश केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे हैं.साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी को पीएम पद का चेहरा बनाने के बाद नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच रिश्तों में दरार पैदा हो गयी थी.कहा जाता है कि नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के नए नेतृत्व से तालमेल बिठाना मुश्किल हो रहा था और वो एनडीए से अलग हो गए.उसके बाद साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश ने आरजेडी और कांग्रेस जैसे दलों के साथ ‘महागठबंधन’ बनाया था.उन चुनावों में जीत के बाद बनी महागठबंधन की पहली सरकार ज़्यादा दिनों तक नहीं चल पाई और नीतीश ने वापस बीजेपी के समर्थन से बिहार में सरकार बनाई थी.साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में बीजेपी और जेडीयू ने चुनाव जीतकर सरकार बनाई थी. लेकिन अगस्त 2022 में एनडीए की यह सरकार गिर गई. उस वक़्त भी जेडीयू के अध्यक्ष रहे आरसीपी सिंह पर पार्टी को तोड़ने की कोशिश का आरोप लगाकर उन्हें हटाया गया था और और नीतीश महागठबंधन में वापस आए थे.

बिहार की राजनीति के जानकारों  का कहना है कि  बिहार में राजनीति सरगर्मी के पीछ लालू और नीतीश  की राजनीतिक महत्वाकांक्षा है. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद  अपने बेटे तेजस्वी यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं. नीतीश भी लंबे समय से बिहार के मुख्यमंत्री हैं और वो नहीं चाहेंगे कि इस तरह से कोई उनको उनके पद से हटा दे.” रुपेश ने कहा कि पता चला है कि लालू जी ने नीतीश को विपक्षी गठबंधन का संयोजक बनाने का प्रस्ताव भेजा है, लेकिन नीतीश इसको स्वीकार करेंगे भी या नहीं, यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि नीतीश इसके पीछे लालू की मंशा समझते हैं. बिहार में लोकसभा की 40 सीटे हैं. पिछली बार जेडीयू और बीजेपी ने मिलकर यहाँ 39 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इनमें जेडीयू ने 16 और बीजेपी ने 17 सीटें जीती थीं. “22 जनवरी के बाद से भाजपा हर जगह अयोध्या के मंदिर और राम-राम का नारा लगाएगी. वह ग़रीबों के लिए चलाई जा रही योजनाओं की बात करेगी. किसानों को मिल रहे पैसे की बात करेगी. तो कांग्रेस के नेता राहुल गांधी यात्रा पर होंगे, ऐसेमें देखना होगा की बिहार की सियासत दही चूड़ा के भोज के बाद किस करवट बैठती है.बहरहाल, मकरसंक्रांति नजदीक है.  राजनीति की इस बार फिर कौन सी बिसात बिछाई जाएगी? यह देखना अभी बाकी है.

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