BETIA : भारत विविधताओं वाला देश है। यहां हर गांव की अपनी प्रथाएं और अपनी परंपरा होती है। जो कई दशकों से आज भी उसी तरह निभाई जाती है। ऐसी ही एक अनूठी प्रथा बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के बगहा अनुमंडल के नौरंगिया गांव में प्रचलित है। यहां के लोग एक दिन के लिए पूरा गांव खाली कर देते हैं।
परंपरा है कि बैसाख की नवमी तिथि को लोग ऐसा करते हुए 12 घंटे के लिए गांव के बाहर जंगल चले जाते है। मान्यता है कि इस दिन ऐसा करने से देवी प्रकोप से निजात मिलती है। थारू समुदाय बाहुल्य इस गांव के लोगों में आज भी अनोखी प्रथा को जीवंत रखे है। इस प्रथा के चलते नवमी के दिन लोग अपने साथ-साथ मवेशियों को भी छोड़ने की हिम्मत नहीं करते।
कई दशकों से चली आ रही है प्रथा
गांव के लोगों के मुताबिक इस प्रथा के पीछे की वजह देवी प्रकोप से निजात पाना है। वर्षों पहले इस गांव में महामारी आई थी गांव में अक्सर आग लगती थी। चेचक, हैजा जैसी बीमारियों का प्रकोप रहता था हर साल प्राकृतिक आपदा से गांव में तबाही का मंजर नजर आता था लिहाजा, इससे निजात पाने के लिए यहां एक संत ने साधना कर ऐसा करने का फरमान सुनाया था।
सपने में आई देवी मां
वहीं, गांव के कुछ लोग बताते हैं कि यहां रहने वाले बाबा परमहंस के सपने में देवी मां आईं. मां ने बाबा को गांव को प्रकोप से निजात दिलाने के लिए आदेश दिया कि नवमी को गांव खाली कर पूरा गांव वनवास को जाए. इसके बाद यह परंपरा शुरू हुई जो आज भी कायम है।
वाल्मिकी टाइगर रिजर्व में गुजरता है पूरा दिन
नवमी के दिन लोग घर खाली कर वाल्मीकि टाइगर रिजर्व स्थित भजनी कुट्टी में पूरा दिन बिताते हैं. यहां मां दुर्गा की पूजा करते हैं. इसके बाद 12 घंटे गुजरने के बाद वापस घर आते हैं. हैरानी की बात तो ये है कि आज भी इस मान्यता को लोग उत्सव की तरह मना रहे हैं। . इस दिन जंगल में पिकनिक जैसे माहौल रहता है. मेला लगता है. वहीं, पूजा करने के बाद रात को सब वापस आते हैं.
घर में नहीं लगता ताला, लेकिन नहीं हुई कभी चोरी
इस पूरे मामले के बारे में ग्रामीण ने बताया कि इस दिन घर पर ताला भी नहीं लगाते, पूरा घर खुला रहता है और चोरी भी नहीं होती. लोगों के लिए गांव छोड़कर बाहर रहने की यह परम्परा किसी उत्सव से कम नहीं होती है