अमित शाह ने दिए नीतीश कुमार के एनडीए में आने के संकेत ... जदयू के साथ आने के प्रस्ताव पर विचार करने को तैयार है भाजपा

पटना. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू क्या फिर से एनडीए का हिस्सा बनेगी? बिहार ही नहीं देश की सियासत के लिए इन दिनों यह एक बड़ा सवाल बना हुआ है. इन सबके बीच अटकलबाजियों का दौर जारी है कि नीतीश कुमार और भाजपा के बीच भीतरखाने कोई खिचड़ी पक रही है. यहां तक कि पिछले कुछ दिनों से कहा जा रहा था कि खरमास (15 जनवरी) खत्म होने के बाद कोई बड़ा सियासी उलटफेर देखने को मिल सकता है. तमाम तरह की कयासबाजियों के बीच अब गृह मंत्री अमित शाह की एक टिप्पणी ने भी यह संकेत देना शुरू कर दिया जल्द ही नीतीश कुमार को लेकर एनडीए का खुल सकता है. नीतीश कुमार के एनडीए में आने के प्रस्ताव पर विचार करने से कोई गुरेज नहीं हो सकता है.
दरअसल, अमित शाह ने पिछले दिनों एक दैनिक अख़बार को साक्षात्कार दिया था. उनसे जब सवाल किया गया कि 'पुराने साथी जो छोड़कर गए थे नीतीश कुमार आदि, ये आना चाहेंगे तो क्या रास्ते खुले हैं?' इस पर अमित शाह ने दो टूक कहा कि 'जो और तो से राजनीति में बात नहीं होती. किसी का प्रस्ताव होगा तो विचार किया जाएगा.' अमित शाह के इस जवाब से इन बातों को बल मिलना शुरू हो गया है कि नीतीश कुमार को लेकर संभवतः एनडीए में कोई बड़ी चर्चा हो रही है. भीतरखाने जदयू और भाजपा में इस पर कोई बात हो रही है या नहीं इसे लेकर जरुर नेताओं ने चुप्पी साध रखी है. लेकिन अमित शाह का यह कहना कि 'किसी का प्रस्ताव हो तो विचार किया जाएगा' नई अटकलों को जन्म दे रहा है.
नीतीश के आने से मजबूत होगी NDA : नीतीश कुमार और भाजपा का साथ काफी पुराना है. वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव के समय से ही नीतीश कुमार और भाजपा एक दूसरे के साथ रहे हैं. चुनावों में यह साफ देखने को मिला कि जब भी नीतीश कुमार और भाजपा एक साथ उतरे तो विपक्षी दलों की मुसीबत बढ़ी. यहां तक कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी यही स्थिति थी. जदयू तब एनडीए में थी और बिहार की 40 में 39 सीटों पर एनडीए को जीत मिली थी. हाल ही में अलग अलग सर्वे में यह बातें आई कि नीतीश कुमार के एनडीए से अलग होने से भाजपा नीत गठबंधन को बड़ा झटका लग सकता है. किसी भीहालत में पार्टी 40 में 39 सीटों पर जीत हासिल नहीं कर सकती है. यह भाजपा के लिए चिंता का विषय है. इतना ही नहीं सर्वे यह भी कहता है कि नीतीश कुमार की जदयू के लिए फिर से महागठबंधन का हिस्सा रहकर 16 लोकसभा सीट जीतना मुश्किल है. ऐसे में दोनों एक दूसरे के साथ आते हैं तो दोनों मजबूत होंगे.
नीतीश ने संयोजक पद ठुकराया : इंडिया के संयोजक बनाए जाने को लेकर जब नीतीश कुमार के नाम का प्रस्ताव आया तो उन्होंने इसे ठुकरा दिया. जदयू सूत्रों का कहना है कि जदयू पहले चाहती थी कि नीतीश की पहल पर बने इंडिया का संयोजक नीतीश कुमार बनें. लेकिन, कांग्रेस सहित अन्य दलों ने इसे लेकर काफी विलंब किया. इससे नीतीश और जदयू का मानना रहा कि अब अगर संयोजक पद पाना उचित नहीं है. संयोजक पद ठुकराकर नीतीश ने उन कयासबाजियों को और ज्यादा बढ़ा दिया कि वे कुछ अलग करने की ओर बढ़ सकते है. इसके पहले ललन सिंह की जगह नीतीश खुद पार्टी के अध्यक्ष बने तो इसे भी जदयू की रणनीतिक चाल का हिस्सा माना गया. अब अमित शाह 'किसी का प्रस्ताव हो तो विचार किया जाएगा' कहना और ज्यादा अटकलों को जन्म दे रहा है.