DESK. सियासी सर्कस के एक बड़ा खेल सोमवार को उस समय देखने को मिला जब नागरिकता (संशोधन) अधिनियम यानी सीएए को लेकर तमिलनाडु में राज्यपाल ने अभिभाषण पढने से इनकार कर दिया. तमिलनाडु सरकार ने सोमवार को घोषणा की कि वह राज्य में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम को कभी भी लागू करने की अनुमति नहीं देगा और अल्पसंख्यकों और श्रीलंकाई तमिल भाइयों के अधिकारों की रक्षा करने की कसम खाई है. तमिलनाडु की डीएमके सरकार की यह घोषणा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दावे के ठीक बाद आया है. इन सबके बीच राज्यपाल आरएन रवि ने अभिभाषण कई अंशों के साथ अपनी तथ्यात्मक और नैतिक असहमति बताते हुए इसे पढ़ने से इनकार कर दिया. बाद में सदन के समक्ष सभापति एम अप्पावु ने अभिभाषण पढ़ा।
तमिल कवि कनियन पूंगुंद्रनार के प्रसिद्ध शब्दों "यदुम ऊरे, यावरुम केलिर" (सभी शहर एक हैं और सभी हमारे लोग हैं) का हवाला देते हुए, संबोधन में कहा गया कि विविधता में एकता का विचार हमारे देश में गंभीर खतरे का सामना कर रहा है और सरकार दृढ़ बनी हुई है. राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव की रक्षा और संरक्षण के लिए अपनी प्रतिबद्धता में सरकार दृढ है. संबोधन में कहा गया कि हम अल्पसंख्यकों और हमारे श्रीलंकाई तमिल भाइयों के साथ खड़े हैं, क्योंकि हम उनके अधिकारों की रक्षा करने की प्रतिज्ञा करते हैं। यह सरकार हमारे राज्य में नागरिकता संशोधन अधिनियम को कभी भी लागू करने की अनुमति नहीं देगी और इस संबंध में सभी आवश्यक उपाय करने का संकल्प लेती है।
यह बयान मुख्यमंत्री एमके स्टालिन द्वारा सीएए को मुसलमानों और श्रीलंकाई तमिलों के खिलाफ भेदभावपूर्ण बताए जाने के दो सप्ताह बाद आया है। पिछली बार जब केंद्र सरकार ने सीएए को लागू करने को लेकर पहल की थी तब डीएमके ने तमिलनाडु में इस अधिनियम के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया और इसके खिलाफ दो करोड़ हस्ताक्षर जुटाए, जिन्हें बाद में भारत के राष्ट्रपति को भेजा गया.
स्टालिन ने कहा था कि 2021 में जैसे ही हम सत्ता में आए, हमने सीएए को वापस लेने की मांग करते हुए विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया। डीएमके सरकार तमिलनाडु में नागरिकता संशोधन अधिनियम को कभी भी लागू करने की अनुमति नहीं देगी. अब इसी को लेकर एक बार फिर से टकराव की स्थिति तमिलनाडु में डीएमके सरकार और राज्यपाल के बीच देखने को मिली है.