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अग्निपथ के लिए तैयार नहीं थी सेना, पूर्व सेनाध्यक्ष के सनसनीखेज दावे से हड़कंप, पीएमओ की घोषणा सुन कर चौंक गई थी तीनों सेना

अग्निपथ के लिए तैयार नहीं थी सेना, पूर्व सेनाध्यक्ष के सनसनीखेज दावे से हड़कंप, पीएमओ की घोषणा सुन कर चौंक गई थी तीनों सेना

DESK। भारतीय सेना के प्रमुख रहे जनरल एमएम नरवणे ने अग्निपथ योजना को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। उन्होंने अपनी किताब 'फॉर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी' में बताया है कि यह योजना सेना से राय मशविरा के बगैर लाया गया। बकौल नरवणे यह योजना नौसेना और वायु सेना के लिए तो एक झटके की तरह आई।

जनरल नरवणे ने अपने संस्मरण 'फॉर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी' में इस योजना के शुरू होने की पूरी कहानी बताई है। थल सेनाध्यक्ष बनने के कुछ हफ्तों बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी एक बैठक हुई थी। इस बैठक में उन्होंने पीएम मोदी को 'टुअर ऑफ ड्यूटी' स्कीम का सुझाव दिया था। इसके तहत उन्होंने प्रस्ताव दिया था कि अधिकारियों के लिए शॉर्ट सर्विस कमिशन के तरह ही सीमित संख्या में जवानों को कम अवधि के लिए नामांकित किया जा सकता है।
इस बैठक के कुछ महीने बाद ही PMO ने भारत की तीनों सेनाओं (थल सेना, नौसेना और वायु सेना) में अग्निपथ योजना की घोषणा कर दी और इसके तहत नियुक्त होने वाले जवानों को अग्निवीर कहा गया। इस योजना के तहत 17 से 21 साल के युवकों को 4 सालों के लिए सेना में भर्ती करने का प्रावधान है। इनमें से 25 प्रतिशत कर्मचारियों की नौकरी को अगले 15 साल के लिए बढ़ाया जा सकता है शेष 75 फीसदी को बाहर कर दिया जाएगा।
नरवणे ने कहा कि अग्निपथ योजना की घोषणा थल सेना के लिए हैरान करने वाली थी। लेकिन नौसेना और वायु सेना के लिए तो ये सूचना एक झटके की तरह आई। जनरल नरवणे ने 31 दिसंबर 2019 से 30 अप्रैल 2022 तक सेना के प्रमुख के तौर पर काम किया। जब यह योजना आई तो वह सेना प्रमुख थे। वे कहते हैं कि पीएमओ का निर्णय एकदम चौंकाने वाला था। 
नरवणे के मुताबिक सेना का शुरुआती विचार ये था कि इस योजना के तहत भर्ती किए जाने वाले 75 फीसदी कर्मचारियों को सेना में ही नौकरी करते रहना चाहिए। वहीं, 25% कर्मचारियों को अपना कार्यकाल पूरा होने के बाद निकाल दिया जाना चाहिए। हालांकि, केंद्र ने अग्निपथ योजना में ठीक इसके उल्टा किया है। उसमें 25 फीसदी को रखा जाएगा और 75 फीसदी को निकाल दिया जाएगा।
इतना ही नहीं नरवणे ने ये भी बताया कि शुरुआत में अग्निवीरों के लिए पहले साल की सैलरी महज 20 हजार रुपये प्रतिमाह तय की गई थी। उन्हें इसमें अलग से कोई और भुगतान देने का प्रावधान नहीं था। नरवणे कहते हैं कि ये बिल्कुल स्वीकार करने लायक नहीं था। हम एक प्रशिक्षित सैनिक की बात कर रहे थे। उससे उम्मीद की जाती है कि वो देश के लिए अपनी जान दे दे। साफ है कि सैनिकों की तुलना दिहाड़ी मजदूरों से नहीं की जा सकती। हमारी मजबूत सिफारिशों के बाद, उनकी सैलरी को बढ़ाकर 30 हजार रुपये प्रतिमाह किया गया।

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