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अद्भूत! वीडियो कॉल से सीखा वेंटिलेटर चलाना और बचा ली मरीज की जान, दिल्ली एम्स के डॉक्टर भी अचंभित

अद्भूत! वीडियो कॉल से सीखा वेंटिलेटर चलाना और बचा ली  मरीज की जान, दिल्ली एम्स के डॉक्टर भी अचंभित

AURANGABAD : तकनीक से चाहें तो सबकुछ आसान हो सकता है। किसी को शिक्षित करने से लेकर मरीज की जान बचाने तक। बिहार के स्वास्थ्य मंत्री यह स्पष्ट कर चुके हैं कि उनके पास अस्पतालों में वेंटिलेटर चलाने के लिए डॉक्टर और टेक्निशियन की कमी है। लेकिन इन कमियों के बाद भी तकनीक के सहारे न सिर्फ चार वेंटिलेटर को शुरू किय गया, बल्कि लगभग मृत हो चुके एक मरीज की जान भी बचाई गई। 

देश में औरंगाबाद ने एक मिसाल पेश की है। यहां के आदर्श सदर अस्पताल में संसाधनों की कमी के बाद भी  एक डॉक्टर और कुछ नर्स की बदौलत वीडियो कॉल पर दिल्ली AIIMS से तकनीक सीख चार साल से बंद पड़े और कबाड़ बन चुके ICU के चार वेंटिलेटर को इसी सिस्टम ने शुरू कर दिया। इससे अब तक कई मरीजों की जान भी बचाई जा चुकी है। अस्पताल में की गई व्यवस्था से राज्य सरकार इतनी प्रभावित हुई है कि अब प्रदेश के सभी जिलों में इसी तरह से वेंटिलेटर शुरू करने की तैयारी की जा रही है।

सात मरीजों की बचा चुके हैं जान

DM सौरभ जोरवाल की मानें तो  ICU के वेंटिलेटर पर भर्ती होने वाले सात मरीज सुरक्षित तरीके से बचा लिए गए हैं, जो स्वस्थ होकर लौट चुके हैं। इनमें से कई मरीजों का ऑक्सीजन लेवल काफी कम था।  राज्य सरकार ने ICU को किन हालत में और कैसे शुरू किया गया, इसके लिए कौन-कौन से उपाय किए गए? इस संबंध में हर एक जानकारी मांगी है। उन्होंने कहा कि इस मुहिम में डीडीसी के साथ प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने सहयोग किया। डॉ. जन्मेजय ने वीडियो कॉलिंग से तकनीक सीखी और खूब मेहनत की। ICU की पूरी टीम ने शानदार काम किया, जिसके चलते यह कामयाबी मिली। मैं हर पल अपडेट लेता हूं। खुद दर्जनों बार वहां जा चुका हूं।

नौकरी छोड़ने की तैयारी कर रहे डॉक्टर को बनाया इंचार्ज, फिर हो गया कमाल

अस्पताल के जर्जर हो चुके वेंटिलेटर को फिर से शुरू करने में डॉ जनमेजय की प्रमुख भूमिका बताई गई है। बताया गया कि आईसीयू के बंद पड़े वेंटिलेंटर के अधिकांश पूर्ज पूरी तरह से खराब हो चुके थे। तारों को चूहों ने काट दिया था, इसके बाद भी महामारी की हालत को देखते हुए इसे शुरू करने के लिए SP सुधीर कुमार पोरिका, DDC अंशुल कुमार, सिविल सर्जन डॉ. मो. अकरम अली, DPM व कुछ अन्य अधिकारियों के साथ आपात बैठक हुई। जिसके बाद उस डॉक्टर जनमेजय को याद किया गया, जो नौकरी छोड़ कर जाने की तैयारी कर रहे थे। अचानक उन्हें तलब किया गया। अचानक बताया गया कि आपको ICU का इंचार्ज बनाया जाता है। इसके बाद दो सप्ताह पूर्व आईसीयू शुरू की गई। इस दौरान डीएम ने जो बातें कही - वह किसी भी डॉक्टर को प्रेरित करनेवाली थी। डीएम सौरभ जोरावल ने कहा कि  मैंने IAS बनने से पहले इंजीनियरिंग की थी। मेडिकल किया होता तो आज आपका साथ देता और मरीजों का इलाज करता। यह सुनकर डॉक्टर ने हामी भर दी।

आईसीयू के बाद वेंटिलेटर शुरू करने की तैयारी

सदर अस्पताल में आईसीयू शुरू करने के बाद चुनौती वेंटिलेटर शुरू करने की थी। जिसके लिए  सिविल सर्जन, DPM को सहयोग करने की जिम्मेवारी दी गई। DDC को स्पेशल देखरेख के लिए नियुक्त किया गया।  फिर DM ने WHO व दिल्ली एम्स के डॉक्टरों से संपर्क किया। वीडियो कॉल और वर्चुअल तरीके से ICU इंचार्ज डॉक्टर और नर्स को ट्रेनिंग दिलाई। ट्रेनिंग के बाद पांच मॉकड्रिल हुआ। इसके बाद 10 मई से ICU शुरू की गई। इसमें भर्ती होने वाले सात मरीजों की जान अबतक सफलतापूर्वक बचा ली गई है। अभी भी चार कोविड मरीजों को भर्ती किया गया है, जिनकी हालत खतरे से बाहर है।

देश में लागू करने की तैयारी

इस मॉडल को समझने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग के नेशनल कोऑर्डिनेटर अजीत सिंह, दिल्ली एम्स और एशिया लेवल के ट्रॉमा एक्सपर्ट डॉ. संजीव कुमार घई, दिल्ली AIIMS में कोविड को लीड कर रहे डॉ. तेज प्रकाश ने तीन दिन पहले औरंगाबाद DM, डीडीसी, सिविल सर्जन, ICU इंचार्ज समेत करीब 30 डॉक्टरों की वर्चुअल मीटिंग की है। अधिकारियों ने पूरे मॉडल को समझा है। चार साल से बंद ICU कैसे शुरू कराया गया, वीडियो कॉलिंग से यह कैसे संभव हुआ, किन-किन जरूरतों को कहां से पूरा किया गया, किन-किन बातों का ध्यान रखा गया और इसमें DM, प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग का बेहतर तालमेल कैसे हुआ? जिसके कारण असंभव, संभव हुआ। इन तमाम बातों की जानकारी नेशनल कोऑर्डिनेटर व ट्रॉमा एक्सपर्ट ने ली है और इस मॉडल को बिहार के साथ देश के अन्य जिलों में लागू कराने की बात कही है।



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