DESK: पश्चिम बंगाल चुनाव को मुख्यतः टीएमसी और बीजेपी की अस्मिता की लड़ाई के तौर पर देखा जा रहा है. यहां की हॉट सीट बन चुकी नंदीग्राम में खुद ममता बनर्जी के सामने हैं बीजेपी से शुभेंदु अधिकारी. जहां दोनों ही पार्टी के नेता बंगाल के लोगों के लिए वादों का पिटारा खोल चुके हैं, वहीं नंदीग्राम की हवा कुछ बदली बदली सी महसूस हो रही है. यहां की जनता के बीच ममता बनर्जी को लेकर वो प्यार और क्रेज नहीं है जो पूरे बंगाल में नजर आता है. साफ तौर पर कहें तो यहां के लोग ‘दीदी’ से नाराज चल रहे हैं. क्या है इस नाराजगी की वजह, आइए जानते हैं.
इस नाराजगी की जड़े जाती है साल 2007 में, जब नंदीग्राम में गोलीकांड से बंगाल में हड़कंप मच गया था. माकपा के सदस्यों से कृषि भूमि बचाव कमिटी के सदस्यों की झड़प हो गई थी. इस भीषण गोलीकांड में 14 लोगों की मौत हो गई थी और नंदीग्राम के कई इलाके सुलग उठे थे. नंदीग्राम आंदोलन के जरिए शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी के लिए राजनीतिक जमीन तैयार की, जिसके बाद 2011 में टीएमसी के हाथों में बंगाल की कमान आई. पिछले 10 साल में टीएमसी सरकार के कार्यकाल में ममता बनर्जी के कई साथी अलग राह पकड़ चुके हैं. इसी बीच यह जानना भी जरूरी है कि जिन परिवारों ने नंदीग्राम गोलीकांड में बहुत कुछ खो दिया, उनके क्या हालात है और किस हद तक वे उस सदमे से उबर पाएं हैं.
नंदीग्राम के सोनाचूरा में साल 2014 में शुभेंदु अधिकारी ने स्मृति स्थल बनवाया था. इसमें 14 शहीदों की तस्वीरें भी लगी हैं. इस स्मृति स्थल पर एक शिलापट्ट भी लगा है, जिसमें बांग्ला में लिखा है कि नंदीग्राम आंदोलन में शहीद लोगों की याद में इसका निर्माण कार्य कराया गया. यहां कई ऐसे परिवार रहते हैं जिनके परिजनों की उस हिंसा में मृत्यु हो गई थी. इनके परिवारों में मौजूदा तृणमूल कांग्रेस के प्रति नाराजगी साफ थी. एक महिला ने रोषपूर्ण रवैये में कहा कि 'हमें सीढ़ी बनाकर सत्ता हासिल की गई, फिर हमें भुला दिया गया।' इसके अलावा यहां मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव है. सरकारी नल से पिछले तीन साल से खराब है मगर किसी ने सुध नहीं ली. महिलाओं को पानी लेने 3 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. परिवार ने बताया कि शुरुआत में तीन लाख रुपये दिए गए थे. इसके बाद ना तो टीएमसी के कार्यकर्ता ना ही खुद ममता बनर्जी ने कभी हाल नहीं जाना. हम चुनाव के लिए महज राजनीतिक मोहरा बन चुके हैं.