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पटना में 'भूमिहार ओबीसी संघर्ष मोर्चा' ने बैठक का किया आयोजन, समाज को की ओबीसी श्रेणी में शामिल करने की मांग, आन्दोलन का किया ऐलान

पटना में 'भूमिहार ओबीसी संघर्ष मोर्चा' ने बैठक का किया आयोजन, समाज को की ओबीसी श्रेणी में शामिल करने की मांग, आन्दोलन का किया ऐलान

PATNA : आज "भूमिहार ओबीसी संघर्ष मोर्चा" के बैनर तले आईएमए हॉल, पटना में राज्य स्तरीय बैठक की गई। सभा ने सर्वसम्मति से बिहार सरकार की हालिया जातीय सर्वेक्षण रिपोर्ट के मद्देनजर भूमिहारों के लिए ओबीसी दर्जे की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया, जो स्पष्ट करता है कि सामान्य श्रेणी की जातियों में, भूमिहार समुदाय का एक-चौथाई (27.58%) से अधिक जनसंख्या गरीबी से ग्रस्त अर्थात गरीबी रेखा से नीचे पाया गया। जिसकी स्थिति दयनीय है। साथ ही, 18.60% आबादी 6000/- रुपये से 10,000/- रुपये के बीच कमा रही है। यानि करीब आधी आबादी की कमाई कुछ राज्यों के मनरेगा योजना के तहत कार्यरत दिहाड़ी मजदूरों से भी कम है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2.57 लाख (6.86% आबादी) भूमिहार मिस्त्री / मजदूरी करके अपना जीवन यापन कर रहे हैं। सवा लाख से अधिक (14.95% ) परिवार खपरैल / टीन छत के नीचे तो 20 हजार से अधिक परिवार झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं। 35.7 लाख लोग यानि 95.2% आबादी के पास कंप्यूटर/ लैपटॉप की सुविधा तक नहीं है। 33.8 लाख यानि 90.1% आबादी के पास कोई मोटर यान नहीं है। 42.56% आबादी शैक्षणिक स्तर पर 10वीं पास भी नहीं है। 90% आबादी स्थायी रूप से बिहार में ही रह रही है जो राज्य की अर्थव्यवस्था पर व सरकारी नीतियों पर ही अपने विकास के लिए निर्भर है।

मोर्चा के कोर कमिटी सदस्य आलोक कुमार सिंह व साकेत बिहारी शर्मा ने कहा कि इस समुदाय की दयनीय स्थिति के लिए सरकारों की कठोर नीतियों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। जिन्होंने पहले जमींदारी प्रथा को खत्म कर दिया, फिर भूमि सीलिंग हुई। जिसके तहत भूमि के बड़े हिस्से को जब्त कर लिया गया और 70 के दशक से बड़े पैमाने पर चल रहे नक्सल आंदोलन का खामियाजा भुगतना पड़ा। इसमें जो कुछ भी बचा, वह आगे की पीढ़ियों के बीच विभाजन के कारण नष्ट हो गया। इसके अलावा, जर्जर राज्य अर्थव्यवस्था के कारण, कृषि विकास न के बराबर हो सकी। साथ ही यह पूंजी प्रधान हो गई है और छोटे जमीन के टुकड़ों में बहुत कम रिटर्न देती है। इसलिए सरकारी और निजी नौकरियों के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा पर निर्भरता कई गुना बढ़ चुकी है। दूसरी ओर, 90 के दशक की शुरुआत से, राजनीतिक व्यवस्था ने गांव स्तर के ब्लॉक से लेकर मुख्यमंत्री सचिवालय तक किसी भी विशेषाधिकार से समुदाय को वंचित करने और बाहर निकालने का काम किया है।

कोर कमिटी सदस्य रविनंदन सिंह का कहना था कि यह लंबे समय से मिथक रहा है कि ऊंची घोषित जातियां ओबीसी श्रेणी में शामिल नहीं की जा सकतीं। लेकिन, यह स्पष्ट करने की आवश्यकता है कि ओबीसी का मतलब वर्ग है, न कि जाति, यहां तक कि राजपूत भी कर्नाटक केंद्रीय सूची में ओबीसी के अंतर्गत आते हैं। इसी तरह, वैश्य समुदाय को कई राज्यों में ऊंची जाति माना जाता है, जबकि बिहार में यह ओबीसी सूची में है। इसी तरह, मोध-घांची समुदाय, जिससे प्रधानमंत्री मोदी आते हैं, को 2002 में जाकर पिछड़ा जाति घोषित किया गया। जब इसे केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल किया गया।

समाजसेवी उदय कुमार व कोर कमिटी सदस्य अविनाश सिंह का कहना है कि राज्य सरकार के द्वारा घोषित जातीय जनगणना के आंकड़े देखने के बाद यह स्पष्ट हुआ की भूमिहार समाज में व्याप्त गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी दर काफी बढ़ चुकी है। पिछड़े वर्गों के लिए पूर्व में घोषित आयोगों ने मुख्यतः इन्हीं मानकों को आधार बनाकर कई जातियों को ओबीसी दर्जे में समाहित किया। आज की वर्तमान स्थिति में भूमिहार समाज भी उसी पायदान पर आकर खड़ा हो गया है। जिसके आधार पर इस समाज को भी ओबीसी दर्जे में समाहित करने की आवश्यकता है। आज कई मानकों में भूमिहार से आगे कई जातियों को ओबीसी दर्जे में समाहित कर तमाम लाभ दिए जा रहे हैं। इन्हीं सब व्यवहारिक कारणों को संज्ञान में लेते हुए मोर्चा का गठन किया गया है ताकि हमारे समुदाय को समय रहते वाजिब हक का लाभ दिलाया जा सके। मोर्चा अब इस मांग को लेकर गांव गांव तक जाएगा एवं सम्पूर्ण बिहार में पदयात्रा / रथयात्रा का कार्यक्रम तय किया जाएगा।

कोर कमिटी सदस्य शिवम सौरभ सिंह ने कहा कि भूमिहार समाज का सामाजिक, राजनैतिक, कार्यपालिका, न्यायपालिका और प्राइवेट क्षेत्रों के भागीदारी में लगातार हो रही गिरावट से समाज बृहद तौर पर कमजोर हुआ हैं। 65% आरक्षण आगे आनेवाले दिनों में पंचायती राज के चुनावों में भी लागू होगा जो हमारे घटती भागीदारी को लगभग शून्य ही कर देगा। एक तरफ हमारे बाहुल्य सीटों को रिजर्व किया जा रहा है। वहीं बढ़ती गरीबी हमें सिस्टम से ही बाहर कर देगा। 25% सामान्य कोटे में तो अब डोमिसाइल की नीति को ही सरकार ने खारिज कर दिया है। जिससे सामान्य वर्ग में रहते हुये भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसलिए समय की मांग हैं ओबीसी दर्जा। मोर्चा के लोग लक्ष्य से पीछे हटने या भटकने वाले नहीं हैं। बड़ी जोरदार जमीनी लड़ाई की तैयारी है, हम लड़ने वाले लोग हैं, अपने हक के लिए लड़ेंगे और हमारा समाज फिर से जीतेगा।

कोर कमिटी सदस्य सोनिक सौरभ ने भविष्य के अभियानों की जानकारी देते हुये कहा कि पूरा अभियान तीन चरणों में चलना है। पहला चरण सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के उपयोग के माध्यम से जागरूकता है क्योंकि अधिकांश आबादी हालिया सर्वेक्षण के निष्कर्षों से अवगत नहीं है। आजादी के बाद से भारी आर्थिक गिरावट का आँकलन करने में असमर्थ है। दूसरा चरण, आम उपेक्षित तबके से जुड़ना होगा। जिसे सरकार से नीतिगत समर्थन की सख्त जरूरत है और इस अभियान को एक आंदोलन में बदलना होगा। तीसरा चरण आखिरी होगा, जब हम ओबीसी श्रेणी में शामिल करने की एकमात्र मांग को स्वीकार करने के लिए सार्वजनिक दबाव बनाएंगे। इसमें शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक जन विरोध व प्रदर्शन शामिल होंगे। आंदोलनों का लक्ष्य, भूमिहार को केंद्रीय और राज्य सूची में ओबीसी में शामिल करना है जहां परस्पर प्रतिद्वंदी पार्टियां सत्ता में हैं। सभा को विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले लोगों ने संबोधित करते हुये इस माँग का पुरजोर समर्थन किया। सभा में मोर्चा के जिला संयोजकों के नामों की घोषणा हुई। साथ ही मोर्चा के दस सदस्यीय कोर कमिटी के लिए 6 नामों की घोषणा हुई। जिनमें आलोक कुमार सिंह, साकेत बिहारी शर्मा, रविनंदन सिंह, अविनाश सिंह, शिवम सौरभ सिंह व सोनिक सौरभ शामिल हैं।


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