समस्तीपुर जिले के विभूतिपुर प्रखंड स्थित सिरसी वार्ड दो का संजय साजन इन दिनों बांस की साइकिल बना कर सुर्खियों में है। संजय छोटे-मोटे कार्यक्रमों में डेकोरेशन का काम करते हैं, और इसके लिए वह पुरानी टूटी साइकिल का उपयोग कर रहे थे। जब पुरानी साइकिल की समस्याएं बढ़ने लगीं, तो संजय ने नई साइकिल खरीदने की सोची। हालांकि, गरीबी के चलते बाजार की ओर रुख करने के बजाय, उन्होंने जुगाड़ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर बांस के फ्रेम वाली साइकिल बनाई, जो सभी को हैरान कर रही है।
संजय ने बताया कि इस साइकिल को तैयार करने में उन्होंने 500 रुपये खर्च किए और 25 दिनों की मेहनत की। पुरानी साइकिल की रिम को मरम्मत कर उपयोगी बनाया। उनका दावा है कि बाजार में बिकने वाली अन्य साइकिलों की तुलना में यह बांस की साइकिल अधिक बेहतर और आरामदायक है, और इसका उपयोग रेसिंग के लिए भी किया जा सकता है। संजय का उद्देश्य बांस की कला को फिर से जीवित करना और बेरोजगार युवाओं को रोजगार से जोड़ना है। इस साइकिल के निर्माण में हस्तशिल्प का प्रयोग किया गया है, जो कि बांस की विशेषताओं को उजागर करता है।
उत्क्रमित मध्य विद्यालय लगुनियां सूर्यकंठ के हेडमास्टर सौरभ कुमार बताते हैं कि बांस की साइकिल फिलीपींस में भी बदलाव ला रही है। बाम्बिके रिवोल्यूशन साइकिल्स के संस्थापक ब्रायन बेनिटेज मैक्लेलैंड के लिए यह खोज जीवन बदलने वाली थी। ब्रायन को 2007 में अफ्रीका की यात्रा के दौरान बांस की साइकिल मिली। उन्हें तुरंत एहसास हुआ कि यह नवाचार उनके देश में भी विकसित किया जा सकता है, जहां बांस प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। 2009 में उन्होंने अपनी पहली बांस की साइकिल बनाई। बांस में ऐसे गुण होते हैं जो साइकिल चलाने के लिए आदर्श होते हैं। बैम्बिक साइकिल अब सांस्कृतिक विरासत और पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। ऐसे में समस्तीपुर के 'गांव के विश्वकर्मा' संजय को प्रोत्साहित करने की जरूरत है, जिन्होंने बांस की कला और नवाचार को एक नई दिशा दी है।