बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका, 5 लाख का जुर्माना लगाते हुए कहा- यह जाति नहीं है एसटी

दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने एक जाति को अनुसूचित जनजाति के रूप में शामिल करने के बिहार सरकार के निर्णय को गलत करार देते हुए याचिकाकर्ता को 5 लाख रुपए देने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने लोहार जाति को एसटी मानने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि लोहार और लोहारा दो भिन्न जातियां हैं. एक जैसा नाम होने के कारण लोहार को एसटी नहीं माना जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में लोहार जाति को अनुसूचित जनजाति यानी एसटी में शामिल करने के बिहार सरकार के आदेश को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि लोहार और लोहरा जाति एक नहीं है. न्यायाधीश के एम जोसेफ औऱ जस्टिस ऋषिकेश रॉय की खंडपीठ ने कहा कि लोहार को एसटी में शामिल करना पूरी तरह से गैरकानूनी और मनमानी है. इसे लोहारा के साथ जोड़कर नहीं देखा जा सकता है.
दरअसल लोहार जाति शुरू में अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं था. उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया था. कोर्ट ने कहा कि संविधान की धारा 342 के तहत अनुसूचित जनजाति में शामिल जातियों की सूची में राज्य सरकार जैसी किसी अक्षम संस्था फेरबदल नहीं कर सकती है. कोर्ट ने ये भी साफ किया कि लोहरा जाति के लोगों को अनुसूचित जनजाति का लाभ मिलता रहेगा.
याचिकाकर्ता सुनील कुमार राय समेत अन्य लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर बिहार सरकार के फैसले को चुनौती दी थी. याचिका दायर करने वालों ने कोर्ट से मांग की थी कि लोहार जाति के लोगों को अनुसूचित जनजाति का सर्टिफिकेट जारी करने वालों के खिलाफ अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत कार्रवाई करना चाहिये. जवाब में बिहार सरकार ने कहा कि उसने 2016 में ही ये आदेश जारी किया था. किसी आदेश के जारी होने के पांच साल बाद तक ही उसे चुनौती दी जा सकती है. वह समय सीमा पार कर चुकी है इसलिए सुप्रीम कोर्ट को ये याचिका स्वीकार नहीं करना चाहिये.
इस पर कोर्ट ने बिहार सरकार की दलील को मानने से इंकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विनय प्रकाश बनाम राज्य सरकार के मामले में 1997 में, नित्यानंद शर्मा बनाम राज्य सरकार के मामले में 1996 में और प्रभात कुमार शर्मा बनाम यूपीएससी के मामले में 2006 में कोर्ट ये साफ कर दिया था कि लोहार जाति अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं है औऱ वह अन्य पिछड़ी जाति में शामिल है. कोर्ट ने बिहार सरकार को याचिकाकर्ता को 5 लाख रुपए देने कहा है.