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बिहार में नीतीश लालू के कास्ट पॉलिटिक्स का बीजेपी ने खोज लिया काट!, 82 फिसदी आबादी पर भाजपा की पैनी नजर, क्या जातीय समीकरण पर भारी पड़ेगा हिंदुत्व का दंगल, पढ़िए इनसाइड स्टोरी...

 बिहार में नीतीश लालू के कास्ट पॉलिटिक्स का बीजेपी ने खोज लिया काट!, 82 फिसदी आबादी पर भाजपा की पैनी नजर, क्या जातीय समीकरण पर भारी पड़ेगा हिंदुत्व का दंगल, पढ़िए इनसाइड स्टोरी...

पटना- बिहार में पहली बार होगा जब लोकसभा चुनाव में नीतीश-तेजस्वी की जोड़ी साथ होगी. इस जोड़ी ने 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में धमाल मचाया था. भाजपा दूसरे राज्यों में जहाँ समीकरण बिठाते हुए सरकार बनाए जा रही थी, वहीं बिहार में उनकी बनी बनाई सरकार गिर गई. साल 1989 में बिहार के भागलपुर में दंगे के बाद कांग्रेस सत्ता में आज तक नहीं लौट पाई, दंगे के वक़्त कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिंह थे. सत्येंद्र नारायण सिंह इस दंगे के बाद बिहार की राजनीति से ग़ायब हो गए.  भागलपुर दंगे ने बिहार में हिंदुत्व की राजनीति को ज़मीन दी, लेकिन लालू प्रसाद यादव की दस्तक ने इस ज़मीन को उर्वर नहीं बनने दिया. ''एक तरफ़ लालू यादव ने मुसलमानों को आश्वस्त किया कि वो कांग्रेस सरकार में हुए दंगे को फिर से नहीं होने देंगे और बीजेपी के हिंदुत्व को भी सख़्ती से रोककर रखेंगे. इसके अलावा लालू ने कांग्रेस के राज में बने सवर्ण नेतओं के वर्चस्व को इस क़दर तोड़ा कि 1990 के बाद से कोई सवर्ण नेता बिहार का मुख्यमंत्री नहीं बन सका.  मंडल राजनीति के प्रभाव के बीच बीजेपी ने राम मंदिर आंदोलन को आगे किया. इस तरह से देश के राजनीतिक पटल पर दोनों मुद्दे ज्वलंत हो गए. 'तत्कालीन राजनीतिक परिदृश्य में हिंदुत्व के प्रतीक आडवाणी की गिरफ़्तारी से लालू प्रसाद यादव ने वोट बैंक की राजनीति के सारे लाभ साध लिए और इसे अपनी व्यक्तिगत उपलब्धि बताया. इस घटना ने उन्हें मुसलमानों के बीच लोकप्रिय बना दिया. बिहार की राजनीति में अब तक ऐसा कोई नेता नहीं हुआ था, जो मुसलमानों के हितों और आकांक्षाओं को लेकर इतना मुखर रहा हो.'बिहार में 'जाति की वजह से नेता हैं. अगर उनकी जाति ही नहीं रहेगी, तो वो नेता अप्रासंगिक हो जाएँगे. 

बीजेपी हिंदुत्व की राजनीति में अब उन जातियों को एकजुट कर रही है, जो अपने प्रदेश में कभी प्रभुत्व में नहीं थीं और इनका कोई अपना नेता नहीं था. जातीय पहचान की राजनीति का अभी अंत नहीं हुआ है और वह हिंदुत्व की राजनीति भी खत्केम नहीं हुई है.बीजेपी के नेता हिंदू एकता का नारा बुलंद करते रहते हैं. ' जनगणना के धार्मिक डेटा का इस्तेमाल इस नैरेटिव को हवा देने में किया जाता है कि एक ऐसा समय आएगा जब हिंदुओं की आबादी मुसलमानों से कम हो जाएगी.बीजेपी एक साथ हिंदुत्व और जाति दोनों को साधने में लगी है.  बीजेपी जनगणना में धर्म के आधार पर लोगों की आबादी का डेटा जारी करने में परहेज नहीं करती है.

नीतीश कुमार ने तो जाति आधारित गणना के पहले से ही पिछड़े-अति पिछड़े वोट बैंक को अपने पाले में लाने में जुटे थे.वहीं, बीजेपी नीतीश कुमार के कोर वोटरों कोइरी और कुर्मी को पर सेंध लगाना शुरु कर दिया था.राजद के पास अपने मुस्लिम और यादव वोटर  हैं तो जातीय सर्वे से खुलासा हो गया कि सबसे बड़ी आबादी ओबीसी की है. 63 फीसदी ओबीसी में 27 फीसदी पिछड़ा और 36 फीसदी अत्यंत पिछड़ा वर्ग है. अब बिहार की राजनीति पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा के बीच आ गई.कांग्रेस भी सवर्ण, पिछड़ा, अति पिछड़ा वोटरों को रिझाने की कोशिश में जुटी हुई थी. जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी होने के बाद बिहार में राजनीतिक खेल बदल गया है.

अब बिहार में जाति बनाम धर्म की राजनीति होती सी दिख रही है. बीजेपी के साथ पहले से ही सवर्ण मतदाता थे. तो भाजपा  लव कुश के साथ पासवान जाति के लोगों को साधने में लगी है.वहीं  सर्वे के बाद बीजेपी अपना हिंदू कार्ड खेलना शुरू कर दिया है.भाजपा हिन्दूओं को जाति में बांट कर राजनीति करने से परहेज कर रही है. बिहार में यादव और मुस्लिम वोट भाजपा को नहीं मिलता है, ये पार्टी जानती है. ऐसे में भाजपा 19.65 फीसदी अनुसूचित जनजाति, 4.21 प्रतिशत कोइरी, 3.65 प्रतिशत ब्राह्मण 3.45 फीसदी राजपूत, 2.87% भूमिहार के अलावा मल्लाह, नाई, लोहार, कुम्हार, तेली बनिया, बढ़ाई, कुर्मी, कानू, धानुक, कहार एक से ढाई फीसदी वाली जातियों को भाजपा अपने साथ जोड़ने की रणनीति में जुटी है. बिहार में भाजपा के पास कट्टर हिन्दूत्व कार्ड के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है. इसी के तहत भाजपा ने अपने फायर ब्रांड नेता केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को आगे कर दिया है. गिरिराज को आगे कर भाजपा ने संदेश दे दिया है कि आगे उसका रास्ता क्या होगा. भाजपा की नजर बिहार के 81 फिसदी हिन्दू जनसंख्या पर है. भाजपा को लगता है कि हिंदू कार्ड खेलने से भले हीं मुस्लमानों का वोट उसे न मिले जो पहले भी नहीं मिलता था  लेकिन उसे इससे कुछ यादव भी उसके साथ आ सकते हैं.भाजपा का मानना है कि जाति पर आधारित राजनीति से लड़ने के लिए धर्म पर आधारित राजनीति कारगर साबित हो सकती है.




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