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बीजेपी के भीष्म पितामह की जयंती आज : कैलाशपति मिश्र को भूल गए वर्तमान पीढ़ी के भाजपाई नेता, अब नहीं देते सम्मान, पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे के करीबी ने कही दिल की बात

बीजेपी के भीष्म पितामह की जयंती आज : कैलाशपति मिश्र को भूल गए वर्तमान पीढ़ी के भाजपाई नेता, अब नहीं देते सम्मान, पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे के करीबी ने कही दिल की बात

PATNA : भाजपा के लिए आज का दिन बेहद खास है। आज बीजेपी के संस्थापक सदस्य कैलाशपति मिश्र की जयंती है। इस अवसर उनके बेहद करीबी और पूर्व एमएलसी कृष्ण कुमार सिंह (कुमार साहब) ने मौजूदा भाजपा में श्री मिश्र की स्थिति और उनके अनछुए पहलुओं पर न्यूज4नेशन के साथ खुलकर बात की। उन्होंने बताया कि कैलाशपति मिश्र जैसा व्यक्तित्व की परिकल्पना आज बिहार के लिए मुश्किल है। वह सभी के लिए प्रेरित करनेवाले शख्सियत थे। 

श्री मिश्र का जिक्र करते हुए कुमार साहब बताते हैं कि वह व्यक्ति नहीं,बल्कि पूरा संगठन थे, उन्होंने जैसी बिहार की कल्पना की थी, अगर आज वह बिहार बन जाए, तो देश में सर्वांगीन विकास करते हुए देश में अव्वल दर्ज को प्राप्त कर सकता है। बिहार में जन संघ की स्थापना हुई तो उन्हें सूबे को मजबूत करने की जिम्मेदारी मिली। वह बिहार के कोने कोने में गए, लेकिन कभी किसी ने उनकी जाति नहीं पूछी, हर कोई उन्हें कैलाश जी के नाम से जानता था। उन्होंने न सिर्फ अविभाजित बिहार के लिए काम किया, बल्कि पं. बंगाल, दिल्ली और आसाम में जन संघ के लिए काम किया। बाद में वह गुजरात के राज्यपाल भी बने।


कार्यकर्ताओं से था स्नेह

कैलाशपति जी का अपने कार्यकर्ताओं से बड़ा स्नेह था, कार्यकर्ता भी अभिवावक मानते थे। कुमार साहब ने 1978 की एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उस समय कैलाश जी वित्त मंत्री थे। मैं गया से पटना आ रहा था. उसी समय कैलाश जी की गाड़ी वहां से जा रही थी, मैंने उन्हें नहीं देखा, लेकिन उन्होंने देख लिया और गाड़ी रोक दी। थोड़ी देर बाद उनका गार्ड आया और मुझे बताया कि साहब बुला रहे हैं। जितने भी भाजपा पदाधिकारी उस समय थे, सभी को कैलाश जी ने जोड़ा, और उन्हें कभी बीजेपी से अलग नहीं होने दिया। यही कारण थी कि भाजपा के शीर्ष नेताओं में उनका नाम शामिल किया जाता था।

कैलाशपति मिश्र का यह सपना अधूरा

कुमार साहब ने बताया कि वह किसान परिवार से थे। इसलिए वह हमेशा से ही किसानों के ही हित के लिए सोचते थे, जब वित्त मंत्री रहे तो भी किसानों के लिए योजनाओं पर ही जोर दिया। साथ ही दलितों के विकास के लिए सबसे ज्यादा काम किया। आज जिस सोशल इंजीनियरिंग की चर्चा की चर्चा की जा रही है, उसका सबसे पहले इस्तेमाल कैलाश बाबू ने ही किया था। उनके बाद दूसरे लोग भी सोशल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल करने लगे।

जब छोड़ दी अपनी राज्यसभा सीट

कैलाशपति मिश्र को नजदीक से समझनेवाले कुमार साहब बताते हैं कि एक बार उन्हें राज्य सभा के उम्मीदवार बनाया गया, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया और अपनी जगह एक दलित चेहरे को आगे बढ़ने का मौका दिया। कामेशर पासवान को राज्यसभा भेजा।

कैलाशपति मिश्र मेमोरियल ट्र्स्ट को भूली बीजेपी

कुमार साहब इस बात पर दुख जताते हैं कि जिस कैलाशपति मिश्र ने भाजपा को बनाया, जिन नेताओं को उन्होंने बनाया, आज वह उन्हें भूल गए हैं। उन्हें वह सम्मान नहीं मिल रहा है। यहां तक कि उनके नाम पर बने कैलाशपति मेमोरियल ट्र्स्ट के पास बैठने के लिए कुर्सी तक की सुविधा नहीं है। यह बहुत दुख पहुंचानेवाला है।

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