सीएम नीतीश के गेम प्लान में फंसेगी भाजपा या फिर शाह के जाल में फंस गए हैं नीतीश, बहुत कुछ स्पष्ट होने लगा है,पढ़िए पूरी खबर....

NEWS4NATION DESK : बिहार की राजनीति के शतरंजी बिसात पर कब कौन किसका साथ छोड़ दे कहना बड़ा मुश्किल है। खासकर क्षेत्रीय पार्टियों में से 2 जदयू और लोजपा प्रेशर पोलटिक्स के माहिर खिलाड़ी रहे हैं। दोनो के मुखिया कब किस समय किस बात पर अपना पोलटिक्सबाजी की बाजी खेलने लगे इसका अनुमान लगाना कठिन तो है लेकिन मुश्किल नहीं।
फिलहाल जो एनडीए गठबंधन के दोनों बड़े दलों, भाजपा और जदयू का जुबानी अंदाज दिख रहा है वह राजनीतिक गलियारों के लिखाडों को सोचने पर विवश कर दिया है।
क्या हो रहा है,राजनीतिक बोल को समझिये
आज दही चूड़ा खा लीजिये 19 के बाद बाकी मुद्दों पर बात करेंगे, प्रधानमंत्री आवास योजना में बहुत सारे लोग छूट गए हैं उनलोगों को मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत उसका लाभ दिया जाएगा।
एनआरसी, एनपीआर सीएए और आवास योजना जैसे मुद्दों पर यह बिहार के सीएम नीतीश का मकर संक्रांति के दिन के ये सब सियासी जुमले हैं। वहीं सीएम नीतीश के करीबी और प्रिय राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर एनसीआर एनपीआर और सीए जैसे मुद्दों पर नीतीश कुमार से मिलाजुला राजनीतिक बोल बोलते रहे हैं।
वहीं दूसरी तरफ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने एनआरसी,एनपीआर और सीएए जैसे मुद्दों पर सब कुछ क्लियर कर दिया है। गाहे-बगाहे बिहार के कुछ अख्खड़ मिजाज बीजेपी नेता भी सीएम नीतीश को जुबानी चोट करने से नहीं चूकते।
यह देखा गया है कि तल्खी बढ़ने के बाद नीतीश और सुशील मोदी अपने जुबानी खाद से गठबंधन को आबाद करने की कोशिश करते रहे हैं। सबको याद होगा कि 2010 के बाद भी जुबानी जंग की शुरुआत का अंत क्या हुआ था। सीएम नीतीश के बोल भी बदले बदले से नजर आने लगे हैं,अब देखना यब होगा कि आगे क्या होता है।
क्या यह बिहार चुनाव से पहले का सिर्फ प्रेसर पोलटिक्स है या कुछ और?
जी हां, बिहार के विधानसभा चुनाव का करीब करीब उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है,बड़ा भाई और छोटा भाई साबित करने का वक्त भी आ रहा है। लोकसभा चुनाव में बराबरी पर दावं छूटा था, लेकिन विधानसभा में जदयू ऐसा होने देना कतई नहीं चाहता। तो फिर क्या भाजपा 2010 वाले फॉर्मूला पर ही चुनाव लड़ेगी या फिर बराबर का हक मांगेगी।
बीजेपी के कुछ नेताओं का मानना है कि अगर बराबरी का सौदा नहीं हुआ तो फिर 20 का सियासी जंग भाजपा खुद लड़ेगी। वहीं जदयू के नेताओं का कहना है कि सीट बंटवारे का समय तो आने दीजिये तब भाजपा को पता चलेगा कि उसकी औकात क्या है?
कुल मिलाकर जदयू का शीर्ष नेतृत्व भी सियासी थर्मामीटर भिड़ाकर राजनीतिक गलियारे का टेम्परेचर नापने में जुट गया है,बुखार के हिसाब से रह रहकर दवा का डोज दिया जा रहा है। देखना यह कि समय आने पर वोमिटिंग जैसी टेंडेंसी रुकती है यह नहीं। अगर न रुके तो समझिये की गठबंधन का सत्यानाश तय है।
क्या चाहता है बिहार भाजपा का शीर्ष नेतृत्व?
कभी-कभी भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व प्रदेश में बह रहे सियासी बयार की धार को सम्हाल नहीं पता। इसका नतीजा हालिया कई राज्यो में हुए विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिल चुका है। बिहार भाजपा का शीर्ष नेतृत्व यानी सुशील मोदी आदतन सीएम नीतीश के प्रति काफी सुशील रहे हैं। उनकी हर बातों की वकालत खुद कर जाते हैं,कुछ नेता चाहे जो कह लें अंत में चलती मोदी जी की हीं है। मोदी जी एकदम से जदयू से लटपटाये रहना चाहते हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जदयू कैसे रहना चाहती है। बोली कि गोली का डोज सीएम नीतीश भी बढाने में जुट गए हैं हालांकि मोदी जी कल भी एनडीए को भारी बहुमत से जिताने में लगे हुए थे। अब देखना यह होगा कि मुंह वाल दांत काम करता है कि पेट वाला।