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सरकारी अस्पताल की जांच में महज 2310 प्लेटलेट लेकिन पूर्णतः स्वस्थ हैं छपरा का युवक, असली हकीकत जानकर पिटने लगेंगे सिर

सरकारी अस्पताल की जांच में महज 2310 प्लेटलेट लेकिन पूर्णतः स्वस्थ हैं छपरा का युवक, असली हकीकत जानकर पिटने लगेंगे सिर

CHHAPRA : बिहार की सरकार यह कहती है सरकारी अस्पतालों में जांच की सुविधा बेहतर है। यहां हर प्रकार की जांच की व्यवस्था है। लेकिन, यहां होनेवाली जांच की रिपोर्ट कितनी विश्वसनीय है। यह छपरा के सदर अस्पताल से आई डेंगू की एक रिपोर्ट को देखकर समझी जा सकती है। यहां डेंगू की एक रिपोर्ट में आकाश कुमार नाम के युवक की प्लेटलेट्स सिर्फ 2310 बताई गई। लेकिन विज्ञान को गलत साबित करते युवक पूरी तरह से स्वस्थ नजर आ रहा है। जबकि 25000 से कम प्लेटलेट्स होने पर मरीज को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आ जाती है। 

यह है पूरा मामला 

दरअसल,  चिकित्सकों के लिखे पुर्जे के अनुसार युवक आकाश कुमार छपरा सदर अस्पताल स्थित जांच घर में ब्लड सहित अन्य जांचे करवाई।सदर अस्पताल में जांच करवाने के बाद छपरा सदर अस्पताल से आई जांच रिपोर्ट को देखकर युवक आकाश सहित चिकित्सक भी दंग रह गए।सदर अस्पताल से आई जांच रिपोर्ट में युवक के प्लेटलेट की संख्या मात्र 2310 बताई गई। सदर अस्पताल से आई रिपोर्ट को देखकर जानकारों ने बताया कि मात्र 2310 प्लेटलेट पर युवक का चलना,फिरना सब असंभव सा प्रतीत होता है। हालांकि युवक आकाश ने अपना रक्त का नमूना प्राइवेट जांच लैब को भी दिया है। जिसकी रिपोर्ट फिलहाल आना बाकी है।

प्राइवेट जांच कराई तो सच आया सामने

सरकार के सदर अस्पताल की रिपोर्ट पर शक होने के बाद आकाश ने प्राइवेट लैब में जांच कराने का फैसला लिया। जहां कुछ अलग ही रिपोर्ट सामने  आ गई। जहां सरकारी लैब की जांच में प्लेटलेट्स सिर्फ 2310 थी और डॉक्टर भी हैरान थे, वहीं दूसरी तरफ प्राइवेट जांच में आश्चर्यजनक रूप से बढ़कर 1.93 लाख पहुंच गई। जाहिर है कि यह रिपोर्ट सही था, क्योंकि युवक पूरी तरह से स्वस्थ नजर आ रहा था। 

लेकिन, प्राइवेट लैब की रिपोर्ट ने सरकारी व्यवस्था को कठघरे में खड़ा कर दिया।  सवाल उठता है कि जिले के सबसे बड़े अस्पताल के जांच घर की रिपोर्ट ही जब सही नहीं आ रही है तो उसके आधार पर मरीजों का उपचार किस तरह किया जाता होगाा, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

बता दें कि बिहार स्वास्थ्य विभाग ने सभी जिलों के सरकारी अस्पतालों में लगभग ऐसी ही नजर आ रही है। जहां ज्यादातर काम प्राइवेट एजेंसी के तहत ही कराए जाते हैं।


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