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आयरन लेडी इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि: बिहार के राज्यपाल,सीएम ने दी श्रद्दांजलि , सोनिया, राहुल और कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने शक्ति स्थल पर पेश किए अकीदत के फूल

आयरन लेडी इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि: बिहार के राज्यपाल,सीएम ने दी श्रद्दांजलि , सोनिया, राहुल और कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने शक्ति स्थल पर पेश किए अकीदत के फूल

पटना-31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि है. उन्हें भारत की आयरन लेडी कहा जाता है. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सहादत दिवस पर राज्यपाल, मुख्यमंत्री समेत कई मंत्रियों ने आइजीआईएमएस परिसर में स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हे भावभीनी श्रद्दांजलि दी. इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि को राष्ट्रीय संकल्प दिवस के रुप में मनाया जा रहा है.पटना  में राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर, सीएम नीतीश कुमार, मंत्री अशोक चौधरी, विजय चौधरी, जदयू के वरिष्ठ नेता छोटू सिंह और रंजित झा सहित  कांग्रेस के प्रेम चंद्र मिश्रा ने इंदिरी गांधी को श्रद्धांजलि दी.

दिल्ली  में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी सांसद राहुल गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनकी पुण्यतिथि पर शक्ति स्थल पर श्रद्धांजलि दी. बता दें 1984 में स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार की सैन्य कार्रवाई के पांच महीने के बाद आज के ही दिन उनके ही दो अंगरक्षकों ने इंदिरा गांधी की हत्या कर दी थी. वह भारत की एकमात्र महिला प्रधान मंत्री थीं. उन्होंने जनवरी 1966 से मार्च 1977 तक और फिर जनवरी 1980 से अक्टूबर 1984 में अपनी हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया. इंदिरा गांधी को ‘भारत की लौह महिला’ के रूप में जाना जाता है.

इंदिरा का जन्म 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद में हुआ था. वह आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की इकलौती संतान थीं.लालबहादुर शास्त्री के बाद प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा को शुरू में 'गूंगी गुड़िया' की उपाधि दी गई थी, लेकिन 1966 से 1977 और 1980 से 1984 के दौरान प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा ने अपने साहसी फैसलों के कारण साबित कर दिया कि वे एक बुलंद शख्यिसत की मालिक हैं. 

आपातकाल लगाने का काफी विरोध हुआ और उन्हें नुकसान उठाना पड़ा लेकिन चुनाव में वे फिर चुनकर आईं. इंदिरा की राजनीतिक छवि को आपातकाल की वजह से गहरा धक्का लगा. इसी का नतीजा रहा कि 1977 में देश की जनता ने उन्हें नकार दिया, हालांकि कुछ वर्षों बाद ही फिर से सत्ता में उनकी वापसी हुई. 1980 का दशक खालिस्तानी आतंकवाद के रूप में बड़ी चुनौती लेकर आया. ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद वे सिख अलगाववादियों के निशाने पर थीं. 31 अक्टूबर 1984 को उनके दो सिख अंगरक्षकों ने ही उनकी हत्या कर दी.

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