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Big Breaking: बालू घाट का टेंडर हुआ रद्द,प्रदेश के कई बालू घाटों का टेंडर भी एजेंसी के रडार पर,पढिये आगे क्या होगा...

Big Breaking: बालू घाट का टेंडर हुआ रद्द,प्रदेश के कई बालू घाटों का टेंडर भी एजेंसी के रडार पर,पढिये आगे क्या होगा...

बांका जिले के बालू घाटों का टेंडर रद्द, प्रदेश के अन्य नदी घाटों का टेंडर भी खतरे में।

पटना,न्यूज़4नेशन। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण(एन जी टी) द्वारा बुधवार को बांका जिले में चानन/चंदन नदी के बालू घाट को लेकर सुनाए गए फैसले के बाद राज्य भर के बालुघाटों  बंदोबस्तधारियों 2019-20 के बीच बेचैनी छा गई है। एनजीटी ने बांका के एक किसान द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के बाद 2020 में नए बंदोबस्ती के अंतर्गत निर्गत चानन/चंदन बालू घाट की बंदोबस्ती को पर्यावरण की दृष्टि से गैरकानूनी मानते हुए अवैध घोषित कर दिया है। प्राधिकरण ने जिन मुद्दों के आधार पर यह फैसला लिया है ऐसे में संभावना बन रही है कि प्रदेश में 2019-20 के अंतर्गत नए बंदोबस्ती में निर्गत सभी बालूघाट अवैध घोषित न हो जायें।

प्राधिकरण ने अधिकारियों के रवैये पर गहरा असंतोष जताया

पिछले माह  23 सितंबर को दिए अपने फैसले से प्राधिकरण ने प्रदेश के खनन विभाग के तंत्र और उसे चलाने वाले अधिकारियों की क्षमता और निष्पक्षता पर ही प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा कि बंदोबस्ती के लिए जारी एनआईटी मनमानीपूर्ण और अनुचित है।प्राधिकरण ने नदी घाटों की बंदोबस्ती से संबंधित डिस्ट्रिक्ट सर्वे रिपोर्ट(डि एस आर) को तैयार करने वाली एजेंसियों डीईआईएए और जिला विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति ( डीईएसी) को अवैध करार दिया क्योंकि इनमें शामिल अधिकारियों/नौकरशाहों में पर्यावरण संबंधी विशेषज्ञता का सर्वथा अभाव है। इनके मनमानीपूर्ण व्यवहार संबंधित एक मुद्दे को इंगित करते हुए माननीय प्राधिकरण ने कहा कि 2019 में इन्होंने जो डीएसआर दिया था उसमें उक्त नदी/नदियों में 226 हेक्टेयर क्षेत्र में 7 खनन घाट का प्रस्ताव था जबकि एनआईटी में इसे बढ़ाकर 946 हेक्टेयर और 14 खनन घाट कर दिया गया।प्राधिकरण ने माना कि ऐसा जानबूझकर किया गया लगता है।


14 जिलों में शुरू हुई थी घाटों की नीलामी प्रक्रिया

विभाग ने पिछले दिनों पटना, रोहतास, नालंदा, लखीसराय, जमुई, गया, भोजपुर, भागलपुर, बांका, औरंगाबाद, अरवल और मुंगेर समेत 14 जिलों में बालू घाटों की नीलामी की प्रक्रिया शुरू की थी। इसके तहत वर्ष 2020 से अगले पांच वर्षों के लिए बंदोबस्ती होनी थी।ज्ञात हो कि बिहार की नई खनन नीति के खिलाफ शिकायत के बाद एनजीटी ने पिछले वर्ष 24 अक्टूबर को पूरे प्रदेश में बालू खनन के ई-ऑक्शन की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। एनजीटी ने 2 दिसंबर को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। बाद में खान एवं भूतत्व मंत्री बृजकिशोर बिंद ने बताया था कि एनजीटी ने आपत्तियों पर सुनवाई के बाद बिहार बालू खनन नीति, 2019  पर सहमति प्रदान कर दी है। इसके बाद सूबे में बालू खनन को लिए ई-ऑक्शन की प्रक्रिया आगे बढ़ाने को भी हरी झंडी मिल गई थी।सरकार ने गाजे-बाजे के साथ घोषणा की थी कि नई नीति से न सिर्फ बालू माफिया पर प्रभावी रोक लगेगी और बालू खनन पर एकाधिकार खत्म होगा, वहीं अधिक से अधिक लोगों को रोजगार भी मिलेगा।

आगे क्या हो सकता है?

बांका जिले के लिए आये इस अप्रत्याशित फैसले ने सरकार को जहां सकते में डाल दिया है वहीं खनन अधिकारी इस पर बोलने को तैयार नहीं हैं।वैसे सूचना है कि आला अधिकारियों ने आनन फानन में बैठक कर फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है।परंतु सवाल अधिकारियों के साथ सरकार पर भी उठ रहे हैं।पिछले एक साल में बालू घाटों की पुरानी बंदोबस्ती को जिसप्रकार कई बार बढ़ाया गया और अब बांका के परिप्रेक्ष्य में एनजीटी का जो फैसला आया है उससे बालूमाफ़िया के खिलाफ बनाई गई इस कथित नई खनन नीति की पोल खुलती नजर आ रही है।बालू खनन से हजारों की संख्या में रोजगार देने का सपना तो सपना ही लगता है लेकिन नई बंदोबस्ती प्रक्रिया में अपनी जिंदगी भर की पूंजी लगा चुके हजारों युवाओं और उनके परिवार की जिंदगी जरूर दांव पर लगती दिख रही है।लेकिन इसका जवाब न तो सरकार चलाने वाले किसी नेता के पास है और न ही उन 'नकारे और अक्षम' अधिकारियों के पास।

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