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क्या सीएम बनाने का एहसान उतारने के लिए सिर्फ एक मंत्री बनाने पर मुख्यमंत्री ने साध ली चुप्पी

क्या सीएम बनाने का एहसान उतारने के लिए सिर्फ एक मंत्री बनाने पर मुख्यमंत्री ने साध ली चुप्पी

PATNA DESK : आखिरकार मोदी कैबिनेट में जदयू ने अपनी भागीदारी पर मोहर लगा दी और पार्टी अध्यक्ष आरसीपी सिंह को केंद्रीय इस्पात मंत्री के पद की जिम्मेदारी सौंप दी गई। आरसीपी मंत्री बनेंगे, यह बहुत पहले तय हो गया था, लेकिन उसके अलाव जदयू ने मोदी कैबिनेट में तीन और लोगों को मौका दिए जाने की मांग की थी। जदयू ने पहले की तरह इस बार भी साफ कर दिया था चार लोगों को मौका मिलना चाहिए। इससे कम पर कुछ भी स्वीकार नहीं होगा। लेकिन, आखिरकार जदयू को अपनी मांग से पीछे हटना पड़ा और चार पदों की मांग करनेवाली जदयू को सिर्फ एक सीट से संतुष्ट होना पड़ा। सवाल यह है कि दो साल में ऐसा क्या हुआ कि नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी के सामने अपनी हार मान ली। अब तक बिहार में बड़े भाई की भूमिका में रही जदयू कुछ माह में ही भाजपा के छोटे भाई बनने की स्थिति में आ गई

सबसे पहले बात करते हैं 31 मई 2019 की, उस समय भाजपा अकेले 300 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल कर सरकार बनाने की तैयारी कर रही थी। वहीं चुनाव में सहयोगी रही जदयू कोटे से सिर्फ दो लोगों को मौका दिया जा रहा था, जिसे नीतीश कुमार ने मानने से इनकार कर दिया। उस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था-हमें केंद्रीय कैबिनेट में सांकेतिक भागीदारी मंजूर नहीं है। अगर सीटों की संख्या के अनुपात में कैबिनेट में जगह मिलती, तो हम इसे स्वीकारते। 

फिर 7 जुलाई 2021 को मोदी कैबिनेट का पहला विस्तार होता है और इस बार जदयू से सिर्फ एक सांसद को मंत्री बनने का मौका मिला। लेकिन सीएम नीतीश कुमार ने इस बार कोई आपत्ती नहीं की। उसे मान लिया। अब बिहार के राजनीति में इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर 25 महीने में ऐसा क्या बदल गया कि सीएम नीतीश कुमार झुकने को तैयार हो गया।

2020 का विधानसभा चुनाव सबसे बड़ा फैक्टर

जदयू और भाजपा के छोटे -बड़े भाई की भूमिका में बदलाव 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद आया। चुनाव में भले ही दोनों साथ में थे, लेकिन भाजपा की रणनीति इससे अलग भी चल रही थी कि कैसे जदयू की स्थिति को कमजोर किया जाए। जिसमें चिराग ने बड़ी भूमिका निभाई। चुनाव परिणाम बताते हैं कि भाजपा अपने इस चाल में कामयाब रही और चिराग के कारण जदयू को भारी नुकसान हुआ। चुनाव से पहले सबसे बड़ी पार्टी के अंहकार में डूबी जदयू के लिए यह सबसे बड़ा झटका था। जदयू भी अब इस बात को समझ चुकी थी कि बिहार में स्थिति वैसी नहीं रही। क्योंकि पिछली बार भाजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद राजद से रिश्ता जोड़ने पर जदयू ही सबसे बड़ी पार्टी रही, नीतीश कुमार सीएम बने रहे। लेकिन इस बार नीतीश कुमार भाजपा को छोड़ती तो यह निश्चित था राजद के साथ गठबंधन करने पर भी जदयू का अपना मुख्यमंत्री नहीं बनता और उन्हें तेजस्वी यादव के नीचे ही काम करना पड़ता। खुद नीतीश कुमार यह बात मान चुके थे कि उन्हें भाजपा ने सीएम बनाया है। ऐसे में अब नीतीश कुमार की बारी थी कि भाजपा के सामने झुके और कैबिनेट विस्तार में यह नजर आया। सांकेतिक भागीदारी का फॉर्मूला नहीं पलटा। ललन की दावेदारी कट गई।


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