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बेसा के पूर्व महासचिव डॉ. सुनील कुमार चौधरी ने 'इंडियन बिल्डिंग कांग्रेस' में लहराया बिहार का परचम

बेसा के पूर्व महासचिव डॉ. सुनील कुमार चौधरी ने 'इंडियन बिल्डिंग कांग्रेस' में लहराया बिहार का परचम

पटना. इण्डेफ (पूर्व) के उपाध्यक्ष, बेसा के पूर्व महासचिव एवं पथ निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता डॉ. सुनील कुमार चौधरी ने नई दिल्ली में एनडीएमसी कन्वेंशन सेन्टर में आयोजित 25 वे "इंडियन बिल्डिंग कांग्रेस" सस्टनेबल बिल्ट-इनवारमेंट फौर फ्यूचर" में शोध पत्र प्रस्तुत कर राष्ट्रीय स्तर पर बिहार का परचम लहराया। डॉ. चौधरी के शोध पत्र का शीर्षक था-1.चैलेन्जेज इन सस्टनेबल डिजाइन एण्ड कंस्ट्रक्शन। डॉ. चौधरी को बेस्ट पेपर अवार्ड से भी नवाजा गया।

डॉ. चौधरी  इण्डियन बिल्डिन्ग कान्ग्रेस से बेस्ट पेपर अवार्ड प्राप्त करने वाले बेसा के पहले पूर्व महासचिव एवं पथ निर्माण विभाग के पहले अभियंता है। आपदा रोधी, पर्यावरण के अनुकूल एवं संक्षरण रोधी समाज निर्माण के लिए कृतसंकल्पित तथा विज्ञान एवं तकनीक के विभिन्न पहलुओं को समाज के अन्तिम पंक्ति के लोगों तक पहुंचाने को कटिबद्ध डॉ. चौधरी ने ग्रीन सस्टनेबल डिजाइन एण्ड कंस्ट्रक्शन एवं इस फील्ड में एडवान्सेस एवं चुनौतियों की विस्तार से चर्चा की। पर्यावरण संरक्षण एवं आपदा रोधी समाज निर्माण आन्दोलन के पर्याय बन चुके डॉ. चौधरी ने भवनों को इनवारमेंटली सस्टनेबल एवं सेल्फ़ सस्टनेबल बनाने के पहलुओं पर बड़े ही सहज-सरल एवं रोचक ढंग से प्रकाश डाला।

उन्होंने बताया कि भारत एक बहुआपदा प्रवण देश है, जो बाढ़ एवं सुखाड़ की मार झेलता रहा है। उन्होंने बताया कि जरूरी है कि भवनों के निर्माण एवं प्रबंधन में सेल्फ़ सस्टनेबल, इनवारमेंटल सस्टनेबल, क्लाइमेट एवं  डिजास्टर रेजिलिएन्ट एप्रोच अपनाया जाय। इनवारमेंटल सस्टनेबलिटी विकास के साथ कार्बन फुट प्रिन्ट को कम करके की प्रक्रिया है। डिजास्टर रेजिलिएन्ट एप्रोच डिजास्टर के साथ जीने की कला है। उन्होंने बताया कि जिस तरह से जनसंख्या वृद्धि हो रही है एवं प्रदूषण, अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन बढ़ रहा है। सेल्फ़ सस्टनेबल एवं इनवारमेंटल सस्टनेबल डिजाइन, कंस्ट्रक्शन एवं मेन्टिनेन्स को बढ़ावा देने की नितांत जरूरत है।

डॉ. चौधरी ने मेसो,माइक्रो एवं मैक्रो लेवल प्लानिंग में इनवारमेंटल सस्टनेबलिटी एवं डिजास्टर रेजिलिएन्ट एप्रोच को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने बताया कि विकास ऐसा हो जो विनाश से बचाय, विकास ऐसा हो जो पर्यावरण को बचाये तथा विकास ऐसा हो जो सतत प्रगति की राह को दिखाये। भारत में इनवारमेंटली सस्टनेबल ग्रीन कौस्ट इफेक्टिव एण्ड डिजास्टर रेजिलिएन्ट भवनों के निर्माण एवं प्रबंधन की बात करनी है तो इनोवेटिव, कौस्ट इफेक्टिव एण्ड ग्रीन रिवोल्यूशनरी टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देना होगा। साथ ही पॉलिसी एवं गवरनेन्स में आमूल-चूल परिवर्तन लाना होगा।

डॉ. चौधरी इन्टिग्रेटेड एप्रोच अपनाने की जरूरत बताई। साथ ही सेल्फ सस्टनेबल एवं ग्रीन ट्रान्सपोर्ट की जोरदार वकालत की। इसके लिए समाज में लोगो को जागरूक करना होगा। डॉ. चौधरी ने निर्माण कार्य में अभिकल्प एवं मटेरियल के विशिष्टयों एवं प्रबंधन नीतियों में बदलाव की जरूरत की जोरदार वकालत की एवं इस दिशा में शोध को बढ़ावा देने की जरूरत बताई। उन्होने बताया कि इनवारमेंटल सस्टनेबल एवं सेल्फ़ सस्टनेबल डिजास्टर रेजिलिएन्ट निर्माण एवं प्रबंधन पर समाज के हर तबके को जागरूक करने के अभियान को एक आन्दोलन का रूप देकर पूरा देश में फैलाने की जरूरत है। डॉ. चौधरी अन्तरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर के तकनीकी एवं सामाजिक संगठनों से जुड़कर जलवायु परिवर्तन जनित आपदा एवं उससे निपटने के लिए डिजास्टर रेजिलिएन्ट एवं कौस्ट इफेक्टिव टेक्नोलॉजी को समाज के अन्तिम पंक्ति के लोगों तक पहुंचाने का काम करते रहे हैं। 

हम लोग है ऐसे दीवाने, तकनीक बदलकर मानेंगे। मंजिल को पाने निकले है, मंजिल को पाकर मानेंगे।

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