कटिहार-जर्जर भवनों में रहने को मजबूर हैं कटिहार यातायात पुलिस.यातायात पुलिस कटिहार का भवन जर्जर हालत में है. यहां यातायात पुलिस बल के जवानों का बसेरा भी बना है. जान हथेली पर रखकर कर्मचारी कार्य करने एवं रहने को मजबूर हैं. लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी जरा भी चिंता नहीं है. ये जर्जर भवन भूकंप का एक झटका तक सहन नहीं कर पाएंगा, लेकिन इन भवनों को जमींदोज करने का कोई प्रयास तक नहीं किया जा रहा. पुलिस अधिकारी पुलिस हेडक्वाटर को बता देने की बात कहग कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं.
बारिश की टपकती बूंद के बीच कटिहार यातायात पुलिस के बैरक में छाता के नीचे मजबूरी में समय बिताने के लिए मजबूर है ट्रैफिक पुलिस के जवान. ड्यूटी से ब्रेक मिलने के बाद जब कटिहार ट्रैफिक पुलिस के जवानों को आराम का लिए जरा सा वक्त मिलता है तो उन्हें जर्जर बैरक में रहना पड़ता है उसके बैरक को अगर किसी हॉरर फिल्म के लोकेशन के रूप में इस्तेमाल किया जाए तो फिल्म सुपर हिट हो सकती है.यह भवन इतना जर्जर हो चुका है कि इसकी छत से मलबा गिरता रहता है. हल्का-सा भूकंप, तेज तूफान का झटका भी इस भवन को पूरी तरह से जमींदोज करने के लिए काफी होगा.
अफसोस की बात इतनी बड़ी आबादी वाले कटिहार के यातायात थाना आज भी अंग्रेजों के जमाने के इस लाल किला बिल्डिंग से ही संचालित होता है. ऐसे में ट्रैफिक पुलिस के परेशानी और आगे की उम्मीद को लेकर ट्रैफिक पुलिस के अधिकारियों का कहना हैकि पुलिस हेडक्वाटर को प्रस्ताव और नक्या भेजा जा तुका है इस पर जल्दी ही फैसला हो जाएगा और शीग्र हीं नया भवन यहां देखने को मिलेगा.यातायात पुलिसकर्मियों को रहने के लिए मुहैया कराए गए कमरे कदर जर्जर है कि उनमें रहने वाले पुलिसकर्मी हर समय सहमे रहते हैं. अधिकांश कमरे तो इतने जर्जर हैं कि उनमें प्रवेश करने से भी पुलिसकर्मी कतराते हैं लेकिन ड्यूटी है तो करना हीं पड़ेगा.