बिहार के पूर्व DGP अभयानंद ने पूछा,कोरोना आपदा के व्यापक सवाल- उत्तर कौन देगा?

PATNA: पूरे देश में कोरोना का संक्रमण जारी है। न जाने कितने हजार लोग कोरोना महामारी में अपनी जान दे चुके हैं ।इस संकट में स्वास्थ्य व्यवस्था की पूरी तरह से पोल खुल चुकी है। अब तक जो दावे किए जा रहे थे वे बिल्कुल बेमानी साबित हुए हैं। जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा स्वास्थ्य के नाम पर कागजों पर ही लुटाया जा रहा था, यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया है। देश की बात छोड़िए अगर बिहार की बात करें तो यहां की सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था के जो दावे किए जा रहे थे उसकी हकीकत सामने आ गई है। जिन अस्पतालों के भवन निर्माण पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए गए थे वे अब तबेला बन गए हैं। वहां आदमी का इलाज नहीं बल्कि जानवर बांधे जाते हैं । इसी बीच बिहार के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी रहे और पूर्व डीजीपी अभयानंद ने स्वास्थ्य विभाग की पोल खोल कर रख दी है ।
अभयानंद ने कहा है कि कोरोना के व्यापक सवाल हैं कि उत्तर कौन देगा?
बिहार के पूर्व DGP अभयानंद ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है कि कोरोना का दौर अति करुणामयी होता जा रहा है। निरीह की भांति कभी समाज की विवशता को देखता हूँ तो कभी सरकारी प्रतिक्रिया को। सरकार में मुख्यतः तीन स्तर होते हैं। सबसे ऊपर हैं मंत्रीगण जिन्हें नियम-कानून की बारीकियों को समझाने के लिए IAS पदाधिकारीगण होते हैं, जो "ब्यूरोक्रेसी" का अंग भी होते हैं। यह दोनों मिलकर नीति निर्धारण करते हैं। पश्चात इसके, नीति को क्रियान्वित करने के लिए उस विभाग के निदेशालय को कार्य दिया जाता है। निदेशालय में उस विभाग के तकनीकी जानकार होते हैं जो नीति और तकनीक का समन्वय कर, जनता के हित में कार्यवाई करते हैं।सरकार के सभी विभागों का कार्य इसी प्रक्रिया से किए जाने का प्रावधान है।
आगे लिखते हैं कि समय के साथ, पुलिस को छोड़ कर, सभी निदेशालय ध्वस्त हो चुके हैं। पुलिस का निदेशालय खाका स्वरुप ही सही, इसलिए बचा हुआ है क्योंकि इसकी संरचना एक कानून के तहत की गई है। जिसे सरकारी आदेश से निरस्त नहीं किया जा सकता है। अन्यथा इस निदेशालय का ढाँचा भी ढूंढने से नहीं मिलता।
यही कारण है कि कोरोना की इस त्रासदी में जब जनता अथवा मीडिया दुखित होकर सवाल पूछती है, तो जवाब देने के लिए मंत्री आते हैं या हॉस्पिटल के डॉक्टर। स्वास्थ्य निदेशालय जो क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी लेता है, वह विलुप्त हो चुका है। अतः अदृश्य रहता है। प्रश्न पास होकर सीधे अस्पताल प्रबंधन के पास आ जाता है। बहरहाल सरकार का जो भी स्तर नीतिगत निर्णय ले कर क्रियान्वयन कर रहा है, उसे समाज और मीडिया के सामने सवालों के उत्तर देने के लिए आना चाहिए।