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GOOGLE DOODLE: महामारी से बचाने वाले योद्धा को गूगल ने खास अंदाज में दी श्रद्धांजलि, विश्व में बने चर्चा का विषय

GOOGLE DOODLE: महामारी से बचाने वाले योद्धा को गूगल ने खास अंदाज में दी श्रद्धांजलि, विश्व में बने चर्चा का विषय

N4N DESK: आज, 2 सितंबर को रूडॉल्फ वीगल की 139वीं जयंती है। आज के दिन पूरे विश्व ने इनकी तस्वीर देखी होगी। कई लोगों ने बस इन्हें निहारा होगा, तो कइयों ने उत्सुकतावश इनके बारे में जानना चाहा होगा। इनकी चर्चा इसलिए की जा रही है, क्योंकि गूगल ने उनकी याद में डूडल समर्पित किया है। 

रूडॉल्फ वीगल एक पोलिश आविष्कारक, डॉक्टर और इम्यूनोलॉजिस्ट थे। यहीं नही रूडॉल्फ वीगल ने सबसे पुराने और सबसे संक्रामक रोगों में से पुरानी महामारी Typhus के खिलाफ दुनिया को पहली असरदार वैक्सीन प्रदान की थी। इस वक्त जहां पूरा देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है, वहीं दूसरी ओर यह डूडल बनाकर गूगल ने कई लोगों को रूडॉल्फ वीगल के बारे मे जानकारी दी।

क्या खास है इस डूडल में?

गूगल के डूडल में उन्हें हाथ में ग्लव्स पहनकर टेस्ट-ट्यूब पकडे हुए दिखाया गया है। दिवार पर एक तरफ कुछ तस्वीरें है तो वहीं दूसरी तरफ मानव शारीर का चित्र बनाया गया है। यही नहीं गूगल को लैब में रखे सामान के तरह प्रदर्शित किया गया है। इलस्ट्रेटर ने Google को माइक्रोस्कोप, बन्सन बर्नर पर बीकर, और होल्डर में टेस्ट ट्यूब सभी को एक लैब टेबल पर रखा है। 

कौन है रूडॉल्फ़ वीगल

रूडॉल्फ वीगल का जन्म 2 सितंबर 1883 में आज के वक्त के चेक रिपब्लिक में मोराविया के परेरोव में हुआ था। उनके माता-पिता ऑस्ट्रियन-जर्मन थे। बचपन में ही उनका पिता का साइकल दुर्घटना में देहांत हो गया था। जिसके बाद उनकी मां एलिजाबेथ क्रोयसेन ने पोलिश शिक्षण के साथ विवाह कर लिया था। वीगल जासलो पोलैंड में पले बढ़े। जर्मन बोलने वाले विगल ने बाद में पोलिश भाषा एवं संस्कृत को अपना लिया था। वीगल बाद में लिविव चले गए जहां 1907 में उन्होंने जीवविज्ञान में स्नातक की पढ़ाई की। उसके बाद उन्होंने जूलॉजी में डॉक्टरेट की डिग्री भी हासिल की थी।1914 में उन्होंने जैविक विज्ञान की पढ़ाई के लिए पोलैंड की Lwow University में एडमिशन लिया। पोलिश आर्मी में उन्हें बाद में परजीवीविज्ञानिक (Parasitologist)  के तौर पर नियुक्त भी किया गया था। 

महामारी को मिटाने का उठाया था बीड़ा

उस वक्त पूर्वी यूरोप के लाखों लोग टाइफस नामक महामारी से ग्रस्त थे, जिसको जड़ से खत्म करने का निर्णय वेइगल द्वारा लिया गया था और इन्होंने इस बिमारी को जड़ से मिटा भी दी थी। प्रथम विश्वयुद्ध के समय वेइगल ने घोर अध्ययन किया था, यही नहीं उन्होंने एक सैनिक अस्पताल में काम भी किया था। वहाँ पर वे लैब का निरिक्षण किया करते थे।उसी निरिक्षण के दौरान वेइगल ने पाया की जो बीमारी लोगों में संक्रमित हो रही है है वह संक्रमण शरीरिक जूं के कारण फैल रहा है। इसी लैब में उन्होंने अपना शोधकार्य भी किया। वीगल ने सालों रिसर्च के बाद 1936 में सफलतापूर्वक इफेक्टिव वैक्सीन का निर्माण करके लोगों को इस बीमारी से निजाद दिलाया।

नहीं मिल सका नोबेल पुरस्कार

वीगल को दो बार नोबल पुरस्कार के लिए भी नामत भी किया गया था। 1942 में उन्हें टाइफस वैक्सीन के लिए जब नामित किया गया तभी जर्मनों ने उनके नामांकन को रोक दिया और उनके आवेदन को भी बीच में ही रोक दिया। इसी प्रकार 1946 में भी नोबेल पुरस्कार के लिए नामित करने वाले उनके आवेदन को रोक दिया गया तब वह इसके प्रमुख दावेदार माने जा रहे थे, लेकिन पोलिश सरकार ने उनके आवदेन को रोक दिया था। 1948 में कम्युनिस्टों ने उन्हें नोबेल पुरस्कार मिलने से रोक दिया था। इसके बाद उन्होंने कभी भी नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया।

आज रूडॉल्फ वीगलको एक उल्लेखनीय वैज्ञानिक और एक नायक के रूप में सराहा जाता है। उनके काम को दो नोबेल पुरस्कार नामांकन से सम्मानित भी किया गया है। उन्होंने वैक्सीन का निर्माण करके लाखों लोगों के दिल मे अपना स्थान सुनीश्चित कर लिया था और यही कारण है कि गूगल उनके 139वें जन्मदिवस पर उन्हें एक खास डूडल के जरिए याद दिया।

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