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गोपालगंज में परंपरागत तरीके से मनायी गयी गोवर्द्धन पूजा, क्या है गोवर्धन पूजा महत्व, जानिए

गोपालगंज में परंपरागत तरीके से मनायी गयी गोवर्द्धन पूजा, क्या है गोवर्धन पूजा महत्व, जानिए

गोपालगंज जिले के शहर से लेकर गांव तक गोवर्धन पूजा को लेकर महिलाओं में काफी उत्साह देखने को मिला. इस दिन बहनों ने अपने भाई की लंबी आयु के लिए  रीति रिवाज के साथ गोवर्धन भगवान की पूजा अर्चना की. इस दौरान महिलाओं ने अपने घर के द्वार पर गाय की गोबर की प्रतिमा को बनाया गया और फिर चना मिठाई नारियल समेत विभिन्न पूजन सामग्री के साथ पारंपरिक  तरीके से  पूजा-अर्चना करते हुए मंगल गीत गाया और मुसर से कुटाई की गई.

 दरअसल वर्षो पुरानी चली आ रही गोवर्धन(गोधन) कूटने की भारती संस्कृति की परंपरा निर्वहन महिलाओं ने किया. गोवर्धन पूजा को लेकर दीपावली के दिन से ही तैयारियां शुरू कर दी जाती है. घरों के आगे महिलाएं तथा लड़कियां भगवान गोवर्धन की प्रतिमूर्ति गाय के गोबर से बनाती है. इसके बाद पूजन सामग्री के साथ पूरे विधि विधान से गोवर्धन भगवान की पूजा-अर्चना कर प्रतिमूर्ति को कूटने का कार्य किया जाता है. इस संदर्भ में महिलाओ ने बताया कि यह पर्व दशकों पुराने रीति-रिवाजों के अनुसार चला आ रहा है. इसको लेकर पहले बहनों ने अपने भाई को शापित करती है और बाद में अपने जीभ में कांटा चुभाती हैं.

मान्यताओं के अनुसार शापित किए जाने से भाइयों की आयु लंबी होती है. गोवर्धन पूजा के दिन से ही हिदू धर्म शास्त्रों के अनुसार लग्न के कार्य शुरू हो जाते हैं. इसी दिन से लड़कियां पीड़िया व्रत की भी शुरुआत करती हैं. लड़कियां घरों में पीड़िया को लगाने का कार्य भी इसी दिन करती हैं. पूजा के बाद बहनों ने अपने भाइयों को बजरी खिलाकर उनकी लंबी उम्र की कामना करती है.

गोवर्धन पूजा के लिए गोवर्धन पर्वत बनाने की मान्यता के साथ इस दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा भी की जाती है. आखिर गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा क्यों की जाती है. इसे लेकर धार्मिक मान्यता प्रचलित है. पौराणिक कथाओं में गोवर्धन पूजा की भी वजह बताई गई है. इनके अनुसार ब्रज पर इंद्र देवता ने जब कुपित होकर घनघोर बारिश की थी तब भगवान श्रीकृष्ण ने तूफान और बारिश से गांववालों की रक्षा करते हुए गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर सात दिनों तक उठाकर रखा था. इस वजह से गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई.

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