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3 मंजिला राम मंदिर में रामलला के मस्तक पर सूरज की रोशनी आखिर पहुंची कैसे..आखिर कैसे हुआ यह संभव..क्या है विज्ञान..

3 मंजिला राम मंदिर में रामलला के मस्तक पर सूरज की रोशनी आखिर पहुंची कैसे..आखिर कैसे हुआ यह संभव..क्या है विज्ञान..

अयोध्या - पवित्र चैत्र का महीना नवमी तिथि, शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजित्‌ मुहूर्त... दोपहर का समय...न बहुत सर्दी, न हीं बहुत धूप ...वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था...योग, लग्न, ग्रह, वार और तिथि सभी अनुकूल हो गए, क्या जड़ और क्या चेतन सब खुशी से पुलकित होने लगे...तब भए प्रकट कृपाला दिन दयाला.... रामलला के जन्मोत्सव पर अयोध्या त्रेता युग सा अहसास करा रहा था. राम नवमी के मौके पर अयोध्या के राम मंदिर में रामलला के मस्तक पर सूर्य अभिषेक....अलौकिक ,अनोखा... मंगल गीत, भजन-कीर्तन और राम लला के जयकारे के बीच जैसे हीं  सूर्यदेव ने प्रभु राम के मस्तक पर तिलक किया....अद्भुत नजारा को देख कर लोगों का जीवन धन्य-धन्य हो गया. 

अयोध्या में रामनवमी पर दोपहर 12 बजे से रामलला का सूर्य तिलक हुआ. प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला का यह पहला सूर्य तिलक है. दोपहर 12 बजे अभिजीत मुहूर्त में रामलला का 3 मिनट तक सूर्य तिलक किया गया सूर्य तिलक के लिए एक खास तरह की तकनीकि का  प्रयोग किया गया.

सबसे पहले मंदिर के पहले हिस्से पर लगे दर्पण पर सूर्य की रोशनी पड़ने लगी  फिर यहां से रोशनी परावर्तित होकर पीतल के पाइप में रोशनी ने प्रवेश किया फिर पीतल की पाइप में लगे दूसरे दर्पण से सीधे रोशनी टकराकर 90 डिग्री में बदली गई. फिर लंबवत पीतल के पाइप में सूर्य किरणें तीन अलग-अलग लेंस से आगे बढ़ाया गया. इसके बाद किरणें तीन लेंस से गुजरने के बाद गर्भगृह के सीध में लगे दर्पण से टकराईं और यहां से किरणें एक बार फिर 90 डिग्री के कोण में मुड़कर सीधी यानी क्षैतिज रेखा में आ गईं. इसके बाद किरणें सीधे रामलाल के मस्तक पर टकराकर सूर्य तिलक किया गया. 

रामनवमी के दिन दोपहर के समय सूर्य की किरणें रामलला के मस्तिष्क पर पड़ीं और शीशे और लेंस से जुड़े एक तंत्र की वजह से रामलला का सूर्यतिक संभव हो सका. सीएसआईआर-सीबीआरआई रुड़की के वैज्ञानिक डॉ.एस के पाणिग्रही ने कहा कि सूर्य तिलक का मूल उद्देश्य रामनवमी के दिन केवल राम की मूर्ति को तिलक लगाया गया.  उन्होंने कहा कि एक प्रक्रिया के जरिये उनके मस्तिष्क तक सूर्य की रोशनी लाई गई. 

सूर्य की किरण मंदिर के तीसरे तल पर लगे पहले शीशे पर पड़ी यहां से किरण पलटकर पीतल की पाइप में गई. पीतल के पाइप में लगे दूसरे शीशे से टकराकर 90 डिग्री पर दोबारा परावर्तित हो गई. इसके बाद फिर पीतल की पाइप से जाते हुए यह रोशनी तीन अलग-अलग लेंस से होकर गुजरी और फिर लंबे पाइप के गर्भ गृह वाले सिरे पर लगे शीशे से ये रोशनी टकराई. गर्भगृह में लगे शीशे से टकराने के बाद रोशनी ने सीधे रामलला के मस्तिष्क पर 75 मिलीमीटर का गोलाकार तिलक लगाया.

बेंगलुरु की एक कंपनी ने आठ धातुओं को मिलाकर 20 पाइपों से पूरी व्यवस्था बनाई. कंपनी ने 1.20 करोड़ रुपये का यह सिस्टम मंदिर को दान में दिया है. 65 फीट लंबे इस व्यवस्था में आठ धातु के 20 पाइप लगाए गए हैं.  प्रत्येक पाइप की लंबाई लगभग 1 मीटर है. इन पाइपों को पहली मंजिल की छत से जोड़कर मंदिर के अंदर लाया जाता है. रामलला के माथे पर गर्म किरणों को पड़ने से रोकने के लिए फिल्टर का इस्तेमाल किया गया है.

दर्पण और लेंस से जुड़े एक विस्तृत तंत्र द्वारा रामलला का ‘सूर्य तिलक’ संभव हो सका. वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर)-सीबीआरआई रुड़की के वैज्ञानिक डॉ एस के पाणिग्रही ने बताया कि ‘सूर्य तिलक परियोजना का मूल उद्देश्य रामनवमी के दिन श्री राम की मूर्ति के मस्तक पर एक तिलक लगाना है. परियोजना के तहत, श्री रामनवमी के दिन दोपहर के समय भगवान राम के मस्तक पर सूर्य की रोशनी लाई गई. 

सीबीआरआई रुड़की के वैज्ञानिक डॉ एस के पाणिग्रही ने बताया कि ‘सूर्य तिलक परियोजना के तहत हर साल चैत्र माह में श्री रामनवमी पर दोपहर 12 बजे से भगवान राम के मस्तक पर सूर्य की रोशनी से तिलक किया गया. 

सीएसआईआर केन्द्रीय भवन अनुसंधान संस्थान, रुड़की की टीम ने भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, बैंगलोर के परामर्श से मंदिर की तीसरी मंजिल से गर्भगृह तक सूर्य के प्रकाश को पहुंचाने के लिए एक तंत्र विकसित किया. गर्भगृह में सूर्य की रोशनी लाने के लिए विस्तृत संपूर्ण डिजाइन सीबीआरआई द्वारा विकसित किया गया , जिसमें आईआईए ऑप्टिकल डिजाइन के लिए अपना परामर्श प्रदान किया . सूर्य तिलक के लिए राम मंदिर में ऑप्टो-मैकेनिकल प्रणाली लागू करने से पहले, रुड़की इलाके के लिए उपयुक्त एक छोटा मॉडल सफलतापूर्वक मान्य किया गया. पाणिग्रही ने कहा, ‘ऑप्टो-मैकेनिकल सिस्टम में चार दर्पण और चार लेंस होते हैं जो झुकाव तंत्र और पाइपिंग सिस्टम के अंदर फिट होते हैं.’ उन्होंने कहा, ‘दर्पण और लेंस के माध्‍यम से सूर्य की किरणों को गर्भगृह की ओर मोड़ने के लिए झुकाव तंत्र के लिए एपर्चर के साथ पूरा कवर शीर्ष मंजिल पर रखा गया है. अंतिम लेंस और दर्पण सूर्य की किरण को पूर्व की ओर मुख किये हुए श्रीराम के माथे पर केंद्रित किया गया. 

बता दें कि रामनवमी के अवसर पर आज अयोध्या का रामलला मंदिर में भगवान राम का सूर्य तिलक किया गया, जिसके लिए ये तकनीकि अपनाई गई.


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