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ऐसे कैसे खत्म होगा भ्रष्टाचार ! प्रवर्तन निदेशालय ने 5,900 मामलों की जाँच की, सिर्फ 24 मामलों में दोषियों को मिली है सजा

ऐसे कैसे खत्म होगा भ्रष्टाचार ! प्रवर्तन निदेशालय ने 5,900 मामलों की जाँच की, सिर्फ 24 मामलों में दोषियों को मिली है सजा

पटना. प्रवर्तन निदेशालय द्वारा देश के अलग अलग राज्यों में अक्सर कई जगहों पर छापेमारी की जाती है. धन शोधन निवारण अधिनियम यानी Prevention of Money Laundering Act (PMLA) के तहत Enforcement Directorate (ईडी) ने वर्ष 2005 के बाद से अब तक 5,900 मामलों की जाँच की है. हैरानी वाली बात है कि इनमें सिर्फ 1,100 मामलों में केस दर्ज किया है। वहीं 17 सालो में सिर्फ़ 24 मामलों में दोषियों को अदालत से सजा मिली जिनमें से कई मामले अभी भी, कोर्ट में विचाराधीन है। 

मामलों में सजा मिलने की धीमी रफ्तार पर ED का कहना है कि कोर्ट की कार्यवाही बहुत ही धीमी रफ़्तार से चलती है। कोर्ट ने ज़्यादातर मामलों में ED कि कार्यवाही पर सवाल उठाये और पूछा कि तथ्य पूरे क्यों नहीं है। यानि, ज़िम्मेदारी किसी की नहीं है, बस क़रीब 6,000 मामलों में लोग फँसे हुए हैं। गौर करने वाली बात ये है कि 2017 से 2023 के बीच 85% मामले दर्ज किये गये हैं और conviction rate 0.4% है, यानि 1000 मामलों में 4 दोषी पाये गये। 

दरअसल, इसके पहले केंद्र सरकार ने संसद में भी ईडी के कार्य निष्पादन को लेकर बड़ा खुलासा किया था. इसी वर्ष जुलाई 2023 में केंद्र सरकार ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया कि ईडी ने पिछले 17 साल में करीब 5,400 मनी लॉन्ड्रिंग के मामले दर्ज किए लेकिन इसमें सजा अभीतक केवल 23 केस में ही हो पाई है। केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में ये जानकारी दी गई. 

केंद्रीय मंत्री ने जवाब में बताया कि 31 मार्च 2022 तक ईडी ने PMLA के तहत 5,422 मामले दर्ज किए थे। इसमें करीब 1 लाख 4 हजार 702 करोड़ रुपये की संपत्तियों को अटैच किया गया। इस दौरान 992 केस में चार्जशीट दाखिल की गई। इस अवधि में 869.31 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की गई और 23 केस में सजा हो पाई। गौरतलब है कि PMLA एक्ट 2002 में बना था और इसे 1 जुलाई 2005 से लागू किया गया था।

ईडी द्वारा हाल के समय में देश के कई राजनीतिज्ञों के खिलाफ कार्रवाई की गई. कई जगहों पर आए दिन छापेमारी होती है. मीडिया में सुर्खियां बनने वाली ईडी की इन कार्रवाइयों के बाद उसकी जांच की धीमी गति और सजा मिलने की सुस्त रफ्तार पर कई प्रकार के सवाल पहले भी खड़े हो चुके हैं. 

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