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जिनके नाम पर लालू ने बनाया "माई" समीकरण,उनके पत्नी के लिए राजद में नहीं है जगह! वो जरूर चुनाव लड़ेंगी-हेना

जिनके नाम पर लालू ने बनाया "माई" समीकरण,उनके पत्नी के लिए राजद में नहीं है जगह! वो जरूर चुनाव लड़ेंगी-हेना

पटना/सीवान- सीवान के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन के इंतकाल के बाद हेना शहाब को राज्य सभा भेजने की पुरजोर मांग हुई लेकिन राजद ने मांग को दरकिनार कर  मीसा भारती को फिर से राज्य सभा भेज दिया. उसके बाद हेना शहाब ने कहा था कि अब मैं किसी भी पार्टी में नही हूं. लोकसभा चुनाव 2024 की रणभेरी बजने में कुछ महीने शेष हैं ऐसे में पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन की शरीके हयात हिना शहाब ने कहा है  कि सीवान के लोग चाहेंगे तो वो जरूर चुनाव लड़ेंगी. हिना शहाब के इस बयान के बाद बिहार का सियासी पारा चढ़ गया है. पारा बढ़ने का कारण भी है.राजनीति में शहाबुद्दीन का उदय उस दौर में हुआ जब, देश भर में बिखरे हिंदू वोट बैंक को मजबूत करने के लिए 25 सितंबर 1990 को लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से राम रथ यात्रा निकाली थी. अक्टूबर, 1990 में लालू यादव ने बिहार के समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करवा लिया.साल 1990 में हीं शहाबुद्दीन ने जीरादेई से स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में जीत हासिल की. उस वक्त उनका चुनाव चिन्ह था- शेर. 1990 के दशक तक देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की जन्मस्थल सिवान शहाबुद्दीन के नाम का पर्याय बन गया था. यहां मुस्लिमों की आबादी 20 फीसदी है. इसके बाद यादवों का नंबर आता है.जेल के अंदर से ही उनका राजनीति में प्रवेश हुआ.दो दशकों में हिंदू राष्ट्रवाद अपने उभार पर था, उनमें लालू यादव अगड़ी जातियों का सामना करने के अपने फॉर्मूले पर काम कर रहे थे. वह फार्मुला था मुस्लिम और यादवों के गठबंधन का. अपने फॉर्मूले की बदौलत वह 1990 में सत्ता हासिल कर सके. 

लालू का मुस्लिम यादव समीकरण

जेपी आंदोलन की उपज और सेक्यूलर और सोशलिस्ट राजनीति के पैरोकार लालू ने राज्य की 17 फीसदी मुस्लिम आबादी को अपने पक्ष में करने के लिए मुस्लिम नेता तलाशना शुरु किया तो शहाबुद्दीन का साथ लिया. बिहार की राजनीतिक धीरे-धीरे अपराध और राजनीति के गठजोड़ में समाती गई. और लालू ने इसकी विरासत अपने हाथ में ले ली. 17 फिसदी मुसलमान और 14 फिसदी यादव के निर्विवाद नेता बने लालू यादव ने  MY (मुस्लिम यादव) फॉर्मूला के बल पर 2005 तक बिहार की सत्ता पर काबिज रहे.

शहाबुद्दीन को लालू का संरक्षण

शहाबुद्दीन को मिले संरक्षण ने इस सामाजिक गठजोड़ को उभार दिया. भागलपुर के दंगों के बाद लालू ने मुस्लिमों को एक अखंड समुदाय माना और शहाबुद्दीन के साथ काम करना शुरू कर दिया. उस दौर में शहाबुद्दीन ने खुद को मुसलमानों के नेताओं के तौर पर पेश किया. राजनीति के विशेषज्ञों के अनुसार शहाबुद्दीन मुस्लिम ताकत का प्रतिनिधित्व करते थे. जो काफी कुछ मायने रखता था. लोग शहाबुद्दीन को प्यार करते थे. साथ ही उनसे डरते भी थे.सीपीआई-एमएल पोलित ब्यूरो के नंदकिशोर प्रसाद  1990 के दशक में सिवान में पार्टी का काम देखते थे का कहना था कि शहाबुद्दीन उस दौर में एक छोटे अपराधी थे लेकिन लालू यादव के संरक्षण में वह एक डॉन बन गए.लालू सामाजिक न्याय के लिए खड़े हुए थे और पिछड़े वर्गों के लोगों के नेता बन गए थे.तो शहाबुद्दीन एक बाहुबली थे जो नए उभरे राजनीतिक हालत में लालू यादव के समझौते के नतीजे के तौर पर सामने आए थे और मुसलमान नेता के तौर पर माने जाने लगे.

 वफादारी की विरासत

 स्थानीय लोगों के अनुसार शहाबुद्दीन के हाथों इंसाफ होता था. उन्होंने दुश्मन बना लिए. सीवान की सड़के उनके समय की हीं बनीं हुई हैं तो डॉक्टर की फीस तय थी, क्या मजाल की डॉक्टर ड्यूटि से गायब रहे या ज्यादा फीस वसूल ले. साहेब अपनी नजदीकियां किसी से छिपाते नहीं थे. उन्होंने लालू का साथ कभी नहीं छोड़ा. वे वफादारी की अपनी विरासत छोड़ गए हैं. 

हेना का राजनीतिक सफर

वहीं शहाबुद्दीन की पत्नी हेना शहाब तीन बार लोकसभा का चुनाव लड़ीं लेकिन हर बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा.सिवान में कोई भी चुनाव हो, पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन का परिवार हमेशा चर्चा में रहा है. अर्से से शहाबुद्दीन परिवार के फैसले का इंतजार उनके समर्थक कर रहे थे. हिना शहाब किस पार्टी से चुनाव लड़ेंगी, यह नहीं कहा है. लेकिन, राजद से उनकी दूरियों की चर्चा हो रही है. सीवान के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन के इंतकाल के बाद उनके समर्थकों ने हेना शहाब को राज्य सभा भेजने की मांग की थी. लेकिन, राजद ने ऐसा नहीं किया, जिसके बाद शहाबुद्दीन के समर्थकों में नाराजगी है. ये नाराजगी राजद को गोपालगंज विधानसभा चुनाव में भी झेलनी पड़ी और उसकेप्रत्याशी की हार हो गयी. शहाबुद्दीन की पत्नी हेना शहाब साल 2009 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ीं लेकिन हार का सामना करना पड़ा. वहीं साल 2014 और साल 2019 में भी हेना को हार मिलीं. तो  शहाबुद्दीन दो बार विधायक और चार बार सांसद रहे. इलाके में उसकी तूती बोलती थी. ऐसे में उनके जीवित रहते हेना शहाब की हार से समर्थकों में मलाल था. दूसरी ओर तेजस्वी यादव की जदयू गठबंधन से सरकार बनी, लेकिन शहाबुद्दीन परिवार को राजद ने ना ही कोई बड़ी जिम्मेदारी दी, और ना ही सरकार बनने के बाद एक बार भी कोई बड़ा नेता मिलने नहीं आया. इसके बाद अटकलों का बाजार गर्म हुआ कि हेना शहाब किसी दूसरे दल से चुनाव लड़ेंगी.  हालांकि इस पर अभी हेना शहाब का भी कोई बयान नही आया है कि वह किस पार्टी से चुनाव लड़ेंगी, लेकिन इतना जरुर कहा है कि मैं जरूर चुनाव लड़ूंगी.

निर्दलीय चुनाव लड़ेंगीं हेना!

सीवान के पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन की पत्नी हेना शहाब अब निर्दलीय चुनाव भी लड़ सकती हैं. हेना ने कहा कि अगर सीवान की जनता चाहें तो मैं जरूर चुनाव लडूंगी. हेना शहाब के कार्यकर्त्ताओं का कहना है कि उनके इस बयान के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि हेना शहाब को कोई पार्टी टिकट दे या नहीं दे लेकिन 2024 में वह भी चुनावी अखाड़ा में उतरेंगी. हेना के बयान के बाद बिहार की सियासत का गरमाना स्वभाविक भी है.शहाबुद्दीन की पत्नी हेना की नाराजगी का कमोबेस पांच से छह लोकसभा सीट पर राजद को नुकसान उठाना पड़ सकता है.


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