न्यूज4नेशन- 'राष्ट्रगान' और 'राष्ट्रीय गीत' एक देश की पहचान होती है. यह देश की भावनाओं को दर्शाता है. 'राष्ट्रगान' और 'राष्ट्रीय गीत' के बोल और गाने का सुर भले ही अलग हों पर दोनों की भावनाऐं एक जैसी होती है. जी हां, दोनों में राष्ट्रभक्ति भावना की ही अभिव्यक्ति होती है। हर एक देश के 'राष्ट्रगान' और 'राष्ट्रीय गीत' अलग होते हैं पर आखिर में यह देश की प्रेरणा को दर्शाता है. यह सभी गीत देशभक्ति से भरपूर होता है. इसे गाते समय लोगों में देश के लिए प्यार और भावनाएं साफ़-साफ़ झलकता है. पर क्या आपने कभी यह सोचा है कि 'जन-गण-मन' को ही राष्ट्रगान का दर्जा क्यों मिला? वहीं 'वंदे मातरम्' को यह दर्जा क्यों नहीं मिला? जब दोनों देश की पहचान है तो आखिर दोनों में अंतर क्या है ? आज देश को आजाद हुए 72 साल हो गए और इसी अवसर पर हम आपको बताएंगे कि 'राष्ट्रगान' और 'राष्ट्रीय गीत' में क्या अंतर है.
राष्ट्रगान
जन-गण-मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता।
पंजाब-सिंधु-गुजरात-मराठा
द्राविड़-उत्कल-बंग
विंध्य हिमाचल यमुना गंगा
उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशीष मांगे
गाहे तव जय-गाथा।
जन-गण-मंगलदायक जय हे भारत भाग्य विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।
इसका हिंदी अर्थ
सभी लोगों के मस्तिष्क के शासक, कला तुम हो
भारत की किस्मत बनाने वाले।
तुम्हारा नाम पंजाब, सिन्धु, गुजरात और मराठों के दिलों के साथ ही बंगाल, ओडिसा, और द्रविड़ों को भी उत्तेजित करता है,
इसकी गूंज विन्ध्य और हिमालय के पहाड़ों में सुनाई देती है।
गंगा और जमुना के संगीत में मिलती है और भारतीय समुद्र की लहरों द्वारा गुणगान किया जाता है।
वो तुम्हारे आशीर्वाद के लिये प्रार्थना करते हैं और तुम्हारी प्रशंसा के गीत गाते हैं।
तुम्हारे हाथों में ही सभी लोगों की सुरक्षा का इंतजार है,
तुम भारत की किस्मत को बनाने वाले।
जय हो जय हो जय हो तुम्हारी।
यह तो सभी जानते हैं कि यह राष्ट्रगान है और यह हर अवसर पर गाया जाता है. यहां तक की अब सिनेमाघरों में भी यह अनिवार्य कर दिया गया है. इसकी रचना रविंद्रनाथ टैगोर ने 1911 में की थी और 24 जनवरी, 1950 को इसे संविधान सभा में स्वीकार किया गया. सबसे पहले इसे बंगला भाषा में लिखा गया था. बाद में इसका हिंदी अनुवाद कराया गया. पहली बार इसे 27 दिसंबर, 1911 को कोलकाता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक में गाया गया था। पहले यह बंगला भाषा में लिखा गया था जिसमे सिंध का नाम आता था. पर बाद में इसे सिंध की जगह सिंधु कर दिया गया क्योंकि देशकी बटवारा के बाद सिंध पाकिस्तान का एक अंग हो चुका था।
राष्ट्रीय गीत
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्!
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥
इसका हिंदी अर्थ-
मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूं। ओ माता,
पानी से सींची, फलों से भरी,
दक्षिण की वायु के साथ शांत,
कटाई की फसलों के साथ गहरा,
माता!
उसकी रातें चांदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही है,
उसकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुंदर ढकी हुई है,
हंसी की मिठास, वाणी की मिठास,
माता, वरदान देने वाली, आनंद देने वाली।
यह भारत का राष्ट्रीय गीत है। इसकी रचना बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने 1882 में संस्कृत और बांग्ला मिश्रित भाषा में किया था. इसे भी उतना ही दर्जा मिला है जितना भारत के राष्ट्रगान 'जन-गण-मन' को मिला है. इसे पहली बार साल 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र में गाया गया था। दरअसल, इस पर कफी समय से विवाद चला आ रहा था. इसे राष्ट्रगान का दर्जा मिल सकता था, पर कुछ मुसलमानों ने इसका विरोध किया। उनका कहना था कि इस गीत में मां दुर्गा की प्रार्थना की गई है और उन्हें राष्ट्र के रूप में देखा गया है. बता दें कि इस्लाम में किसी व्यक्ति या वस्तु की पूजा करना गलत माना गया है। इसी कारण 'वंदे मातरम्' को राष्ट्रगान का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ.