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जब बिहार के एक SP ने अपराधियों के 7 शवों को भेज दिया 'जेल', लोग रह गए अवाक और फिर जो हुआ वो...

जब बिहार के एक SP ने अपराधियों के 7 शवों को भेज दिया 'जेल', लोग रह गए अवाक और फिर जो हुआ वो...

PATNA: बिहार के एक एसपी ने अपराधियों के सात मृत शरीर को जेल भिजवा दिया। इसी के साथ उन्हें बड़ा उत्तर भी मिल गया। सात लाशों को जेल भेजने केबाद एसपी के रूप में जो सीख मिली वो यादगार है। आज के एसपी को सीख लेनी चाहिए। अगर आपराधिक मामलों में कोई सूत्र का क्षेत्र सबसे अच्छा है, तो वह है जेल। पुलिस अधीक्षक पर निर्भर करता है कि वह जेल के अंदर बंद अपराधियों के बीच से निकली हुई आपराधिक सूचनाओं का संकलन और कार्यवाई किस तरह से करता है।

बिहार के पूर्व डीजीपी और देश भर में तेजतर्रार आईपीएस माने जाने वाले अभयानंद ने यह खुलासा किया है। उन्होंने कहा कि वे जब औरंगाबाद के एसपी थे तो 7 मृतक अपराधियों को जेल भेजा था। आगे वे कहते हैं,-किसी भी ज़िले में, अगर हम जानना चाहें कि अपराधियों की संख्या का घनत्व सबसे अधिक कहां होता है, तो यह एक कौतूहल का प्रश्न होगा। मैं, इस प्रश्न को अपने आप से पूरे प्रशिक्षण के दौरान पूछता रहा और जब थाना की ट्रेनिंग हो रही थी, तब अनायास ही मुझे समझ में आया कि इसका सही उत्तर है, ज़िले का जेल।

अभयानंद आगे कहते हैं कि अपने पूरे पुलिस के कार्यकाल में, इस बात को गांठ बांध कर रखा और इसका प्रयोग भी किया। कई अपराधी ऐसे होते हैं, जिन्हें पारिवारिक कलह के कारण जेल में रहना पड़ता है और वे सही मायने में, कोई व्यावसायिक अपराधी नहीं होते हैं । वैसे ही अपराधियों को मैंने, जेल के अंदर से अपना सूत्र बनाकर, कोशिश की कि उनके माध्यम से अपराध के विषय में जानकारी हासिल की जाए।

अभयानंद ने औरंगाबाद में 7 मृत अपराधियों को भेज दिया जेल

अभयानंद तब औरंगाबाद के एसपी थे। इस दौरान उन्हें सुबह-सुबह एक सूचना मिली कि 7 मृत शरीर ओबरा के पास पाए गए हैं, वो भी सड़क के किनारे एक बागीचे में। मैं तुरंत वहां पहुंचा। भीड़ बहुत बड़ी हो गई थी क्योंकि मृतकों की संख्या 7 थी। खोज-बीन करने पर पता चला कि ये सभी अपराधी हैं और रात में निकट के रेल गुमटी पर उन्होंने लूट-पाट की थी। लूट-पाट के बाद वे बगल के एक बागीचे में आकर लूट का सामान वितरण में लगे हुए थे। तभी बन्दर-बाँट में, मतभेद हुआ और सबों ने एक-दुसरे को गोली से उड़ा दिया। समस्या थी कि अपराधी पहचान में नहीं आ रहे थे। मैंने दिन भर मृतकों को वहीं छोड़ा कि संभवतः कोई व्यक्ति जो आ कर देखेगा, वह उन्हें पहचान लेगा। ऐसा हो न पाया।

शाम में सभी को भिजवा दिया जेल

शाम को, अपराधियों के शरीर को, मैंने एक पुलिस के ट्रक पर चढ़वाया और पुलिस मैनुअल में लिखी प्रक्रिया के अनुसार उसके निष्पादन का कार्य शुरू कराया। रास्ते में मुझे एक तरक़ीब सूझी और मैंने उस पुलिस ट्रक को जेल भिजवाया। जेल का दरवाज़ा बंद होने वाला था चूंकि शाम हो गई थी। मैंने जेल अधीक्षक से बातें कर, पुलिस ट्रक को जेल के अंदर भिजवाया। आधे घंटे तक वह ट्रक वहीं रहा। कौतूहल वश जितने अपराधी जेल में बंद थे, वे सभी बारी-बारी से उन शवों को देखने आए और जब यह प्रक्रिया पूरी हो गयी, तो मैंने ट्रक को बाहर निकलवाकर, शवों के नियमानुसार निष्पादन की प्रक्रिया करवाई। 

शवों को जेल भिजवाने के कुछ देर बाद वे खुद गए

दो घंटे के पश्चात, मैं जेल में पुनः आया, अकेले, और जो मेरे सूत्र थे जेल के अंदर, उनसे मैंने बातें की। उस सूत्र ने मुझे बताया कि जेल के अंदर इन मृतकों के सम्बन्ध में आपसी क्या वार्ता हुई है और उन्होंने सातों का नाम मुझे लिखवा दिया। ये सभी औरंगाबाद ज़िले के नहीं थे, बल्कि निकट के रोहतास ज़िले के अपराधी थे। संभवतः यही कारण था कि स्थानीय लोग उन्हें पहचान नहीं पा रहे थे। मैंने मृतकों के गाँव में छापामारी कराई और न केवल औरंगाबाद ज़िले के अपराधों की तफ़तीश माल बरामदगी के साथ हो पाई, बल्कि कई मामले, रोहतास ज़िले के भी मेरी छापामारी के दौरान सुलझ पाए।

एसपी पर निर्भर है कि वो कितने एक्टिव हैं

अभयानंद आगे कहते हैं कि कुल-मिलाकर मैं बिलकुल आश्वस्त हो गया कि अगर आपराधिक मामलों में कोई सूत्र का क्षेत्र सबसे अच्छा है, तो वह है जेल। पुलिस अधीक्षक पर ही निर्भर करता है कि वह जेल के अंदर बंद अपराधियों के बीच से निकली हुई आपराधिक सूचनाओं का संकलन और उस पर कार्यवाई किस तरह से करता है।

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