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बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी जदयू पैसे के मामले में टॉप पर, जानें भाजपा, राजद और कांग्रेस के खाते में हैं कितने रुपए

बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी जदयू पैसे के मामले में टॉप पर, जानें भाजपा, राजद और कांग्रेस के खाते में हैं कितने रुपए

PATNA : भाजपा पर अक्सर यह आरोप लगते रहे हैं कि यह अमीरों की पार्टी है और बड़े उद्योग घरानों से उन्हें करोड़ों रुपए का चंदा मिलता है। आज बीजेपी के पास साढ़े सात सौ करोड़ से ज्यादा रुपए मौजूद है। लेकिन बिहार बीजेपी के साथ ऐसा नहीं है। पैसे के मामले में बीजेपी अपने पुराने साथी जदयू के मुकाबले में बहुत पीछे है। बिहार की चार प्रमुख पार्टियों की आर्थिक स्थिति का जिक्र करें तो यहां जदयू सबसे धनवान पार्टी के रूप में सामने आई है। वहीं राजद की माली हालत बेहद खराब है और उनके खाते में नील बटा सन्नाटा है। यही हाल कांग्रेस का भी है। देश की दूसरी ज्यादा पैसे वाली पार्टी कांग्रेस की बिहार इकाई के नेता रूटीन खर्च चलाने में अक्सर हांफते रहते हैं। कम्युनिस्ट पार्टियां तो अपने खर्च के लिए अपने विधायकों का वेतन ले लेती हैं।

जदयू के पास 70 करोड़ से ज्यादा की रकम

बिहार में सीटों के हिसाब से जदयू तीसरे नंबर की पार्टी है। लेकिन पैसों के हिसाब के जदयू सबसे आगे है। जानकारी के अनुसार जदयू ने जनवरी 2022 के आखिरी हफ्ते में ‘स्वैच्छिक सहयोग राशि संग्रह’ अभियान शुरू किया। 71 करोड़ आए। हालांकि, पार्टी ने इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की है। चुनाव आयोग, एडीआर के अनुसार, 2020-21 में जदयू को कुल 65.31 करोड़ मिले थे। पार्टी के 76 लाख से ज्यादा सदस्य हैं। इनके मेंबरशिप (प्रति 5 रुपया) का रुपया खाते में है। पार्टी, अपने विधायकों से हर महीने 500 रुपया लेती है।

खाते में सिर्फ 51 लाख रुपए

दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का दावा करनेवाली बीजेपी की प्रदेश ईकाई के खाते में सिर्फ 51 लाख है। ‘आजीवन सहयोग निधि’ के सदस्य चंदा देते हैं। कोषाध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने बताया-’ किसी तरह काम चल जाता है। 1 करोड़ सदस्यों का सदस्यता शुल्क (5-5 रुपया) सुरक्षित है।’ विधायक व विधान पार्षद से 6 हजार व सांसद से 10 हजार लिया जाता है। अब इसे बढ़ाकर इनसे क्रमश: 10 और 25 हजार रुपए लेने की तैयारी चल रही है।

राजद का बैंक बैलेंस जीरो

बिहार की सबसे बड़े राजनीतिक परिवार और सबसे बड़ी पार्टी राजद के खाते में बैंक बैलेंस जीरो है। पार्टी के कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे कोषाध्यक्ष सुनील सिंह की मानें तो ‘सिर्फ 1 करोड़ सदस्यों के मेंबरशिप का 10-10 रुपया खाते में है। रूटीन खर्च बहुत दिक्कत से पूरा होता है। चंदा की बड़ी रकम नहीं मिलती। 79 विधायक, 14 एमएलसी हैं। इनसे हर माह 10-10 हजार लिया जाता है। इसी से रूटीन खर्च चलता है।’ 2019-20 राजद पर 3.24 करोड़ की लायबलिटी रही।  पार्टी की इस स्थिति का एक कारण ईडी और सीबीआई की जांच भी शामिल है।

कांग्रेस के पार खर्चा चलाने के भी पैसे नहीं: रुपए के लिए ‘दिल्ली’ को ताकते रहते हैं

देश सी सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की स्थिति और भी खराब है। बिहार कांग्रेस का 1.55 करोड़ बैंक में फिक्स है। इसका सूद, रूटीन खर्च में मददगार है। यहां 35 स्टाफ हैं। इनके वेतन पर हर माह करीब 4 लाख रुपए खर्च होता है। विधायकों से पैसा लिया जाता है। 28 लाख नए मेंबर बने हैं। मेंबरशिप का 5-5 रुपया बैंक में है। एक वरीय नेता ने कहा- ‘यहां हमें चंदा नहीं मिलता। बीच-बीच में दिल्ली से पैसा आता है।

भाजपा और कांग्रेस के बिहार के नेता इसलिए थोड़ा निश्चिंत हैं, चूंकि चुनावी मौके पर उनको दिल्ली से बड़ी मदद आ जाती है। सपा, बसपा बहुत अमीर है मगर बिहार में उनका चुनावी वजूद, कहने भर को रहा है। ऐसे में जदयू, राजद, भाकपा माले (लिबरेशन) जैसी पार्टियां, आर्थिक मोर्चे से ज्यादा सरोकार रखी हुई हैं।


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