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JHARKHAND NEWS: जिसने देश का प्रतिनिधित्व किया, वो ईंट भट्टे पर कर रही है काम, चार माह पहले सीएम सोरेन ने की थी मदद की बात, सब हवा-हवाई

JHARKHAND NEWS: जिसने देश का प्रतिनिधित्व किया, वो ईंट भट्टे पर कर रही है काम, चार माह पहले सीएम सोरेन ने की थी मदद की बात, सब हवा-हवाई

रांची: देश का नाम रोशन हो, इसके लिए खिलाडी पूरे दम से मेहनत करते हैं। देश विदेश में अपनी मेहनत के दम पर पहचान भी हासिल करते हैं लेकिन अफसोस तब होता है जब देश की व्यवस्था उस खिलाडी के मेहनत, हिम्मत का सम्मान नहीं करती है। झारखंड की संगीता सोरेन की भी ऐसी ही कहानी है। जिसने देश विदेश में अपने राज्य का झंडा बुलंद किया, आज वही अपने परिवार का पेट पालने के लिए ईंट भट्टे पर मजदूरी कर रही है। नेशनल लेवल की प्लेयर अब भी मुफलिसी में जीने को मजबूर है।

भाई दिहाड़ी मजदूर लेकिन नहीं मिल रहा काम

धनबाद के बाघमारा प्रखंड की निवासी संगीता ने करीब चार माह पहले सीएम हेमंत सोरेन से मदद मांगी थी। तब हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया पोस्ट कर कहा था - संगीता और उनके परिवार को जरूरी सभी सरकारी मदद पहुंचाते हुए सूचित करें। खेल-खिलाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए सरकार कृत-संकल्पित है। पर इसके बाद कोई मदद नहीं मिली। इसके बाद 4 महीने पहले संगीता ने फिर से मुख्यमंत्री से मदद की गुहार लगाई। अब महिला आयोग ने पूरे मामले पर एक्शन लेते हुए झारखंड सरकार और ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन को चिट्ठी लिखी है। आयोग ने उनसे संगीता को अच्छी नौकरी देने के लिए कहा है, ताकि वे अपना बाकी जीवन सम्मान के साथ गुजार सकें। संगीता अंडर-17, अंडर-18 और अंडर-19 लेवल पर देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। अंडर-17 फुटबॉल चैंपियनशिप में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीता था। हालांकि संगीता को अभी तक किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिली है। इसस नाराज संगीता कहती हैं, सरकार से हम क्या मांग करें। उन्हें खुद ही मेरे बारे में सोचना चाहिए। जिन आदिवासियों की मदद के लिए राज्य बना, सरकार उस उद्देश्य से ही भटक चुकी है। कई बार सरकार से मदद मांग चुकी हूं लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। एक अखबार को दिये इंटरव्यू में संगीता ने बताया कि इंटरनेशनल प्लेयर्स का ख्याल रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। मैंने सोशल मीडिया के जरिए उनका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की। मैंने स्कॉलरशिप के लिए भी आवेदन किया, लेकिन अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। मैंने अब कोशिश करना भी छोड़ दिया है। संगीता का सिलेक्शन पिछले साल सीनियर नेशनल टीम में भी होने वाला था, लेकिन लॉकडाउन की वजह से उन्हें यह मौका नहीं मिल पाया।

इस पूरे मामले पर महिला आयोग ने झारखंड सरकार को पत्र लिखने के साथ एक प्रेस नोट जारी किया है। जिसमें लिखा है कि संगीता संगीता पिछले 3 साल से जॉब पाने की कोशिश कर रही हैं, पर किसी ने उनकी मदद नहीं की। इंटरनेशनल लेवल पर खेलने के लिए भी उन्हें सिर्फ 10 हजार रुपए दिए गए। संगीता की स्थिति देश के लिए शर्म की बात है। उन्हें तरजीह दी जानी चाहिए। उन्होंने सिर्फ अपने देश को नहीं बल्कि, झारखंड को भी वर्ल्ड फुटबॉल में रिप्रजेंट किया है। यह सब उनकी लगन और मेहनत की वजह से हो सका। महिला आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव से कहा है कि संगीता को हरसंभव मदद की जाय, ताकि वह अपनी बाकी जिंदगी सम्मान के साथ जी सके व परिवार की मदद कर सके। 

जिसने हंसी उडायी, अब लेते हैं सेल्फी

संगीता कहती हैं, इंटरनेशनल फुटबॉल खेलने से पहले जब मैं मैदान में प्रैक्टिस करने आती थी तो लड़के मेरा मजाक उड़ाते थे। मेरी विनती के बाद भी वह मुझे साथ नहीं खेलाते थे। जब फुटबाल मैदान से बाहर जाता तो मैं उसे ही किक मारती थी। मैंने इस मजाक को ही चुनौती के रूप में लिया। इसके लिए बहुत मेहनत की। एक सर ने बिरसा मुंडा क्लब में मेरी इंट्री करायी। यहीं से मेरा सफर शुरू हुआ। पहले जिला फिर राज्य स्तर से होते हुए नेशनल अंडर 17 टीम में शामिल हुई। 2018 में अंडर 18 टीम के साथ भूटान व अंडर 19 टीम के साथ थाइलैंड में फुटबॉल चैंपियनशिप में हिस्सा लिया। अब गांव जाने पर वही लड़के सेल्फी लेने आते हैं, जो मेरा मजाक उड़ाते थे। संगीता कहती हैं, करीब दस साल पहले पिता की आंखों की रोशनी चली गयी। तब से वो कोई काम नहीं कर रहे हैं। कोरोना के कारण लॉकडाउन लगा तो भाई को भी काम नहीं मिल पा रहा। ऐसे में खुद ईंट भट्टे में मजदूरी कर घर का भरण-पोषण कर रही हैं। गरीबी की वजह से कभी कभी चावल-नमक खाना पड़ता है।


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