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इतिहासकार रोमिला थापर से JNU द्वारा CV की मांग पर मचा बवाल, जानिए क्या है मामला.....

इतिहासकार रोमिला थापर से JNU द्वारा CV की मांग पर मचा बवाल, जानिए क्या है मामला.....

NEWS4NATION DESK : जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय द्वारा प्रख्यात इतिहासकार रोमिला थापर को पत्र लिखकर उनसे बायोडेटा की मांग की है। जिसके बाद बवाल मच गया है। लेकिन जेएनयू के शिक्षक संघ और छात्रों एवं पूर्व छात्रों के एक वर्ग ने बायोडेटा मांगे जाने का विरोध किया है। हालांकि यूनिवर्सिटी का कहना है कि यह किसी भी तरह से गलत नहीं है और उसने तय नियमों के मुताबिक ही पत्र लिखा था।

बता दें प्रख्यात इतिहासकार रोमिला थापर प्रफेसर इमेरिटस के तौर पर जेएनयू से 1993 में जुड़ी हुई हैं।

दरअसल प्राचीन इतिहास के क्षेत्र में अहम योगदान देने वालीं रोमिला को प्रशासन ने पत्र लिखकर उनका बायोडेटा मांगा है। रोमिला थापर ने इसका अपने मुताबिक जवाब भी दिया है, लेकिन जेएनयू के शिक्षक संघ और छात्रों एवं पूर्व छात्रों के एक वर्ग ने बायोडेटा मांगे जाने का विरोध किया है। 

रोमिला थापर से बायोडेटा मांगने का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि यूजीसी का नियम हाल ही में आया है, जबकि प्रफेसर रोमिला थापर का इमेरिटस स्टेटस पूरी लाइफ के लिए है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर और अब जेएनयू से प्रफेसर इमेरिट्स के तौर पर जुड़े दीपक नैय्यर ने भी सवाल उठाते हुए कहा कि मुझे इस तरह का पत्र नहीं मिला है, लेकिन मेरी आयु अभी 75 साल नहीं हुई है। उन्होंने कहा, 'मैंने कभी इस तरह का मामला नहीं सुना, जैसा अभी हो रहा है। प्रफेसर इमेरिट्स का दर्जा आजीवन रहता है।' 
 
 

इधर यूनिवर्सिटी प्रशासन का कहना है कि नियमों के मुताबिक यह जरूरी है। वह उन सभी को पत्र लिखा है जो 75 साल की उम्र पार कर चुके हैं ताकि उनकी उपलब्धता और विश्वविद्यालय के साथ उनके संबंध को जारी रखने की उनकी इच्छा का पता चल सके। यह पत्र सिर्फ उन प्रफेसर इमेरिटस को लिखे गए हैं जो इस श्रेणी में आते हैं। बायोडेटा के जरिए यूनिवर्सिटी की ओर से गठित एक कमिटी संबंधित प्रफेसर इमेरिटस के कार्यकाल में किए गए कार्यों का आकलन करती है। इसके बाद वह अपने सिफारिशें एग्जिक्युटिव काउंसिल को भेजती है, जो प्रफेसर के सेवा विस्तार को लेकर फैसला लेती है।


 
 
यूनिवर्सिटी के अलावा इस पूरे विवाद पर सरकारी सूत्रों ने कहा कि जेएनयू ने 25 प्रफेसर्स को आजीवन प्रफेसर इमेरिटस का दर्जा दिया था। यूनिवर्सिटी की एग्जिक्युटिव काउंसिल ने इसका रिव्यू किया है। इनमें से ज्यादातर प्रफेसर्स ऐसे थे, जो बीते तीन सालों में यूनिवर्सिटी की ही नहीं गए और न ही किसी अकादमिक कार्य में योगदान दिया। काउंसिल ने अब 75 साल से अधिक के ऐसे प्रफेसर्स का रिव्यू करने का फैसला लिया है। आगे बने रहने की उनकी इच्छा और उपलब्धता के आधार पर काउंसिल फैसला लेगी। 

सरकारी सूत्रों ने कहा आईआईटी का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां प्रफेसर इमेरिट्स का दर्जा 70 वर्ष तक रहता है।


 बता दें कि जेएनयू के अकैडमिक रूल्स ऐंड रेगुलेशंस के नियम संख्या 32 (G) के मुताबिक, 'इमेरिट्स प्रफेसर की 75 वर्ष की आयु पूर्ण होने के बाद उनकी नियुक्ति करने वाली अथॉरिटी एग्जिक्युटिव काउंसिल यह रिव्यू करेगी कि क्या उन्हें आगे सेवा विस्तार देना चाहिए या नहीं। यह संबंधित प्रफेसर के स्वास्थ्य, इच्छा, उपलब्धता और यूनिवर्सिटी की जरूरतों के आधार पर तय होगा।' 

वहीं इसके आगे नियम कहता है, 'एग्जिक्युटिव काउंसिल को एक एक सब-कमिटी का गठन करना होगा, जो हर प्रफेसर इमेरिट्स से बात करेगी। हर केस का वह बातचीत, नया सीवी मंगाकर और समकक्षों की राय आदि से परीक्षण करेगी। यह कमिटी अपनी सिफारिशें काउंसिल को भेजेगी जो प्रफेसर के सेवा विस्तार पर फैसला लेगी।' 

इन सब के बीच रोमिला थापर ने कहा है कि वे बायोडेटा नहीं देंगी। 

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