कामरेड गणेश शंकर विद्यार्थी ने पटना में ली अंतिम सांस, जानिए कैसा था जीवन

NAWADA : मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय सचिव व पोलित ब्यूरो के सदस्य पूर्व विधायक गणेश शंकर विद्यार्थी का निधन हो गया है। सोमवार की देर रात बिहार की राजधानी पटना के एक निजी अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। वे नवादा जिले के रजौली के रहने वाले थे। बताते चलें की उन्होंने 12 दफा चुनाव लड़ा, जिसमें दो बार ही उन्हें जीत मिली थी। नवादा विधानसभा क्षेत्र से 1977 और 1980 में उन्हें जीत मिली थी। बताया जाता है कि गणेश शंकर विद्यार्थी अल्प आयु से ही लोगों के लिए काम करना चाहते थे। 12 वर्ष की उम्र में ही अंग्रेजी हुकूमत के समय अंग्रेजी हुकूमत के इमारत पर नवादा में तिरंगा फहराने वाले वामपंथी थे। 97 वर्ष की उम्र में भी गणेश शंकर विद्यार्थी लोगों के लिए सेवा भावना से काम करने को तत्पर रहते थे।
कौन थे गणेश शंकर विद्यार्थी
गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म रजौली में वर्ष 1924 हुआ था। उनका परिवार इलाके में काफी प्रतिष्ठित था। छह दफा जेल गए। करीब सात साल जेल में बिताए। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय एक साल जेल में रहे। 1944 में एक जुलूस के कारण जेल गए। 1946 में कैदियों की रिहाई आंदोलन के कारण जेल गए। 1948 में उनके संगठन को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया था। तब तीन साल तक जेल मे रहे। 1962 में करीब चार माह जेल में रहे। 1964 में सीपीआई से अलग सीपीएम अलग बनी तब नजरबंद रहे थे। 1965 में सुप्रीम कोर्ट में अपनी पैरवी करने खुद गए थे तब गिरफ्तार कर लिए गए थे। तब ढाई साल तक जेल में रहे। स्वतंत्रता सेनानी रहे। लेकिन पेंशन नहीं ली।
राजनीतिक जीवन
बताया जाता है कि गणेश शंकर विद्यार्थी वर्ष 1952 से ही राजनीतिक में आए थे। उनका पूरा परिवार कांग्रेसी था। परिवार में वह इकलौता ऐसे शख्स थे जो कम्युनिस्ट पार्टी के साथ खड़े होकर अंतिम सांस तक चलते रहे।1977 के चुनाव में सीपीएम की टिकट पर फिर चुनाव लड़े। लगातार पांच दफा हार के बाद इस चुनाव में पहली जीत हुई थी। 1980 में दोबारा निर्वाचित हुए। फिर 1985 में लड़े लेकिन हार गए। 1990 में उनके साथ गठबंधन के लोगों ने धोखा दे दिया। 1995 में नहीं लड़े। 2000 में हिसुआ में लड़े। लेकिन हार गए। 2009 का लोकसभा चुनाव लडे़। गौरतलब हो कि विद्यार्थी एक बार एमएलसी भी बनाए गए।बताते हैं कि 1977 के चुनाव में श्रीचंद साव ने नामांकन करा दिया था। जबकि खनवां निवासी यदुनंदन सिंह ने कार्यालय के लिए आवास दे दिए थे। बाकी कार्यकर्ताओं का खाने पीने के लिए चावल नगद संग्रह किया जाता था।
छह दफा जेल गए, सात साल जेल में रहे