PATNA- बिहार के सीएम नीतीश कुमार को महागठबंधन ने उसी दिन से पीएम फेस बताना शुरू कर दिया था, जब वे एनडीए छोड़ महागठबंधन के साथ आए थे. आरजेडी और जेडीयू ने तो नीतीश को प्रतीकात्मक तरीके से पीएम बताना भी शुरू कर दिया. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह उन्हें लगातार पीएम पद के सर्वथा योग्य उम्मीदवार बताते रहे हैं. आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह तो पीएम पद के लिए लालू यादव का नीतीश को आशीर्वाद मिलने का दावा भी करने लगे. जेडीयू के एक एमएलसी ने रमजान के महीने में इफ्तार के दौरान लाल किले की आकृति के पंडाल में नीतीश को बिठाया.लेकिन विपक्षी एकता को कांग्रेस ने पूरी तरह हाईजैक कर लिया.समय-समय पर नीतीश को पीएम बनाने के पोस्टर भी लगते रहे. मंगलवार को हीं पटना की सड़के नीतीश के पोस्टर से पटीं थी. जेडीयू कार्यकर्ता नीतीश को देखते ही- हमारा पीएम कैसा हो, नीतीश कुमार जैसा हो- नारे लगाने से नहीं चूकते. इन सबके बावजूद नीतीश कुमार पहले तो चुप रहे, लेकिन बाद में खुल कर कहना शुरू किया कि वे पीएम पद की रेस में शामिल नहीं हैं. यही बात उन्होंने तब भी दोहराई, जब वे विपक्षी नेताओं से एकजुट होने का प्रस्ताव लेकर मिलने गए थे.
आखिर क्या वजह थी कि बेदाग छवि और लंबा सियासी अनुभव वाले नीतीश कुमार ने खुद को पीएम पद की रेस से बाहर कर लिया? नीतीश कुमार अब पूर्व की तरह 'इंडिया' गठबंधन की चर्चा को लेकर उत्साहित नहीं होते. नीतीश कुमार अब राजनीतिक ऊर्जा के साथ विपक्षी एकता पर जवाब नहीं देते. 'इंडी' गठबंधन के चौथे बैठक में भी उन्हें निराशा हीं हाथ लगी. ममता बनर्जी ने खेला कर दिया.खेला होए गैलो.....पीएम की रेस में भले न बता रहे हों पर 19 दिसंबर की दिल्ली बैठक से ठीक पहले पटना में लगे पोस्टर उनके 'मन की बात' कह रहे थे. हालांकि ममता ने ऐन वक्त पर खड़गे का नाम ले लिया. ठीक बगल में नीतीश कुमार बैठे थे और वह खामोश देखते रहे. सोमवार को ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल दोनों ने गठबंधन की तरफ से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए आगे बढ़ा दिया. 19 दिसंबर की दिल्ली में इंडी गठबंधन की बैठक से ठीक पहले पटना में लगे पोस्टर उनके 'मन की बात' कह रहे थे. हालांकि ममता ने ऐन वक्त पर खड़गे का नाम ले लिया. ठीक बगल में नीतीश कुमार बैठे थे और वह देखते रहे. सोमवार को ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने गठबंधन की तरफ से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए रखा तो नीतीश जिसे वे नहीं मानते का सपना चूर चूर कर दिया.
जनवरी मध्य तक सीट बंटवारे के साथ अगले कुछ दिनों में संयोजक के नाम पर सहमति बन सकती है. सवाल यह है कि क्या अब नीतीश कुमार संयोजक भी बन पाएंगे? पहले शायद नीतीश कुमार सोच रहे होंगे कि पीएम कैंडिडेट भले ही न तय हो पर वह संयोजक बने तो चुनाव बाद पीएम के लिए उनका नाम अपने आप आगे रहेगा. लेकिन उनके समर्थकों की मंशा पर पानी फिर गया. किसी ने नीतीश कुमार के नाम की चर्चा तक नहीं की. पटना में पोस्टर लगवा कर बड़ी उम्मीद से दिल्ली गए थे, लेकिन किसी ने संयोजक पद के लिए भी उनके नाम का प्रस्ताव नहीं किया. बिहार में पोस्टर लगा था कि अगर सच में जीत चाहिए तो फिर एक 'निश्चय' चाहिए, एक नीतीश चाहिए. बताते हैं कि शाम तक उतार लिया गया था.
बिहार की राजनीति में यह चर्चा जोर पकड़ने लगी थी कि नीतीश बाबू अब केंद्रीय राजनीति में जाने के मूड में हैं और तेजस्वी को सीएम पद मिल सकता है. कभी फूलपुर तो कभी नालंदा और पिछले दिनों बनारस से नीतीश के लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चा शुरू हो जाती. जेडीयू के कार्यकर्ता और नेता भी जोश में दिख रहे थे .इंडी गठबंधन की चौथी बैठक के बाद क्या हुआ कि नीतीश, लालू, तेजस्वी प्रेस कॉेन्फेस से पहले हीं निकल गए.