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लोकसभा चुनाव : जहानाबाद में जदयू का तीर गया घिर? एनडीए वोटर्स हुए हाथी पर सवार ! दूसरी तरफ ताल ठोंक रहा भूमिहार

लोकसभा चुनाव : जहानाबाद में जदयू का तीर गया घिर? एनडीए वोटर्स हुए हाथी पर सवार ! दूसरी तरफ ताल ठोंक रहा भूमिहार

पटना. 'चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी से कुछ गलती हुई हो तो माफ कर दीजिएगा'. जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह जहानाबाद पहुंचे तो अपने दल के प्रत्याशी के प्रति भूमिहारों की नाराजगी जान उन्होंने यह अपील की. ऐसे में ललन सिंह का यह मानना कि चंद्रवंशी से कुछ गलती हुई हो तो माफ कर दीजिएगा, इसका प्रमाण है कि जदयू को भी पता चल गया है कि जहानाबाद में इस बार लड़ाई बेहद चुनौतीपूर्ण है. खासकर भूमिहार वोटरों के बड़े वर्ग का झुकाव एनडीए की ओर नहीं दिख रहा है. यही जदयू के तीर के घिर जाने का कारण बनता नजर आ रहा है. ललन सिंह बार बार जहानाबाद में मतदाताओं से चंद्रवंशी की छोटी छोटी गलतियों को नजरअंदाज करने की अपील करते नजर आए हैं. 

जहानाबाद के काको ब्लॉक के जिस इलाके में ललन सिंह चुनाव प्रचार कर लौटे वहां के स्थानीय लोगों से बात करने पर वे कहते हैं. पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भी चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी की जीत मामूली वोटों के अंतर से हुई थी. लोकसभा चुनाव 2019 में वे मात्र 1751 वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे. लेकिन पांच साल बाद भी चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे उनके प्रति मतदाताओं का मजबूत जुड़ाव दिखे. कुर्मी जाति से आने वाले एक व्यक्ति कहते हैं 'मोदी लहर में चन्द्रवंशी चुनाव तो जीत गए लेकिन वे कभी भी क्षेत्र में सक्रिय नहीं दिखे. ना ही उनके कार्यकाल में ऐसा कोई काम जहानाबाद में दिखा जिससे वे काम से अपनी छाप छोड़ पाए हों. इस बार तो यहां मोदी लहर भी नहीं है. 

2020 में एनडीए की हुई हार : घोसी में मिले भूमिहार जाति के लोगों का कहना है कि वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में भी चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी के प्रति लोगों की नाराजगी दिखी थी. तब जहानाबाद संसदीय क्षेत्र की सभी छह विधानसभा सीटें अरवल, कुर्था, जहानाबाद, घोसी, मखदुमपुर और अतरी में राजद और सीपीआई (एमएल) की जीत हुई थी. इसका बड़ा कारण भूमिहारों का एनडीए से मोहभंग होना था. इस बार भी ऐसा ही ट्रेंड है. भूमिहारों का मानना रहा है कि जहानाबाद उनकी जाति की परम्परागत सीट रही है. लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में जदयू ने चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी को उम्मीदवार बनाकर भूमिहारों से उसकी परम्परागत सीट छीन ली. घोसी के कई लोगों का कहना है कि इस बार उनके पास भूमिहार के रूप में बड़ा विकल्प है. इसमें बसपा से अरुण कुमार सिंह उम्मीदवार हैं जो इसी इलाके के पूर्व सांसद हैं. साथ ही भूमिहार जाति से आते हैं. 

भूमिहार को मिला नया विकल्प  : अरुण कुमार के साथ भूमिहारों का एक बड़ा वर्ग हुंकार भरता दिख रहा है. बसपा के हाथी पर सवार होने के कारण अरुण सिंह क्षेत्र में जातीय समीकरणों को साधने में लगे हैं. सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ अरुण सिंह के मुखर रहने का पुराना इतिहास है. ऐसे में भूमिहारों की गोलबंदी उनके लिए इसलिए भी दिखती है क्योंकि जहानाबाद को भूमिहार अपनी परम्परागत सीट मानते हैं. वे अरुण सिंह के बहाने जदयू को जवाब देना चाहते हैं. साथ ही बसपा से टिकट मिलने के कारण अरुण सिंह को दलित मतदाताओं के एक बड़े वर्ग का भी साथ मिल सकता है. पिछले चुनावों में भूमिहार हो या दलित यह बड़े पैमाने पर एनडीए के साथ रहा था. इस बार इन वर्गों के मतदाताओं का एनडीए से मोहभंग हुआ तो यह हाथी को बड़ा साथ और तीर के लिए मुश्किलें बढ़ाने वाली होगी. 

हाथी की मजबूती से बढ़ी टेंशन : अतरी में रविदास जाति से आने वाले लोगों का कहना था कि जदयू हो या राजद दोनों के लिए हाथी की मजबूत होती चाल मुश्किलें बढ़ा रही है. लालटेन व तीर की राह में हाथी की धमक ने चुनावी महासंग्राम को रोचक बना दिया है. जदयू के सांसद चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी, राजद के पूर्व सांसद सुरेंद्र यादव व बसपा से पूर्व सांसद अरुण कुमार समेत 15 प्रत्याशी मैदान में हैं. यह बिहार की एकमात्र ऐसी सीट है, जहां से एक वर्तमान सांसद के सामने दो पूर्व सांसद न केवल ताल ठोक रहे हैं, बल्कि मजबूत त्रिकोण भी बना रहे हैं. वर्ष 1998 के बाद से जितने भी चुनाव हुए हैं हर बार मौजूदा सांसद की हार हुई है. ऐसे में एनडीए से अलग होकर भूमिहारों का ताल ठोकना जहानाबाद में जदयू के तीर के बुरी तरह घिर जाने वाली स्थिति को दर्शा रहा है. 



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