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भगवान राम की आराध्या वनदुर्गा मां सबरी, गुरू के वचन को भवसागर का पतवार बना परमात्मा को पाने में सफल रहीं,पढ़िये पूरा आलेख

भगवान राम की आराध्या वनदुर्गा मां सबरी, गुरू के वचन को भवसागर का पतवार बना परमात्मा को पाने में सफल रहीं,पढ़िये पूरा आलेख

PATNA : महर्षि मतंग ने आश्रम सबरी को सौंप दिया और देवलोक के लिए प्रस्थान करने लगें। सबरी अधीर हो गयी और महर्षि के साथ जाने की जिद करने लगी। महर्षि ने उनको धैर्य-धारण कराया और आश्रम में रहने को कहा। महर्षि ने सबरी से कहा कि तुमको यहीं प्रभु का स्वागत करना है, प्रभु यहीं आयेंगे। सबरी ने पूछा कि वो कब आयेंगे ? महर्षि ने बताया जब प्रभु अयोध्या के राजा दशरथ के यहॉं पुत्र के रूप में जन्म लेंगे, तब वे यहां आयेंगे। तुम्हें उनकी प्रतीक्षा करनी है। अभी तो दशरथ का विवाह ही नहीं हुआ है। तीन रानियों से उनका विवाह होगा। प्रभु राम के रूप में जन्म लेंगे। राम को 14 वर्ष का वनवास होगा। वनवास के अंतिम वर्ष में माता सीता का हरण होगा। उनकी खोज में जब राम यहॉं आयेंगे, तुम राम को सुग्रीव से मिलवा देना। इससे सीता की खोज में मदद होगी।

तब सबरी केवल 10 वर्ष की थी, किसी तरह उन्होंने धैर्य धारण किया। महर्षि ने घुटनों के बल बैठकर सबरी को प्रणाम किया और प्रयाण कर गये। सब आश्चर्यचकित हो गये, गुरू शिष्य का वंदन कर रहे हैं। सबरी अबोध मन से राम की प्रतीक्षा करने लगी। आश्रम के प्रवेश द्वार को एकटक होकर देखती रहती और प्रतिदिन दरवाजे पर पुष्प बिखेरती। सबरी का मन अबोध था वे सोचती थीं कि प्रभु तो काल नियंता हैं, पता नहीं कब काल चक्र पूरा कर यहॉं आ जायें, इसलिए वे नित्य दिन प्रतीक्षारत रहतीं। प्रतीक्षा करती-करती सबरी बूढ़ी हो गयी। राम आये, सबरी ने गुरू के वचनों का पालन किया। राम की माताओं ने कभी उनको जूठा भोजन नहीं कराया था। लेकिन सबरी के जूठे बेर उन्होंने खाये।

सबरी के प्रबल विश्वास ने घोर वन में राम की भीषण संकटों से रक्षा की। उनकी प्रतीक्षा राम का रक्षा कवच थी। वे ही राम की आराध्या वनदुर्गा हैं। विश्वास और प्रेम का यह अद्वितीय उदाहरण है और गुरू की आज्ञा पालन का आदर्श भी। किन्तु इसके मूल में गुरू की ही महिमा है।

        के0एस0 द्विवेदी,

पूर्व पुलिस महानिदेशक,बिहार

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