बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

ममता की माया,केजरी का नहला पर दहला,नीतीश की आंख हुई लाल,इंडी गठबंधन में मचा है धमाल,सब आपस में ही ठोक रहे ताल...पूरा है बवाल..पढ़िए इन साइड स्टोरी

ममता की माया,केजरी का नहला पर दहला,नीतीश की आंख हुई लाल,इंडी गठबंधन में मचा है धमाल,सब आपस में ही ठोक रहे ताल...पूरा है बवाल..पढ़िए इन साइड स्टोरी

पटना- साल 2024 केलोकसभा चुनाव को लेकर देश में सियासी पारा चढ़ा हुआ है. वहीं विपक्षी दलों का गठबंधन 'इंडिया' लोकसभा चुनाव 2024 से पहले ही संकट में नजर आ रहा है. न तो इस गठबंधन का नेता कौन होगा यह तय हो पाया है, न ही सहयोगी दलों के बीच सीट शेयरिंग पर फैसला हो पाया है. हर दल के क्षेत्रीय छत्रप खुद को इंडिया गठबंधन का नेता साबित करने पर तुले हैं. तो वहीं 

इंडिया गठबंधन पहले ही दिन से कई चुनौतियों से जूझ रहा है. जैसे इसके घटक दल कई राज्यों में एक दूसरे के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी हैं और वे एक-दूसरे के विरुद्ध चुनाव भी लड़ते रहे हैं. इसके साथ ही विभिन्न मुद्दों और विषयों पर उनकी स्टैंड भी अलग है.

इंडी गठबंधन की दूसरी बैठक के बाद ही ममता बनर्जी ने जो तेवर दिखाया था, उससे पता चल गया था कि गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. इसके बाद बैठक में शामिल होने से इंकार कर ममता बनर्जी ने अपनी नाराजगी प्रकट कर दी है. हालांकि उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि बैठक कब और कहां हो रही है इसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. इसके विपरीत कांग्रेस की तरफ से कहा जा रहा है कि सभी नेताओं को बैठक की सूचना दे दी गई थी. ममता बनर्जी की सफाई और कांग्रेस के बचाव ने गठबंधन की पोल खोलकर रख दी. चौथी बैठक में ममता शामिल हुईं तो खड़गे को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर इंडी गठबंधन में बवाल मचा दिया. इससे पहले पांच विधानसभा में चुनाव पर कांग्रेस की हार पर ममता बनर्जी से सवाल खड़ा करते हुए उन्होंने दो टूक कहा कि ये जनता की नहीं कांग्रेस की हार है. कांग्रेस की हार ‘ज़मींदारी एटीट्यूड’ की वजह से हुई है. वहीं जनता दल यूनाइटेड का कहना है कि कांग्रेस के ‘घमंड’ की वजह से हार मिली है.

वहीं पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने सीधे टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी को निशाने पर लेते हुए यहां तक कह दिया कि ममता बनर्जी अलायंस ही नहीं चाहती हैं. वो मोदी की सेवा में लगी हुई हैं.उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने पश्चिम बंगाल में अलायंस में सहयोगी कांग्रेस को सिर्फ दो लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की कोशिश की है. सूत्रों ने यह भी बताया था कि चूंकि 2019 के चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने राज्य में 43 प्रतिशत वोट हासिल किए थे और 22 सीटें जीती थीं. ऐसे में टीएमसी चाहती है कि बंगाल में वो प्रमुख पार्टी है और उसे सीट बंटवारे पर अंतिम फैसला लेने का अधिकार दिया जाना चाहिए.टीएमसी के इस फॉर्मूले पर कांग्रेस ने कड़ी आपत्ति जताई है. प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने कहा, पता नहीं किसने ममता से भीख मांगी है. हमने तो कोई भीख नहीं मांगी. ममता खुद ही कह रही हैं कि वो गठबंधन चाहती हैं. हमें ममता की दया की कोई जरूरत नहीं है. हम अपने दम पर चुनाव लड़ सकते हैं.

गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस यानी इंडिया गठबंधन के अस्तित्व में आने के तुरंत बाद से ही इसमें आम आदमी पार्टी की मौजूदगी को लेकर सवाल उठते रहे हैं. कांग्रेस की दिल्ली और पंजाब स्टेट यूनिट्स इसके खिलाफ खुलकर उतर आई थीं तो सीट बंटवारा कैसे होगा? ये भी गठबंधन की शुरुआत से लेकर अब तक अनसुलझी पहेली बना हुआ है.साल 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस 22.6 फीसदी वोट शेयर के साथ बीजेपी के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. आम आदमी पार्टी का वोट शेयर 18.2 फीसदी रहा था. दिल्ली की सात में से पांच सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे जबकि आम आदमी पार्टी दो सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी. वोटों के लिहाज से देखें तो कांग्रेस को तब 19 लाख 53 हजार 900 वोट मिले थे. आम आदमी पार्टी को दिल्ली में कुल 15 लाख 71 हजार 687 वोट मिले थे.

कांग्रेस प्रवक्ता अलका लांबा ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के साथ दिल्ली के नेताओं की बैठक के बाद कहा था कि पार्टी सभी सात सीटों पर चुनाव लड़ेगी. कांग्रेस की ओर से अलका लांबा के इस बयान को लेकर बाद में सफाई भी आई लेकिन चर्चा ये भी रही कि दिल्ली कांग्रेस के नेता सभी सीटों पर अकेले चुनाव मैदान में उतरने के पक्ष में हैं. इसके पीछे दिल्ली में आम आदमी पार्टी से प्रतिद्वंदिता और गठबंधन कर केजरीवाल की सरकार बनवाने के बाद के खट्टे अनुभव ही नहीं,  2014 की तुलना में 2019 के चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन का चढ़ा ग्राफ भी है. कांग्रेस ये भी जानती है कि लोकसभा चुनाव के आंकड़ों में भारी रहने के बावजूद अगर केंद्र शासित प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के आधार पर आम आदमी पार्टी को दिल्ली में अधिक सीटें देने के लिए तैयार हो जाती है तो पंजाब में भी मुश्किल होगी. फिर आम आदमी पार्टी पंजाब में भी यही फॉर्मूला लागू करने की मांग करेगी जहां उसकी ही सरकार है. 2019 के चुनाव में कांग्रेस को पंजाब की 13 में से आठ सीटों पर जीत मिली थी. आम आदमी पार्टी तब एक सीट पर सिमट गई थी.कांग्रेस अगर दिल्ली में कम सीटों पर मान भी जाए तो आम आदमी पार्टी पंजाब में कम सीटों पर मान जाए, इसके आसार नहीं के बराबर हैं. इंडिया गठबंधन की ओर से सीट शेयरिंग फॉर्मूले को लेकर अभी आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है. ऐसे में देखना होगा कि दिल्ली का पेच किस फॉर्मूले से सुलझता है. अगर पवार की बात के मुताबिक आम आदमी पार्टी कांग्रेस को तीन ही सीट देती है तो क्या देश की सबसे पुरानी पार्टी सबसे नई पार्टी के इस फॉर्मूले को मान लेगी?

वहीं इंडी गठबंधन की बैठक में जैसे ही ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रधानमंत्री उम्मीदवार के लिए आगे किया. चौथी बैठक से लालू प्रसाद और नीतीश कुमार नाराज हो गए. वे प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी शामिल नहीं हुए. राजनीतिक पंडितों के अनुसार 'इंडिया' गठबंधन की चौथी बैठक के बाद जेडीयू ने अपनी चुनावी तैयारी की अलग से पूरी योजना बना ली है. जेडीयू ने अरुणाचल प्रदेश में चुनाव लड़ने का ऐलान करते हुए प्रत्याशी घोषित कर दिया. जेडीयू के इस कदम को नीतीश की गठबंधन से नाराजगी के तौर पर देखा जा रहा है. जेडीयू ने हाल के दिनों मे कुछ ऐसे कदम उठाए हैं, जिनसे लग रहा है कि जेडीयू 'इंडी' गठबंधन से कटा-कटा है. जेडीयू की ओर से मुंगेर लोकसभा सीट से ललन सिंह और दरभंगा से संजय झा चुनाव लड़ेंगे. देवेश चंद्र ठाकुर को सीतामढ़ी से चुनाव लड़ेंगे. नीतीश कुमार इस बात को पहले ही साफ कर चुके हैं. जेडीयू भी इनके नामों को हरी झंडी दे चुकी है. जेडीयू के इस कदम को नीतीश की गठबंधन से नाराजगी के तौर पर देखा जा रहा है.बिहार के सीट फॉर्मूले पर जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल सहमत होते हैं या नहीं यह देखने वाली बात होगी. बिहार में इस बार लेफ्ट भी मजबूत स्थिति में हैं ऐसे में कांग्रेस को 12 सीटें मिल पाएंगी या नहीं, यह भी नहीं कहा जा सकता है. बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं. कांग्रेस इस राज्य में 10 से 12 सीटों पर दावेदारी ठोक रही है. 40 लोकसभा क्षेत्रों वाले बिहार में कांग्रेस कम से कम 12 सीटें चाहती है. कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार, औरंगाबाद, भागलपुर, बक्सर, सासाराम, मोतिहारी, वाल्मीकिनगर, नवादा और पटना सीटों पर कांग्रेस लड़ना चाह रही है.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस 80 में से 40 लोकसभा सीटों पर दावेदारी ठोक रही है. कांग्रेस यहां सीटों से समझौता नहीं करना चाहती है. लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस यूपी से महज एक सीट जीत पाई थी. राहुल गांधी अपना गढ़ अमेठी संसदीय क्षेत्र हार गए थे, सोनिया गांधी रायबरेली लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस को इकलौती सीट दिलाने में कामयाब हो गई थीं. कांग्रेस पार्टी उन सीटों पर जोर दे रही है, जहां भरोसा है कि मजबूत स्थिति में है. कांग्रेस उन सीटों को छोड़ रही है, जहां वह कमजोर है. यूपी की 40 सीटें कौन सी होंगी, इसे लेकर मंथन जारी है. कांग्रेस का तर्क है लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस पार्टी की वोट शेयरिंग बढ़ी है. समाजवादी पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी को पर्याप्ट सीटें दी थीं, ऐसे में कांग्रेस भी ज्यादा सीटों के लिए अपनी दावेदारी ठोक रही है. अब कांग्रेस के इस फैसले पर अखिलेश यादव और बसपा सहमति देते हैं या नहीं यह भी देखने वाली बात होगी. ऐसा भी हो सकता है कि सपा सभी सीटों पर अपनी दावेदारी ठोके.यूपी में कांग्रेस पार्टी की कुछ भरोसेमंद सीटे हैं. उन सीटों पर कांग्रेस अपने प्रत्याशियों को हर हाल में उतारेगी. अमरोहा, सहारनपुर, लखीमपुर खीरी, बिजनौर, मुरादाबाद, लखनऊ, रायबरेली, अमेठी और बाराबंकी लोकसभा क्षेत्रों में कांग्रेस अपने उम्मीदवार जरूर उतारेगी. इन्हीं सीटों पर समाजवादी पार्टी का भी दमखम ठोंकेगी. इन राज्यों में अल्पसंख्यक वोटरों की बड़ी तादाद है, कांग्रेस और सपा दोनों को इन्हीं सीटों पर भरोसा है. सपा भी इन सीटों को अपना मानती है.

कांग्रेस अब मणिपुर से महाराष्ट्र तक भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर जोर दे रही है. अभी इंडिया गठबंधन के लिए समीकरण ऐसे बन रहे हैं कि क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस को पर्याप्त सीटें देने के लिए तैयार नहीं हैं, कम सीटों पर कांग्रेस अपमानपूर्ण समझौता करेगी नहीं.



Suggested News