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नहीं रहे मैथिली भाषा और साहित्य के मार्तंड विद्वान पंडित गोविंद झा, 102 वर्ष की उम्र में निधन

नहीं रहे मैथिली भाषा और साहित्य  के मार्तंड विद्वान पंडित गोविंद झा, 102 वर्ष की उम्र में निधन

मैथिली साहित्य के विख्यात साहित्यकार पंडित गोविंद झा का बुधवार की दूर रात निधन हो गया. उनकी उम्र करीब 102 वर्ष की थी. उन्हें साहित्य अकादमी का मूल और अनुवाद का पुरस्कार 1993 में प्राप्त हुआ. फादर कमिल बुल्के पुरस्कार 1988 में प्राप्त हुआ. 2008 में उन्हें प्रबोध साहित्य सम्मान , रांची से विश्वंभर सााहित्य सम्मान भी मिला. चेतना समिति से ताम्रपत्र दिया गया था. राजभाषा विभाग में अनुवाद पदाधिकारी और मैथिली अकादमी में उप निदेशक पद से रिटायर हुए.

मैथिली और संस्कृत के वरेण्य विद्वान पंडित गोविंद झा मिथिला के विद्वानों में शिखर पुरुष थे. वे अपने जीवन के 102 की  उम्र में भी  साहित्यिक सांस्कृतिक लेखन में रचनारत रहते थे. पंडित गोविंद झा का जन्म 10 अगस्त, 1922 को बिहार के मिथिला में मधुबनी जिला के इसहपुर (सरिसब-पाही) नामक एक संभ्रांत और विद्वानों से भरे-पूरे गांव में हुआ. इनका पैतृक परिवार संस्कृत वांग्मय में संपूर्ण रूप से रचा बसा परिवार था. पंडित गोविंद झा के पिता महा वैयाकरण पंडित दीनबंधु झा स्वयं संस्कृत और मैथिली के पारगामी विद्वान माने जाते थे. उनके पैतृक परिसर का मिथिला के शिक्षा एवं साहित्य-संस्कृति में उल्लेखनीय योगदान था. गोविंद झा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही पूर्ण किया. इसके बाद आपने व्याकरणाचार्य, साहित्यरत्न, साहित्याचार्य, वेदाचार्य आदि परीक्षा पास किया. इसी दौरान इन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, प्राकृत, बांग्ला, उर्दू, असमिया नेपाली आदि भाषाओं का भी विधिवत अध्ययन किया.

अध्ययन के साथ-साथ आपने परिवार के भरण-पोषण हेतु आजीविका भी शुरू की. इसकी शुरूआत आपने 1950 में न्यूज़ पेपर्स एंड पब्लिकेशन, पटना के साथ शब्दकोश-सहायक के रूप में की. 1951-1978 तक आपने बिहार सरकार के राजभाषा पदाधिकारी के रूप अपनी सेवाएं दीं. 1978-1985 तक बिहार सरकार के मैथिली अकादमी पटना के उपनिदेशक भी रहे और यहीं से सेवानिवृत्ति भी ली. सेवानिवृत्ति के उपरांत भी इन्होंने वर्ष 1988 तक सुलभ इंटरनेशनल पटना दिल्ली के लिए पुस्तक आरक्षक के पद को सुशोभित किया. 

पाणिनि के व्याकरण की व्याख्या करते हुए गोविंद झा ने एक तरफ संस्कृत के भाषा-विज्ञान और भाषिक विकास के प्राचीन अर्वाचीन अविष्कारों को सम्मिलित किया वहीं पाश्चात्य भाषा विज्ञान को भी आदर सहित अपनी व्याख्या में स्थान दिया.अपने साहित्य लेखन में गोविंद झा ने कथा, कविता, नाटक आदि रचना में समकालीन मिथिला के सामाजिक-सांस्कृतिक शैक्षणिक कुरीतियों-पाखंडों को बड़ी ही निर्ममता के साथ उजागर किया. उपन्यास लेखन में मिथिला के इतिहास-प्रसिद्ध नायकों को स्थान दिया. इतिहास लेखन के इस शैली में इन्होंने सदैव अनुसंधानपरक एवं विज्ञान सम्मत लेखन को प्रश्रय दिया.

शब्दकोश निर्माण के क्रम में इन्होंने मैथिली सहित हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला, नेपाली, अवहट्ट, प्राकृत आदि भाषाओं के लिए भी प्रशंसनीय कार्य किए. संपादन के क्रम में इन्होंने मिथिला के कर्मकांड, धर्मशास्त्र इतिहास, साहित्य, काव्य आदि प्रभागों में अपनी बौद्धिक क्षमता एवं परिपक्वता दिखाई.पंडित गोविंद झा के 100 वर्ष के जीवनकाल में 75 वर्षों से अधिक का लेखन काल रहा. आपने 3 उपन्यास, 3 कथा-संग्रह, 7 नाटक, एक कविता संग्रह, 6 आलोचनात्मक निबंध संग्रह, दो जीवनी-विनिबंध, 13 भाषा-ग्रंथ, 4 कोष-ग्रंथ, 8 संपादित-ग्रंथ, 8 अनुवाद सहित बिब्लियोग्रैफी  ऑफ इंडियन लिटरेचर (मैथिली प्रभाग) और इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इंडियन लिटरेचर के निर्माण में भी अपना योगदान दिया. इस प्रकार इन्होंने  56 पुस्तकों की रचना की .

न्यूज4नेशन परिवार की तरफ से मैथिली साहित्य के विख्यात साहित्यकार पंडित गोविंद झा को अंतिम प्रणाम.


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