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सबसे अलग है मिजोरम का विधानसभा चुनाव, किन मुद्दों से तय होगी जीत और हार और मणिपुर हिंसा और म्यांमार के शरणार्थियों का मुद्दा कितना अहम? जान लीजिए...

सबसे अलग है मिजोरम का विधानसभा चुनाव, किन मुद्दों से तय होगी जीत और हार और मणिपुर हिंसा और म्यांमार के शरणार्थियों का मुद्दा कितना अहम?  जान लीजिए...

डेस्क-  पांच राज्‍यों में विधानसभा चुनाव के लिए नोटिफिकेशन जारी होने के बाद मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, राजस्थान और तेलंगाना में  नमांकन में समय बचा है। पूर्वोत्तर में म्यांमार और बांग्लादेश की सीमा से सटे पर्वतीय राज्य मिजोरम में सात नवंबर को विधानसभा चुनाव होने हैं.  यहां पारंपरिक रूप से मुकाबला मिजो नेशनल फ्रंट और कांग्रेस के बीच होता रहा है। मिजो नेशनल फ्रंट बीते दस साल से सत्ता में है, लेकिन इस बार राज्य के राजनीतिक समीकरण बदले हुए नजर आ रहे हैं। इस बार जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) सत्तारूढ़ एमएनएफ को कड़ी टक्कर दे कर मुकाबले को तिकोना बनाती नजर आ रही है।

जैसे-जैसे वोटिंग की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ती जा रही है। चुनाव प्रचार का दौर भी शुरू हो चुका है। राज्य में होने वाला हर चुनाव यंग मिजो एसोसिएशन और चर्च की भूमिका के लिए भी सुर्खियां बटोरता रहा है। वर्ष 2006 में चर्च और यंग मिजो एसोसिएशन (वाईएमए) जैसे असरदार संगठनों के प्रतिनिधियों को लेकर बना िजोरम पीपुल्स फोरम (एमपीएफ) ही अब चुनावी आचार संहिता को कड़ाई से लागू करने का काम करता है। यह ना सिर्फ चुनावी रैली की जगह और समय सीमा तय करता है बल्कि झंडों और पोस्टरों की संख्या और साइज भी तय कर देता है। चुनावी आचार संहिता के मामले में फोरम के निर्देशों की अनदेखी किसी उम्मीदवार की हार की वजह बन सकता है। इस मामले में फोरम की भूमिका चुनाव आयोग से कहीं ज्यादा असरदार है।

आइजोल पूर्व-I विधानसभा सीट से निवर्तमान मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा फिर से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. ज़ोरमथांगा ने 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां जीत हासिल की थी. इस बार उनका मुकाबला ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट  के उपाध्यक्ष लालथानसांगा से होगा. आइजोल ईस्ट-I पारंपरिक रूप से कभी कांग्रेस का गढ़ था. ऐसे में यहां त्रिकोणीय मुकाबला हो सकता है.वहीं  सेरछिप विधानसभा क्षेत्र को लेकर भी काफी चर्चाएं हो रही हैं. यहां से जेडपीएम नेता और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार लालडुहोमा ताल ठोक रहे हैं. वह वर्तमान में इस सीट से विधायक हैं. इस बार उनका मुकाबला एमएनएफ के नवागंतुक जे. माल्सावमज़ुअल वानचावंग और कांग्रेस उम्मीदवार आर. वानलालट्लुआंगा से है.  त्रिपुरा सीमा के पास मिजोरम के ममित जिले में स्थित हच्छेक विधानसभा सीट पर मौजूदा कांग्रेस विधायक लालरिंडिका राल्टे और वर्तमान राज्य खेल मंत्री रॉबर्ट रोमाविया रॉयटे के बीच कड़ा मुकाबला होगा. एमएनएफ नेतृत्व ने रणनीतिक रूप से राल्टे को यहां शिकस्त देने के लिए रोयटे को इस निर्वाचन क्षेत्र में भेजा है. यह निर्वाचन क्षेत्र परंपरागत रूप से कांग्रेस का गढ़ रहा है, लेकिन रोयटे को एक मजबूत दावेदार माना जाता है.  आइजोल पश्चिम में भी त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है. एमएनएफ, जेडपीएम और कांग्रेस के बीच यहां कड़ी फाइट है.  आचार संहिता के जमीनी स्तर पर बेहद कड़ाई से लागू होने के कारण यहां चुनावी तस्वीर देश के दूसरे राज्यों को मुकाबले भिन्न नजर आती है। लगभग 15 साल तक केंद्र शासित प्रदेश रहने के बाद फरवरी 1987 में मिजोरम को भारत के पूर्ण राज्य का दर्जा मिला था। वर्ष 2018 में एमएनएफ ने 26, जेडपीएम ने आठ और यूपीए ने पांच सीटें जीती थी। तब बीजेपी को महज एक सीट मिली थी।

इस बार जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) सत्तारूढ़ एमएनएफ के लिए एक मजबूत चुनौती के तौर पर उभरा है। यह संगठन वर्ष 2017 में बना था और 2018 के चुनाव में पहली बार ही उसने आठ सीटें जीती थी। हालांकि एमएनएफ प्रमुख और मुख्यमंत्री जोरमथांगा दावा करते हैं कि विकास की दिशा में किए गए कामकाज के कारण इस बार उनकी पार्टी कम से कम 25 सीटें जीत कर सत्ता की हैट्रिक लगाएगी।मिजोरम में बीजेपी अपने दम पर अगली सरकार बनाने के लिए जातीय अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत बनाने का प्रयास कर रही है। बता दें कि राज्य में अभी मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है जो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का ही घटक है।

मुख्यमंत्री जोरमथंगा के नेतृत्व वाला मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) एनडीए का सहयोगी है। हालांकि बीजेपी और एमएनएफ अलग-अलग चुनाव मैदान में हैं। राज्य की 87 फीसदी आबादी ईसाई है। पड़ोसी मणिपुर में हुई हिंसा और वहां से कुकी समुदाय के लोगों के भारी तादाद में पलायन ने राज्य में बीजेपी के प्रति नाराजगी बढ़ा दी है। ऐसे में उसके साथ रह कर जोरमथंगा ईसाई वोटरों को नाराज करने का खतरा नहीं उठा सकते। तीसरी बार जोरमथंगा की सत्ता में वापसी हुई तो रिकॉर्ड बनेगा लेकिन यह ईसाई वोटरों के समर्थन पर ही निर्भर है।

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी बीते सप्ताह मिजोरम का दो-दिवसीय दौरा कर चुके हैं। उन्होंने इस दौरान कहा कि पार्टी अबकी यहां सत्ता हासिल करने के प्रति बेहद गंभीर है। मिजोरम के कांग्रेस अध्यक्ष लालसावता कहते हैं कि हमने बीजेपी से मुकाबले के लिए इस बार दो क्षेत्रीय दलों के साथ मिल कर मिजोरम सेक्युलर एलायंस (एमएसए) का गठन किया है।बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में मिजोरम में सत्ता में आने की स्थिति में युवा उद्यमियों को पांच-पांच लाख रुपए की सहायता देने का ऐलान किया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वामलालमुआका कहते हैं कि हमारा मकसद इस राज्य में विकास की गति को तेज कर इसे राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल करना है।अबकी चुनाव प्रचार के दौरान सीमा पार म्यांमार और बांग्लादेश के अलावा पड़ोसी मणिपुर से भारी तादाद में शरणार्थियों का आना, मणिपुर की हिंसा और असम के साथ सीमा विवाद ही प्रमुख चुनावी मुद्दे के तौर पर उभरे हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षक के। वानलालुरेट कहते हैं, "मिजोरम का चुनाव अबकी दिलचस्प है। इस बार यहां सत्ता के तीनों दावेदारों यानी एमएनएफ, जेडपीएम और कांग्रेस की साख दांव पर लगी है। उधर, बीजेपी भी अपनी सीटों की तादाद बढ़ाने के लिए जोर लगा रही है। शरणार्थियों के मुद्दे पर आम लोगों की राय चुनावी नतीजे में निर्णायक भूमिका निभाएगी।"

राज्य वर्तमान में लगभग 72,000 शरणार्थियों की मेजबानी कर रहा है, जिनमें मणिपुर के कुकी और फरवरी, 2021 में सैन्य तख्तापलट के बाद म्यांमार से भाग गए लोग भी शामिल हैं. शरणार्थी संकट से निपटना एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गया है, विपक्ष ने राज्य सरकार पर अयोग्यता का आरोप लगाया है. सत्तारूढ़ दल केंद्रीय सहायता की मांग कर रहा है.अन्य प्रमुख मुद्दों में असम और मिजोरम के बीच चल रहा सीमा विवाद और राज्य में नशीली दवाओं की बढ़ती तस्करी शामिल है. 2021 में असम-मिजोरम सीमा पर हिंसक झड़पों में कई लोग हताहत हुए थे और बातचीत से अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है.

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