बिहार उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश उत्तराखंड झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश दिल्ली पश्चिम बंगाल

LATEST NEWS

पंचायत जनप्रतिनिधियों को आत्मरक्षा के नाम पर गुंडई को बढ़ावा दे रही नीतीश सरकार, पत्रकार व जागरूक नागरिक होंगे शिकार

पंचायत जनप्रतिनिधियों को आत्मरक्षा के नाम पर गुंडई को बढ़ावा दे रही नीतीश सरकार, पत्रकार व जागरूक नागरिक होंगे शिकार

LAKHISARAI : हाल ही में नीतीश कुमार की सरकार के पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने प्रदेश के पंचायती राज व्यवस्था में शामिल जनप्रतिनिधियों को कैम्प लगाकर हथियार का लाइसेंस देने का फरमान जारी किया है।त्वरित कार्रवाई करते हुए पंचायती राज विभाग के निदेशक रंजीत कुमार सिंह ने सभी जिलों के जिलाधिकारी को इस सम्बंध में चिट्ठी भी जारी कर दी।मुखिया, सरपंच से लेकर वार्ड सदस्य तक अब आसानी से हथियार का लाइसेंस ले सकेंगे।पंचायती राज मंत्री ने कहा कि सरकार को दो लाख उनसठ हजार पंचायत प्रतिनिधियों की चिंता है।दरअसल पंचायत चुनाव के दौरान और चुनाव के बाद कुछ पंचायत प्रतिनिधियों पर जानलेवा हमले हुए जिसमें कुछ की जान चली गई।प्रदेश में कानून का राज स्थापित करने में असफल रही सरकार अपनी जिम्मेदारियों से भागती नजर आती है।

हथियार बढ़ने से बना रहेगा अनहोनी का डर

प्रदेश के कुल 8387 पंचायतों में 8387 मुखिया,उतने ही सरपंच,11491 पंचायत समिति सदस्य,1 लाख 14 हजार 667 वार्ड सदस्य, इतने ही पंच एवं 1161 जिला परिषद सदस्य हैं।ऐसे में यदि हर एक जनप्रतिनिधि हथियार लेता है तो प्रदेश में हथियारों की संख्या काफी बढ़ जाएगी और अनहोनी का डर हमेशा बना रहेगा।वो भी तब जबकि इस बात को हर कोई जानता है कि बिहार में मुखिया का पद दबंग होने की पहचान है।कई आपराधिक छवि के लोग या उनके परिजन मुखिया पद की शोभा बढ़ा रहे हैं।ऐसे ही पंचायत चुनाव में ग्रामीण दबंगों का विरोध करने की हिम्मत नहीं करते हैं और जब हाथ में लाइसेंसी हथियार होगी फिर तो आपराधिक छवि वाले जनप्रतिनिधियों का मनोबल सातवें आसमान पर होगा।


अपने उद्देश्य से भटक सकती है पंचायती राज व्यवस्था

हमेशा से ऐसा देखा जा रहा है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तुलना में पंचायत चुनाव में सामाजिक वातावरण अधिक जहरीला हो जाता है।पंचायत चुनाव में एक-एक मत मायने रखता है और माहौल तनावपूर्ण बना रहता है।चुनाव के दौरान हुआ विवाद लंबे समय तक याद रखा जाता है और किसी का विरोध पुस्तैनी झगड़े में तब्दील हो जाता है।एक ही समाज में रहने की वजह से चुनावी विरोध को लोग अपने सम्मान से जोड़ लेते हैं और अपने विरोधियों से बदला लेने की फिराक में लगे रहते हैं।आवेश में लोग सही गलत भूल जाते हैं और जोश में होश खो बैठते हैं।इस बात में कोई दो मत नहीं है कि समाज के कमजोर लोग हथियार का विरोध करने की हिम्मत नहीं करेंगे और पंचायती राज व्यवस्था का उद्देश्य कभी पूरा नहीं हो पाएगा।

पत्रकार और जागरूक नागरिक होंगे शिकार

हाल ही में बेगूसराय के पत्रकार सुभाष कुमार की अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दी।ऐसे तो हत्या के कारण का पता नहीं चल पाया है लेकिन स्थानीय लोग इसे पंचायत चुनाव से जोड़ रहे हैं।जानकारी मिलती है कि पत्रकारिता के कारण सुभाष अपराधियों के निशाने पर थे।ऐसी और भी कई घटनाएं हैं जब पंचायत प्रतिनिधियों के द्वारा पत्रकारों को धमकी दी गई है।पत्रकारों और पंचायत प्रतिनिधियों के बीच हमेशा से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है।दरअसल पंचायती राज व्यवस्था पूरी तरह भ्रष्टाचार में डूबी है।ये शासन की जितनी छोटी इकाई है भ्रष्टाचार में उतनी ही बड़ी इकाई है।पंचायतों के विकास की सारी योजनाओं से मुखिया और वार्ड सदस्य सीधे जुड़े होते हैं।जबकि सरपंच और पंचायत समिति सदस्य के पास भी कई महत्वपूर्ण अधिकार होते हैं जो पंचायत के हर व्यक्ति को प्रभावित करते हैं।पंचायत के मुखिया के पास पैसे बनाने के असीमित साधन होते हैं।हम सब देख रहे हैं कि पंचायती राज व्यवस्था में शामिल जनप्रतिनिधि खासकर मुखिया का पद काफी मालदार पद बन गया है।हम देख रहे हैं कि एक कार्यकाल में ही मुखिया फर्श से अर्श पर पहुंच जा रहे हैं, साईकल से चलने वाले महँगी गाड़ियों में घूमने लगते हैं तो झोपड़ी में रहने वाले महलों में रहने लगते हैं।प्रदेश के करीब-करीब मुखिया ने अपने एक कार्यकाल में लाखों की सम्पत्ति बनाई और कार्यकाल यदि दो और तीन बार का हो तो वो करोड़ों की सम्पत्ति के मालिक हैं।हथियार होने के बाद आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे पंचायत की पोल खोलने वाले पत्रकार और समाज के जागरूक नागरिक दबंग जनप्रतिनिधियों के शिकार होंगे।

बंदूक संस्कृति की वजह से तबाह हो रहे अमेरिकी

अमेरिका में बंदूक संस्कृति के कारण आए दिन फायरिंग होते रहते हैं।हाल ही में एक शख्स ने एक स्कूल में घुसकर 19 बच्चों और 2 शिक्षिकाओं की हत्या कर दी।बीते पाँच महीने में वहाँ स्कूलों में गोलीबारी की ये 27वीं घटना थी।अमेरिका में हर साल करीब आठ हजार बच्चे गोलियों के शिकार होते हैं।अमेरिकी बाजार में हर साल करीब 50 लाख हथियार बेचे जाते हैं और अमेरिका के करीब 90 फीसदी लोगों के पास बंदूक है।नतीजा हम सब देख रहे हैं कि बंदूक संस्कृति की वजह से अमेरिकी खुद तबाह हो रहे हैं।

हथियार मिलने से बढ़ेगी गुंडई, अपने फैसले पर पुनर्विचार करे सरकार

जनप्रतिनिधियों को हथियार का लाइसेंस देने के फैसले पर सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए।एक तो पहले से ही बिहार की राजनीति में और यहाँ के पंचायतों में बाहुबलियों,दबंगों और गुंडों का दबदबा है,ऊपर से यदि सरकार ही गुंडई को बढ़ावा दे फिर तो सभ्य समाज का अंत तय है।सरकार को ये समझना होगा कि कभी भी हथियार के बल पर सभ्य समाज की स्थापना नहीं हो सकती।सरकार का उद्देश्य कानून के राज की व्यवस्था होना चाहिए न कि गुंडई को बढ़ावा देना।एक बार यदि ये चलन प्रारंभ हो गया तो फिर तो प्रदेश के करीब 13 करोड़ की आबादी को हथियार का लाइसेंस देना होगा।

Suggested News