बिहार में अब असली खेला की तैयारी ? "ऑपरेशन लोटस" है जारी, किस दल में होगी सेंधमारी?चेतन,नीलम और प्रह्लाद के बाद...कौन..जानिए

पटना: 12 फरवरी को बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार के सामने 24 साल पहले जैसी चुनौती खड़ी हो गई थी. पहले तो ऐसा ही लगा था.विधानवभा के अद्यक्ष अवधबिहारी चौधरी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के मतदान तक ऐसा ही लग रहा था. बहरहाल फ्लोर टेस्ट में नीतीश पास हुए. उन्हें 128 के बजाय 129 विधायकों का समर्थन मिला. तेजस्वी यादव के पीछे से लालू यादव ने विधायकों को संचालित करने की पूरी कोशिश भी की. लेकिन दाव सही नहीं लगा. राजद के तीन विधायकों ने हीं लक्ष्मण रेखा को पार कर दिया.तेजस्वी यादव के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदेह रहा. पूरी तैयारी धरी की धरी रह गई, लेकिन तेजस्वी यादव ने धैर्य से काम लिया. उनके भाषण में काफी संजीदगी देखने को मिली, खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति - और बगावत करने वाले विधायकों के बारे में भी बस इतना ही कहा- बात बने या न बने बाद में हमको जरूर याद कीजिएगा.
तेजस्वी का दावा हुआ फेल
नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे की घोषणा कर दी थी. देखते ही देखते वो महागठबंधन से एनडीए के नेता बन चुके थे, और फिर से मुख्यमंत्री बनने वाले थे. नीतीश कुमार के शपथग्रहण से कुछ ही देर पहले राजद नेता तेजस्वी यादव ने जो कहा था- मैं जो कहता हूं वो करता हूं... आप लिख कर ले लीजिये... जनता दल यूनाइटेड जो पार्टी है 2024 में ही खत्म हो जाएगी.तेजस्वी ने कहा था कि खेला होना बाकी है..बहरहाल फ्लोर टेस्ट के दौरान खेला तो नहीं हुआ..लेकिन...
नीतीश का खतरा टला नहीं, भाजपा के कान खड़े
प्लोर टेस्ट से पता चल गया कि नीतीश कुमार का खतरा टला नहीं है. जदयू और भाजपा के कुछ विधायकों ने विश्वासमत के पहले जिस तरह की खेला किया उससे की सवाल खड़े होने लगे हैं. कथित तौर पर एनडीए के तकरीबन दो दर्जन विधायक पाला बदल की ताक में थे. इसकी भनक लगते हैं भाजपा सावधान हो गई. भाजपा ने इसके लिए रणनीति बनाना शुरु कर दिया है. भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने न सिर्फ बहुमत साबित करने में अपने स्तर से नीतीश कुमार की मदद की, बल्कि उसे और मजबूती देने की कोशिश भी की.एनडीए का नेतृत्व करने वाली भाजपा इतनी कमजोर सरकार नहीं चाहती. यही वजह है कि भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने बहुमत साबित करने में नीतीश कुमार की मदद की. कथित तौर पर भाजपा की कोशिश पहले ही सफल हो जाती, अगर कांग्रेस और राजद ने अपने विधायकों को नजरबंद नहीं किया होता. पर्याप्त वक्त अमित शाह को मिल गया है. शाह को बिहार के अपने नेताओं के अति आत्मविश्वास पर भरोसा नहीं है. वे उनके भरोसे बैठे रहते तो बिहार में बना-बनाया उनका खेल खराब हो जाता. नीतीश सरकार चली जाती तो सबसे अधिक आलोटना भाजपा की ही होती.
लोकसभा के तुरंत बाद हो सकता है विधानसभा का चुनाव
राजनीतिक पंडितों के अनुसार भाजपा अपनी योजना के अनुसार काम को अंजाम देती है. लोकसभा का चुनाव की रणभेरी कुछ हीं दिनों में बजने वाली है तो वहीं डेढ़ साल के बाद बिहार विधानसभा के चुनाव भी होने हैं. सूत्रों के अनुसार नीतीश कुमार विधानसभा भंग कर लोकसभा के साथ ही चुनाव कराना चाहते थे. लेकिन भाजपा इसके लिए तैयार नहीं हुई. भाजपा लोकसभा चुनाव के दौरान कोई लूप होल नहीं छोड़ना चाहती है. विधानसभा चुनाव साथ होने से लोकसभा चुनाव से ध्यान भटकता इसलिए भाजपा इसके लिए तैयार नहीं हुई. लोकसभा चुनाव के बाद हो सकता है विधानसभा का चुनाव करा लिया जाए.
खेला होबे...
इसी बीच भाजपा अपनी रणनीति को बनाने में जुटी है. महाराष्ट्र में कांग्रेस के दो दिग्गजों को तोड़ कर भाजपा ने साबित कर दिया है कि उसके लिए किसी को अपने पाले में करना कठिन नहीं है. मध्यप्रदेश में कांग्रेस की रीढ़ कमल नाथ अपने बेटे के साथ भगवा रंग में रंगने को तैयार बैठे है. कहा तो ये भी जा रहा था कि कांग्रेस के विधायक विश्वासमत के पहले पाला बदलने की तैयारी में थे. इसकी जानकारी मिलते हीं कांग्रेस ने उन्हें हैदराबाद ले जाकर नजरबंद कर दिया. राजद भी अनजान नहीं थी. इसीलिए तेजस्वी यादव ने सभी विधायकों को बैठक के नाम पर बुला कर अपने आवास पर रोक लिया. लेकिन विपक्षी दलों पर खतरा अभी टला नहीं है.
भाजपा यादवों को रिझाने में जुटी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बिहार यात्रा इस महीने कभी भी संभव है. पीएम के दौरे के पहले या तुरंत बाद भाजपा अपनी रणनीति को कार्यरुप देना शुरु कर सकती है. कथित तौर पर भाजपा की कांग्रेस और राजद के विधायकों पर नजर है. भाजपा बिहार में राजद का जनाधार खत्म करना चाहती है. भाजपा ने यादवों पर डोरे डालने की रणनीति के तहत ही नंद किशोर यादव को बिहार विधानसभा का स्पीकर बनाया. दो बाहुबलियों की बीवी-बेटे के साथ राजद के एक यादव विधायक को नीतीश के नाम पर अपने पाले में किया. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय और विजय सिन्हा ने इसमें सहयोग किया. भाजपा का यह प्रयास इसलिए सफल हुआ कि सबकी अपनी-अपनी मजबूरियां थीं.
आगे आगे देखिए होता है क्या
वैसे भी लालू परिवार को पहले ही समझ में आ चुका था कि कम से कम दो विधायक तो विश्वास मत के दौरान राजद का साथ नहीं देने वाले हैं. एक मोकामा विधायक नीलम देवी, और दूसरे चेतन आनंद. नीलम देवी बिहार के बाहुबली नेता अनंत सिंह की पत्नी हैं. और चेतन आनंद, कुछ ही दिन पहले जेल से छोड़े गये आनंद मोहन और लवली आनंद के बेटे हैं - और दोनों के सत्ता पक्ष के करीब चले जाने की वजह तो लोग जान हीं रहे हैं. अब देखना होगा बिहारी की राजनीति भविष्य में क्या नया गुल खिलाती है.