लखनऊ। पांच साल पहले यमुना एक्सप्रेस वे को जब शुरू किया गया था तब सोच यह थी कि दिल्ली से आगरा का सफर आसान हो जाएगा। लेकिन, यह सोच गलत साबित होने लगी है। इस रास्ते पर तेज रफ्तार ने पांच सालों में लगभग तीन हजार लोगों की जान ले ली है। हालत यह है कि अब इस रास्ते को लोग मौत का एक्सप्रेस वे कहने लगे हैं।
लगातार हो रहे हादसे यमुना एक्सप्रेस वे प्राधिकरण के लिए चिंता का विषय बन गया है। ठंड और कोहरे के कारण एक्सप्रेस वे पर हादसे न बढ़ें, इसे देखते हुए प्राधिकरण ने गाड़ियों की रफ्तार घटाने का फैसला लिया है. नए नियम के मुताबिक कारों की गति 80 और भारी वाहनों की स्पीड 60 किमी प्रति घंटा कर दी गई है. इससे पहले कार 100 और भारी वाहन 80 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से दौड़ा करते थे. नया नियम मंगलवार से लागू हो गया है।
सिर्फ ढाई घंटे का सफर
यमुना एक्सप्रेस वे पर आगरा से दिल्ली तक का सफर सिर्फ ढाई घंटे में पूरा किया जा सकता है। लेकिन जिस तरह से यहां हादसों की संख्या बढ़ी हैं, उसके बाद यह छोटी सी यात्रा जिंदगी की सबसे कठिन सफर बन जाती है। एक्सप्रेस वे पर सबसे खतरनाक हादसा पिछले साल जनवरी में हुआ था जिसमें दिल्ली आ रही एक बस नाले में गिर गई. इस हादसे में 29 यात्रियों की मौत हो गई. यह दर्दनाक घटना आगरा के पास एत्मादपुर में हुआ था. सोमवार को ही ईस्टर्न पेरिफेरल हाईवे और यमुना एक्सप्रेस वे पर घने कोहरे की वजह से करीब 50 वाहन आपस में भिड़ गए थे एक्सप्रेस वे पर ज्यादातर घटनाएं आगरा, मथुरा, हाथरस और अलीगढ़ के आसपास हुई हैं.
57 किलोमीटर का सफर खतरनाक
यमुना एक्सप्रेस वे पर 2016 में 1219, 2017 में 763, 2018 में 659 और 2019 में 236 लोगों की जान चली गई. पिछले साल जनवरी से जून के बीच 95 सड़क हादसे हुए जिनमें 94 लोगों की मौत हुई, जबकि 120 लोग घायल हो गए. आंकड़ों की मानें तो यमुना एक्सप्रेस वे सबसे ज्यादा हादसे शुरुआती 57 किमी के अंदर होते हैं.
निर्माण में हुई चूक बना कारण
एक्सप्रेस वे पर ज्यादातर घटनाएं तेज गति और टायर फटने के कारण होते हैं. पिछले साल जो बस हादसा हुआ, उसके लिए कोहरे को दोषी बताया गया. अन्य एक्सप्रेस वे पर किनारों पर जिस प्रकार के रबड़ स्ट्रैप होने चाहिए, इस एक्सप्रेस वे में वह नहीं है. इससे गाड़ियां तेज रफ्तार से टकराती हैं। इसके अलावा एक्सप्रेस वे पर मवेशियों के आने के कारण भी हादसे होते हैं