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मंत्री रहते हुए भी पीएम मोदी के भरोसे को नहीं जीत सके पारस, डेढ़ महीने पुरानी पार्टीवाले को मिल गया टिकट

मंत्री रहते हुए भी पीएम मोदी के भरोसे को नहीं जीत सके पारस, डेढ़ महीने पुरानी पार्टीवाले को मिल गया टिकट

PATNA : राजनीति में भरोसा बहुत बड़ी चीज होती है। खास कर सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों का भरोसा अगर मिल जाए तो बात ही कुछ और है। पिछले पिछले दो साल से केंद्रीय मंत्री रहे पशुपति पारस को देखकर यह सहसा ही समझा जा सकता है। जिनकी पार्टी को एनडीए से एक भी लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने का मौका नहीं दिया गया है। जबकि इससे पहले उनके पास पांच सांसद थे। वहीं इनके विपरीत सिर्फ डेढ़ माह पहले अपनी पार्टी खड़ी करनेवाले उपेंद्र कुशवाहा को एनडीए में न सिर्फ जगह दी गई है. बल्कि उन्हें एक सीट भी दे दी गई है।  उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएम को काराकाट में जगह दी गई है।

नहीं जीत सके भरोसा

जिस तरह से पशुपति पारस को एनडीए से दरकिनार किया गया, उससे एक बात तो स्पष्ट है कि सांसदों की संख्या दिखाकर आप केंद्र में मंत्री पद जरुर हासिल कर सकते हैं। लेकिन, केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा नहीं जीत सकते। पशुपति पारस के साथ यही हुआ। उन्हें हमेशा इस बात का गुमान रहा कि उनके पास पांच सांसद हैं, ऐसे में उन्हें नेतृत्व अलग नहीं कर सकता है। शायद इसी गुमान के कारण वह अपनी पार्टी को वह पहचान दिलाने में नाकामयाब रहे.जो कि उनके भतीजे चिराग ने हासिल किया। 

हर जगह चिराग से पिछड़ते गए

अकेले रहते हुए भी चिराग ने न सिर्फ अपनी पार्टी को मजबूत किया। बिहार में पार्टी को पहचान दिलाई. बल्कि आज राजकीय पार्टी का दर्जा भी हासिल कर लिया है। जबकि दूसरी तरफ पारस सिर्फ इस जिद में रहे कि उन्हें हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ना है। क्षेत्र में पार्टी की स्थिति को मजबूत  करने की कोशिश नहीं की। यही कारण है कि जब भाजपा ने यहां सर्वे कराया तो पशपुति पारस कमजोर नजर आए। जिसके कारण चिराग के प्रति प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का भरोसा बढ़ता गया और पारस इस मामले में पिछड़ते गए।

आज एनडीए से अलग होने के बाद पार्टी के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। उनके पांच सांसदों में दो ने पहले ही अलग होने  का फैसला कर लिया है। अब पार्टी में सिर्फ पशुपति के अलावा भतीजे प्रिंस पासवान और नवादा से सांसद चंदन सिंह हैं। 


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