GAYA: गीता में भगवान श्री कृष्ण ने श्री मुख से अर्जुन से कहा कि -अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् पितृणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ॥' यानी हे धनंजय! संसार के विभिन्न नागों में मैं शेषनाग और जलचरों में वरुण हूं, पितरों में अर्यमा तथा नियमन करने वालों में यमराज हूं. पितृपक्ष में पितरों को तर्पण का वर्णन गीता में मिलता है. इस दौरान तर्पण और श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा की शांति मिलती है.
पितृपक्ष 18 सितंबर बुधवार से शुरु हो चुका है. श्राद्ध पक्ष में तर्पण का महत्व गीता में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने बताया है. तिल जल से तर्पण का पितृपक्ष में विशेष महत्व है. जल शीतलता का तो तिल को देवान्न भी माना गया है. तर्पण से पितरों को शांति मिलती है.
पितृ पक्ष के दिनों में पितरों के लिए तर्पण, दान, श्राद्ध का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है. पितरों को जल देने का महत्व हिन्दू शात्रों में वर्णित है. श्रद्दा से किया गया कर्म श्राद्ध कहा जाता है. पितरों को जल नहीं देने से पितृ दोष लगता है. इससे मुक्त का केवल एक मार्दग है वो है गया में पिंडदान और तर्पण.शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में पितर पितर पितृ लोक से आकर धरती पर 16 दिन निवास करते हैं.
तर्पण, श्राद्ध से पितरों की आत्मा तृप्त होती है उनसे वे खुश होते हैं. पितरों के देवता अर्यमा होते हैं. यदि आप पितृ पक्ष के समय में उनकी पूजा करते हैं तो वे आपसे खुश होंगे. इससे आपके पितर भी प्रसन्न होंगे.
पितृपक्ष 17 सितंबर से शुरु होकर 2 अक्टूबर चक चलेगा. पितृ विसर्जन अमावस्या को होगा. पितृ पक्ष के 16 दिन पितरों को प्रसन्न करने के लिए तर्पण, श्राद्ध का विधान है. पितृपक्ष में कौवा, गाय और कुत्ता का महत्व है.कौआ, कुत्ते और गाय यम के प्रतीक माने गे हैं. इस लिए सबसे पहले उनका अंश निकाला जाता है.
पितृपक्ष में गया में पिंड दान का विशेष महत्व है. मान्यता है कि भगवान राम ने भी अपने पिता दशरथ का पिंडदान गया जी में किया था. भगवान विष्णु का पद गया में माना गया है. श्री हरि का पद गया जी में होने के कारण पितृपक्ष में पिंडदान का विशेष महत्व है.