पितरों को तृप्त करने और उनको प्रसन्न करने के लिए पितृ पक्ष का 16 दिन होते हैं. भाद्रपद पूर्णिमा से पितृ पक्ष प्रारंभ होता है और इसका समापन आश्विन अमावस्या के दिन होता है. इस वर्ष 17 सितंबर पितृ पक्ष का प्रारंभ हो रहा है. पितृ पक्ष के दौरान सभी लोग अपने पितरों को याद करते हुए उनका तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध, दान, ब्राह्मण भोज, पंचबलि आदि करते हैं. ऐसा करने से पितर तृप्त होकर अपने परिवार के लोगों को आशीर्वाद देते हैं. पितर को पिंड करने से उनको पितृ लोक से मुक्ति मिलती है और वे मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं. कुछ लोग पितृ पक्ष के समय में पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध आदि नहीं करते हैं. ऐसा नहीं करने से इसका दुष्परिणाम भी होता हैं. पितृ पक्ष में पितरों की पूजा और पिंड दान तर्पण, श्राद्ध आदि नहीं करता हैं उसे पितरों के श्राप और नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है. उनको 3 गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.
पितृपक्ष में जो लोग अपने पितरों को तृप्त नहीं करते हैं, उनके पितर उनसे दुखी हो जाते हैं. वे नाराज हो जाते हैं और अपने वंश को श्राप देते हैं. इससे व्यक्ति संतानहीन हो सकता है. ऐसा करने से उसे पुत्र और पुत्री की प्राप्ति नहीं होती है. यह सब पितृ दोष करने से होता है.
पितरों के श्राप के कारण उनके वंश के व्यक्ति के पास धन नहीं होता है. उसके जीवन में धन का संकट बना रहता है. ऐसे लोग जीवनभर कंगाली और दरिद्रता में रहते है. रोजी-रोटी की दिक्कतें आती रहती हैं और पूरा परिवार परेशान रहता है.
पितरों के खुश नहीं होने पर उसका पूरा परिवार कलश, अशांति और परिजनों के बीच वैमनस्यता रहती है. परिवार की तरक्की नहीं होती है. परिवार के सदस्य एक दूसरे पर शक करते हैं. परिवार का कोई न कोई सदस्य हमेशा बीमार रहता है. लोगों की सेहत खराब रहती है. धन का क्षय होता है.
पितृ पक्ष के समय में तर्पण न करने पर पितृगण नाराज होते हैं. इस वजह से ही वे संतानहीन होने का श्राप मिलता है. आप कितना भी अनुष्ठान करा लें , लेकिन, आपको संतान सुख प्राप्त नहीं होता है. अपने पितरों को तृप्त करने पर ही आपको यह सुख प्राप्त होता है. प्रेत मंजरी में लिखा है कि जो लोग अपने पितरों के लिए तर्पण नहीं करते हैं, वे संतानहीन होते हैं और पितर उनको धीरे-धीरे खून चूसते हैं.