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केके पाठक के फैसले पर सियासी बवाल, शिक्षकों पर एक्शन के बीच केके पाठक ने लिया ऐसा फैसला, भाजपा ही नहीं सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने ही खोल दिया मोर्चा

केके पाठक के फैसले पर सियासी बवाल,  शिक्षकों पर एक्शन के बीच केके पाठक ने लिया ऐसा फैसला, भाजपा ही नहीं सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने ही खोल दिया मोर्चा

PATNA-जिस दिन बिहार लोक सेवा आयोग ने बिहार शिक्षक के रिजल्ट की घोषणा की उसी दिन केके पाठक ने युद्धस्तर पर अगले दिन ही नियुक्ति करने का शासनादेश निकाल दिया.  नियुक्ति पत्र  मिलने वाले दिन नीतीश कुमार  मंच से अपने संबोधन में केके पाठक का नाम लिया शिक्षक ने ऊंचे स्वर में चिल्लाकर जता दिया किया ये सब कुछ उनके कठोर निरीक्षण में हुआ. सीएम नीतीश भी ये देखकर काफी गदगद हुए.डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने भी जब आखिर में केके पाठक का नाम लिया तो मैदान में बैठे शिक्षक गर्मजोशी से भर उठे. तेजस्वी के मुंह से दो बार केके पाठक का नाम आया और दोनों ही बार अभ्यर्थियों ने ऐसा ही जोरदार अभिवादन किया. लेकिन  बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 'हीरो अफसर' केके पाठक का फरमान  भाजपा के नेताओं को नहीं भा रहा है.शिक्षकों के संघ बनाने की मनाही, सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना के खिलाफ भाजपा के नेता लगातार केके पाठक पर करारा हमला कर रहे है.

वहीं बिहार के शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव (एसीएस) केके पाठक ने शिक्षा संस्थानों में नई जान फूंकने की कवायद शुरू की है. शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर की बोलती बंद करा देने वाले पाठक लगातार शिक्षकों के प्रति सख्त रुख अपनाए हुए हैं तो   सत्ताधारी दल के साथ भाजपा भी पाठक के फैसलों का विरोध कर रही है.

 शिक्षा विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव की कुर्सी पर काबिज पाठक शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर को पसंद नहीं आ रहे. उन्होंने हाल में ही शिक्षा से जुड़े कुछ फैसले लिए हैं, जिनमें स्टाफ के जींस-टीशर्ट पहनने पर पाबंदी से लेकर सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक कोचिंग स्कूलों के चलने पर रोक आदि शामिल हैं लेकिन शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने उनके खिलाफ पीत पत्र भेजकर जो विवाद शुरू किया, वह इतना बढ़ा कि सीएम आवास तक जा पहुंचा. लिहाजा नीतीश कुमार ने दोनों लोगों से मुलाकात भी की. वैसे यह पहली बार नहीं कि पाठक को लेकर इतनी राजनीतिक सरगर्मी दिख रही है.कहा जाता है कि वह लालू यादव की मुश्किलें बढ़ा चुके हैं. 2016 में तो उन्होंने पूर्व डेप्युटी सीएम सुशील मोदी को मानहानि का लीगल नोटिस ही भिजवा दिया था. 1990 बैच के IAS केके पहली बार 1996 में तब चर्चा में आए थे, जब उन्होंने एमपी लैड के पैसों से बने एक अस्पताल का उद्घाटन एक सफाई कर्मचारी से करवा दिया था. 2010 में वह सेंट्रल डेप्युटेशन पर दिल्ली चले गए थे, जिसके बाद वापसी 2015 में हुई.महागठबंधन की सरकार बनने के बाद नीतीश ने केके पाठक को वापस बुला लिया. राज्य में शराबबंदी लागू करने की कमान उन्हें ही सौंपी गई, हालांकि इसके दो साल बाद ही वह फिर दिल्ली लौट गए.पाठक जब से शिक्षा विभाग में एडिशनल चीफ सेक्रेटरी बने हैं, लोकप्रियता का उनका ग्राफ आसमान छूने लगा है। उनके प्रयासों से सरकारी स्कूलों में शिक्षक और बच्चे लगभग शत-प्रतिशत आने लगे हैं। लेट होने या बिना छुट्टी लिए नहीं आने वाले शिक्षकों की सैलरी कट जाती है। यानी ऊपर से नीचे तक के तमाम नट-बोल्ट टाइट किए जा रहे हैं। ऐसी ही मांग करने वाली पब्लिक बेहद खुश है.

कहा जाता है कि वह स्कूली शिक्षा को पटरी पर लाने का काम कर रहे हैं. जो भी हो, मंत्री और अफसर के इस विवाद में खुद महागठबंधन के नेता भी कूद गए हैं.  बीते दिनों RJD MLC सुनील कुमार सिंह और नीतीश सरकार में मंत्री अशोक चौधरी के बीच जुबानी जंग भी देखने को मिली थी. अब भाजपा केके पाठक को घरने में लगी है.

वहीं सीपीआई एमएलसी संजय सिंह की पेंशन रोकने के आदेश के खिलाफ पाठक को पार्टी ने आड़े हाथों लिया है. सीपीआई के विधायक संदीप सौरव ने तो यहां तक कह दिया है कि केके पाठक भाजपा को लाभ पहुंचाने के काम कर रहे हैं. वे भाजपा के एजेंट हैं. वे जो भी फैसले लेते हैं, उससे नीतीश कुमार की किरकिरी होती है. सरकार की बदनामी होती है. जान-बूझकर पाठक राज्य सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर रहे हैं. पाठक अपने इन फैसलों से भाजपा की मदद कर रहे हैं. बिहार लोकतंत्र की जननी है. इसके बावजूद अब बिहार में धरना-प्रदर्शन और शिक्षा विभाग की किसी नीति का विरोध या आलोचना करने का किसी को अधिकार नहीं रह गया है. 

राज्यसभा सदस्य सुशील मोदी ने कहा कि अमर्यादित भाषा का प्रयोग करने की आदत वाले और पूरी औपनिवेशिक अकड़ से काम करने वाले आइएएस केके पाठक ने अब तक दर्जनों मंत्रियों, विधायकों और अफसरों का अपमान किया, फिर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आइएएस को संरक्षण देकर कार्यपालिका का मनोबल गिरा रहे हैं.मोदी ने कहा कि पाठक खुद को जनता का सेवक नहीं, बल्कि अंग्रेजों के जमाने का कठोर शासक समझते हुए काम करते हैं. वहीं बीजेपी के वरिष्ठ नेता सह नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने बिहार शिक्षा विभाग द्वारा जारी छुट्टी के कैलेंडर को लेकर कहा कि केके पाठक को बिहार सरकार हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है. उन्होंने कहा कि तुष्टिकरण की राजनीति नहीं करनी चाहिए ऐसी राजनीति से अराजकता का माहौल बन जाता हैं जनता में. विजय सिन्हा ने इसे तुगलकी आदेश बताते हुए कहा कि हिंदुओं की धार्मिक स्वतंत्रता पर यह एक बड़ा आघात है.  सरकार को इसे वापस लेना होगा. बता दें कि बिहार शिक्षा विभाग ने 2024 उर्दू और हिंदी विद्यालयों में अवकाश की सूची जारी कर दी है. शिक्षा विभाग में इस सूची में हिंदी भाषी विद्यालय और उर्दू भाषी विद्यालय के अलग-अलग अवकाश की सूची जारी की है.


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