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राजपूतों पर सियासत के बिगड़े बोल, राजद का ‘ठाकुर का कुआं’ तो भाजपा ने बेटियों पर की विवादित टिप्पणी, अब क्षत्रिय समाज बिगड़ेगा नेताओं का खेल

राजपूतों पर सियासत के बिगड़े बोल, राजद का ‘ठाकुर का कुआं’ तो भाजपा ने बेटियों पर की विवादित टिप्पणी, अब क्षत्रिय समाज बिगड़ेगा नेताओं का खेल

DESK. जाति की राजनीति नहीं करने का दावा करने वाले राजनीतिक दल चाहे चुनाव में टिकट बंटवारा हो या सियासी समीकरण साधना हो हमेशा ही जातियों को तब्बजो देते हैं. लेकिन पिछले कुछ समय से राजपूतों को निशाना बनाकर लगातार सियासतदान विवादित टिप्पणियां कर रहे हैं. पहले संसद में राजद सांसद मनोज झा ने ‘ठाकुर का कुआं’ कविता पढ़ी तो विवाद हो गया. कई राजपूत संगठनों ने इसे राजपूतों का अपमान बताकर मनोज झा को जमकर खरी-खोटी सुनाई. राजपूतों से जुड़ा यह विवाद थमा भी नहीं था कि भाजपा नेता ने राजपूत रजवाड़े और बेटियों को लेकर नया विवाद खड़ा कर दिया. 

बेटियों पर भाजपा की टिप्पणी : केंद्रीय मंत्री और गुजरात की राजकोट लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार पुरुषोत्तम रुपाला ने यह दावा करके विवाद पैदा कर दिया कि तत्कालीन ‘महाराजाओं’ ने विदेशी शासकों और अंग्रेजों के उत्पीड़न के आगे घुटने टेक दिए थे. यहां तक कि अपनी बेटियों की शादी भी उनसे कर दी थी. गुजरात में क्षत्रिय समाज ने रुपाला की टिप्पणियों पर कड़ी आपत्ति जताई क्योंकि तत्कालीन राजघरानों में अधिकतर राजपूत थे. यहां तक कि अब लोकसभा चुनाव में रुपाला को हराने के लिए बड़ी रैली भी राजपूत समाज द्वारा की जा रही है. साथ ही भाजपा को सबक सिखाने की बातें भी हो रही हैं. 

बिहार में राजद का बिगड़ेगा खेल : राजपूतों पर नेताओं की इन टिप्पणियों से एक ओर बिहार में राजद की चिंता बढ़ी है तो देश स्तर पर भाजपा को भी राजपूतों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. दरअसल, बिहार में कई ऐसी सीटें हैं जहाँ राजपूतों को भाजपा ने टिकट दिया है. सारण से राजीव प्रताप रुड़ी, आरा से आरके सिंह, महाराजगंज से जनार्दन प्रसाद सिग्रीवाल, औरंगाबाद से सुशील कुमार, मोतिहारी से राधा मोहन सिंह उम्मीदवार हैं. वहीं एनडीए से शिवहर जदयू की लवली आनंद और वैशाली से लोजपा (रामविलास) की वीणा देवी भी राजपूत हैं. राजद और महागठबंधन उम्मीदवारों को इन सीटों पर राजपूतों की गोलबंदी का सामना करना पड़ सकता है. इसके पीछे की वजह मनोज झा का ‘ठाकुर का कुआं’ कविता है जिसे राजपूत अपना अपमान बता चुके हैं. वहीं बक्सर सीट पर राजद ने राजपूत जाति से आने वाले सुधाकर सिंह को उम्मीदवार बनाया है लेकिन उन्हें भी ‘ठाकुर का कुआं’ के चक्कर में राजपूतों की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है. साथ ही बिहार की अन्य सीटों पर एनडीए ने ‘ठाकुर का कुआं’ के नाम पर राजद को राजपूतों का अपमान करने वाला दल बताकर घेरना शुरू कर दिया है. 

टेंशन में भाजपा : हालांकि राजपूतों ने सिर्फ राजद को टेंशन में नहीं डाला है, गुजरात में यही स्थिति भाजपा की है. राजकोट लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार पुरुषोत्तम रुपाला की राजपूतों पर बेटियों की शादी अंग्रेजों और अन्य से करने की टिप्पणी से क्षत्रिय समाज आक्रोशित है. राजकोट में रविवार को रुपाला और भाजपा के खिलाफ राजपूत बिरादरी की एक बड़ी रैली भी हुई. इसमें गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटों पर भाजपा का विरोध करने का कई राजपूत नेताओं ने दावा किया. इतना ही राजपूतों के राजाओं और बेटियों को लेकर की गई टिप्पणी को विरोधी दल भी भुनाने में लगे हैं. 

अखिलेश ने किया समर्थन : उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने राजकोट में हुए राजपूतों के विरोध पर सोशल मीडिया पर लिखा, ‘भाजपा के विरोध में राजपूत समाज की नाराज़गी का ये महा जन सैलाब बता रहा है कि चाहे गुजरात हो, राजस्थान, हरियाणा या उप्र हर जगह क्षत्रिय, राजपूत, ठाकुर समाज अपने मान-सम्मान के लिए उठ खड़ा हुआ है। भाजपा को ये अधिकार कभी नहीं है कि वो किसी समाज का अपमान करे। भाजपा याद रखे जिन्होंने उन्हें सत्ता दी वहीं उन्हें सत्ता से बाहर करने की सौगंध उठाकर उन्हें बुरी तरह पराजित करेंगे। ये समाज जो वचन उठाता है उससे कभी फिरता नहीं। मतदाताओं को अपना राजनीतिक बंधुआ मानने की भूल, भाजपा के पतन का कारण बनेगी।‘ गौरतलब है कि यूपी की 80 लोकसभा सीटों में एक चौथाई ऐसी सीटें हैं जिस पर राजपूत वोटों का असर है. यही स्थिति राजस्थान और हरियाणा में है. 

211 सीटों पर असर : ऐसे में रुपाला के बयान के विरोध में राजपूत समाज अगर एकजुट होता है इसका पूरे उत्तर भारत पर असर पड़ सकता है. इसमें यूपी (80), मध्य प्रदेश (29), राजस्थान (25), बिहार (40), हरियाणा(11), गुजरात (26) जैसे राज्य प्रमुख हैं. इन राज्यों में लोकसभा की 211 सीटें हैं. साथ ही मध्य प्रदेश और राजस्थान में भाजपा के सरकार में आने पर भी राजपूत समाज से मुख्यमंत्री नहीं बनाने का मामला भी इन दिनों दोनों राज्यों में सियासी चर्चा बना हुआ है. ऐसे में क्षत्रिय समाज की नाराजगी उभरती है तो यह बिहार में महागठबंधन तो राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को झटका दे सकती है. 

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